Prabhat Khabar Special: इंटरनेट पर क्या कर रहा है आपका बच्चा
बचपन को घेरती तकनीक के खतरों को लेकर आयी एक हालिया रिपोर्ट हर अभिभावक को यह समझाती है कि वर्चुअल दुनिया मासूमों के लिए जोखिम भरी भी है. यही वजह है कि 'क्राइ '- चाइल्ड राइट्स एंड यू और पटना स्थित चाणक्य नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी का आया एक साझा अध्ययन सचमुच अभिभावकों को चिंतित करने वाला है.
एक समय था जब बच्चे दिनभर टीवी से चिपके रहते थे और इसे लेकर माता-पिता परेशान रहते थे. समय तेजी से बदला और आज घर-घर में बच्चे इंटरनेट की जाल में उलझे हैं. कोरोनाकाल में यह इंटरनेट सहारा बना जब बच्चे इसके जरिये ऑनलाइन स्टडी कर पाये. मगर कई घरों में बच्चे दिनभर मोबाइल से चिपके रहते हैं और माता-पिता भी इस बात से बेपरवाह हैं कि उनके बच्चे इस आभासी दुनिया में कहीं खो तो नहीं रहे. इस बारे में हाल में ‘क्राइ ‘- चाइल्ड राइट्स एंड यू और पटना स्थित चाणक्य नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी का आया एक साझा अध्ययन सचमुच अभिभावकों को चिंतित करने वाला है.
क्या कहते हैं ये आंकड़े
महाराष्ट्र, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश के 424 अभिभावकों, इन्हीं राज्यों के 384 शिक्षकों और तीन राज्यों पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के 107 हितधारकों को लेकर किये गये इस अध्ययन में सामने आया है कि बड़ी संख्या में बच्चे ऑनलाइन दुर्व्यवहार का शिकार बन रहे हैं. अध्ययन में शामिल 33.2 प्रतिशत अभिभावकों के मुताबिक ऑनलाइन मंचों पर उनके बच्चों से अजनबियों ने ना सिर्फ मित्रता करने, निजी व पारिवारिक जानकारी मांगने और रिश्तों को लेकर यौन संबंधी परामर्श देने के लिए संपर्क किया, बल्कि आपत्तिजनक कंटेंट भी साझा किया. इतना ही नहीं, बच्चों से ऑनलाइन यौन संबंधी संवाद भी किया गया.
बच्चे होते हैं आसान शिकार
विडंबना ही है कि वास्तविक संसार में ही नहीं, वर्चुअल दुनिया में भी बच्चे सुरक्षित नहीं हैं. डिजिटल होती ज़िंदगी में अपने ही घर में अभिभावकों की मौजूदगी के बावजूद स्क्रीन में झांक रहे बच्चे जाने कब किस जोखिम में फंस जायें, कहा नहीं जा सकता. चिंतनीय है कि यह असुरक्षा और नकारात्मक संवाद और सामग्री तक सीमित नहीं है. इस अध्ययन में यह भी पाया गया कि इंटरनेट की दुनिया में मौजूद कुत्सित मानसिकता के लोग इस माध्यम का इस्तेमाल बच्चों की तस्करी के लिए भी करते हैं. कई तरह से बच्चों की जानकारी जुटाकर उनका जीवन जोखिम में डालते हैं. समझना मुश्किल नहीं कि व्यक्तिगत जानकारियां, दिनचर्या, पारिवारिक पृष्ठभूमि और भावनात्मक कमजोरियां पता चलने से बच्चे आसानी से उनके जाल में फंस जाते हैं. जिस तादाद में बच्चे सोशल साइट्स पर एक्टिव हैं, अब्यूज और अपराध के ऐसे मामले भी अनगिनत होंगे, जो सामने ही नहीं आ पाते. इतना ही नहीं, कई मामलों में ऐसे फेर में फंसे बच्चे शोषण और भय का शिकार बन आत्महत्या जैसा कदम भी उठा लेते हैं.
बढ़ रहे ऑनलाइन बाल यौन शोषण के मामले
हर पल हाथ में रहने वाले स्मार्ट गैजेट्स और इंटरनेट की दुनिया ने विचारों की गहराई और हालातों की गंभीरता के प्रति समझ कम की है. इस नासमझी फेर में जब बड़े ही उलझ गये हैं, तो बच्चों से क्या उम्मीद की जाये. आभासी संसार का जाल गांवों-कस्बों तक विस्तार पा चुका है.लेकिन इन माध्यमों के इस्तेमाल की सही समझ नदारद है. किसी भी आयु वर्ग के लोग ना तो समझ रहे हैं और ना ही समझना चाहते हैं कि वर्चुअल दुनिया के लिए भी एक आचार संहिता की दरकार है. निजी जानकारियां हों या पल-पल की खबर, ऐसे सार्वजनिक मंचों पर सब कुछ नहीं परोसा जा सकता. बड़ों को इस मायावी दुनिया में गुम देखकर बच्चे भी जितना समय ऑनलाइन बिता रहे हैं, उसी अनुपात में शोषण और दुर्व्यवहार के मामले भी बढ़ रहे हैं. कभी जमीनी जीवनशैली का सबक सिखाने के लिए माने जानेवाले ग्रामीण परिवेश के बच्चे भी इससे अछूते नहीं हैं. इसी अध्ययन में खुलासा हुआ है कि शहरों के मुकाबले ग्रामीण क्षेत्रों में ऑनलाइन बाल यौन शोषण और दुर्व्यवहार की घटनाएं ज्यादा हुई हैं.
इस रिसर्च के मुताबिक, ऑनलाइन दुर्व्यवहार का शिकार बने बच्चों में से 14-18 आयु वर्ग की 40 प्रतिशत लड़कियां थीं, जबकि इसी आयु वर्ग के 33 प्रतिशत लड़के इस नकारात्मक बर्ताव का शिकार बने. दूर-दराज के इलाकों में बसे अभिभावकों ने बताया कि बड़ी संख्या में बच्चे आभासी दुनिया में शोषण का शिकार बन रहे हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में माता-पिता ने उनके बच्चों द्वारा ऑनलाइन शोषण का अनुभव करने की बात अधिक साझा की.
उलझन में घिर रहा मासूम मन
अपरिचितों द्वारा किया गया ऑनलाइन दुर्व्यवहार कोई मामूली बात नहीं हैं. यह बच्चों के मन-मस्तिष्क को गहराई से प्रभावित करता है. अनजान लोगों से वर्चुअल दुनिया में बने जुड़ाव के बाद ऐसी सामग्री और सवालों का सामना बच्चों को डराने वाला भी है और बालमन को बहकाने वाला भी. ऐसी परिस्थितियों में बच्चे भय और भ्रम का शिकार बन जाते हैं. इसी अध्ययन में हिस्सा लेने वाले 26 प्रतिशत शिक्षकों ने पाया कि ऑनलाइन दुर्व्यवहार का शिकार बने बच्चों की मनःस्थिति और व्यवहार में भी बदलाव दिखा. इन बदलावों में काम में ध्यान ना होना और बिना किसी उचित कारण के स्कूल से अनुपस्थित रहना शामिल है. बर्ताव में आये इस बदलाव के लिए 20.9 प्रतिशत शिक्षकों ने स्कूल में स्मार्टफोन का इस्तेमाल अधिक होने की बात भी कही. हर वक्त जानी-पहचानी सी लगने वाली इस दुनिया में अनजान चेहरों से घिरे बच्चे अपराधियों के जाल में ही नहीं फंस रहे, उनका भावनात्मक और व्यक्तिगत विकास भी बाधित हो रहा है. सामाजिक जीवन से दूर करने वाले इस आभासी संसार में समय बिताने के चलते बच्चों के शारीरिक और मानसिक संवेदनात्मक विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है. सामाजिकता का दायरा ही नहीं हो रहा, असामाजिक तत्वों के गलत इरादे भी बच्चों के लिए मुसीबत बन गये हैं.
अभिभावकों की सजगता है जरूरी
हर दौर में बचपन को सहेजने और सही राह दिखाने से जुड़ी प्राथमिकताएं बदलती रहती हैं. आज के समय में ऑनलाइन दुनिया की उलझनों से बच्चों को बचाना जरूरी हो चला है. हालांकि बच्चों के इंटरनेट इस्तेमाल को सीमित कर देने से उन्हें सोशल मीडिया के दुष्प्रभाव से नहीं बचाया जा सकता है. यहां तो हर तरह की सामग्री उपलब्ध है. सोशल मीडिया के विवेकपूर्ण इस्तेमाल और सही मॉनिटरिंग से बच्चे ज्ञान और समझ का दायरा और बढ़ सकता है. इसीलिए पाबंदी कोई हल नहीं है. हां, बच्चे यहां क्या कंटेंट देख रहे हैं, कितना समय बिता रहे हैं, इन बातों को लेकर अभिभावकों को सजग रहना जरूरी है. अभिभावकों का बच्चे में उम्र के मुताबिक आ रहे मानसिक और शारीरिक बदलावों को समझना और सार्थक संवाद करना आवश्यक है. बच्चों को एक वर्चुअल दुनिया से जोड़ने वाली इन साइट्स की हकीकत से रुबरु करवाना जरूरी है.
हर अभिभावक को सचेत रहना होगा कि बच्चा सोशल साइट्स पर जाने-अनजाने लोगों से जुड़कर किस दिशा में जा रहा है? सोशल नेटवर्किंग साइट्स का उपयोग करने की आदतों से जुड़े अध्ययन बताते हैं कि भारतीय किशोरों की ऑनलाइन सुरक्षा को लेकर सजग होने की दरकार है. फ्रेंड लिस्ट में शामिल होकर बच्चों द्वारा शेयर की गयी पोस्ट्स देखकर उनकी मन समझने वाले बहुत से लोग इस मायावी संसार में मौजूद हैं. अंतर्जाल की दुनिया से मिली अपडेट्स के माध्यम से आपराधिक गतिविधियों को अंजाम देने के लिए नये रास्ते खोज रहे हैं. बच्चे उनके सबसे आसान शिकार होते हैं. अभिभावक खुद रोल मॉडल बनें. इन मंचों को इस्तेमाल करते हुए सचेत रहें. हर समय ऑनलाइन रहने के बजाय असल दुनिया में सामाजिक रूप से सक्रिय रहें. बड़ों का ऐसा व्यवहार बच्चों के लिए उदाहरण बन सकता है. जो उन्हें आभासी दुनिया में रचनात्मक रूप में मौजूद रहते हुए भी अन्य उलझनों से बचने वाला साबित होगा.
बच्चों को जरूर बताएं ये बातें
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बच्चे को बताएं कि इंटरनेट पर मौजूद हर चीज सच नहीं है, इसलिए वो जो कुछ भी देखे या पढ़े, उसकी सच्चाई को कई जगह से प्रमाणित कर ले तब जाके उस पर यकीन करे.
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यह बताएं कि ऐसी कौन-कौन सी जानकारियां हैं, जो उसे ऑनलाइन किसी और के साथ शेयर नहीं करनी हैं.
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बच्चे सबसे ज्यादा सोशल साइट्स और ईमेल का इस्तेमाल करते हैं. साइबर क्रिमिनल आपकी सारी जानकारी आसानी से हैक कर सकते हैं. इसलिए बच्चों को सिखाएं कि कैसे वे अपने पासवर्ड को स्ट्रांग बनायें. साथ ही ऑफर या स्कीम वगैरह को लेकर आनेवाले फर्जी इमेल्स से सचेत रहना सिखाएं.
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सोशल साइट का सीमित इस्तेमाल करने दें. यहां उनके दोस्तों की जानकारी आपको होनी चाहिए, अन्यथा कई बार बच्चे गलत संगत में पड़कर बिगड़ जाते हैं. उन्हें पोर्न साइट्स से भी दूर रहना सिखाएं.