दिवाली आने में अब कुछ ही समय बांकि है. कुछ परंपराएं अधिकांश लोगों के लिए अछूती और अज्ञात हैं. दिवाली हर साल ‘अमावस्या’ पर मनाई जाती है. इस शुभ अवसर पर देवी लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा की जाती है. जबकि मिट्टी के दीये आमतौर पर घर को सजाने के लिए उपयोग किए जाते हैं, कुछ लोग ‘मिट्टी का घरौंदा’ (मिट्टी का घर) बनाते हैं और इसकी पूजा करते हैं.
बचपन में कभी आपने भी एक बार जरूर बनाया होगा मिट्टी का घर. दिवाली के दिन मिट्टी के घर बनाना एक बहुत ही बहुत पुरानी परंपरा है जो भले ही बड़े शहरों से चली जा चुकी हो लेकिन कहीं-कहीं आज भी प्रचलित है. इस परंपरा का महत्व और इसे दिवाली के लिए शुभ क्यों माना जाता है, आइए जानते हैं यहां.
दिवाली पर इस मिट्टी के घरौंदे बनाने के पीछे एक पौराणिक कहानी है. माना जाता है कि जब भगवान राम, सीता और लक्ष्मण कार्तिक मास की अमावस्या के दिन अयोध्या लौटे, तो लोगों ने उनके स्वागत के लिए अपने घरों में घी के दीये जलाए. कई लोगों ने उस दिन मिट्टी के घर भी बनाए और उन्हें कई तरह से सजाया. कई लोग उस मिट्टी के घर में मिठाई, फूल, खील और बताशा रखते हैं. लोग मिट्टी का उपयोग करके अपने हाथों से ये मिट्टी के घर बनाते हैं. हालांकि, कुछ लोग इसे बाज़ार से खरीदना भी पसंद करते हैं.
दिवाली पर मिट्टी का घर बनाना बहुत शुभ माना जाता है. लोगों का मानना है कि इन मिट्टी के घरों में देवी लक्ष्मी का वास होता है. साथ ही इससे घर में सुख-समृद्धि भी आती है. दिवाली पर लोग अपने घरों के साथ-साथ इन मिट्टी के घरों को भी रंगों और लाइटों से सजाते हैं.
ज्यादातर घर की अविवाहित महिलाएं इन मिट्टी के घरों और घर के प्रवेश द्वार पर रंगोली बनाती हैं. ऐसा माना जाता है कि दिवाली के दिन लोग अपने घरों की साफ-सफाई करते हैं और घर के सामने रंगोली बनाते हैं. इसी तरह मिट्टी के घर के सामने भी रंगोली बनाई जाती है.
रंगोली बनाने के लिए चावल और गेहूं के आटे का उपयोग किया जाता है. इसके अलावा घरौंदा को सजाने के लिए रंग-बिरंगे कागजों और फूलों का इस्तेमाल किया जाता है.