डॉ सुजाता कुमारी की दो अंगिका कविताएं प्रभात खबर दीपावली विशेषांक में छपीं हैं. आप भी पढ़ें ‘रात होलय पिया नैय अयलै’ और ‘अंग मंगल गीत’…
रात होलय पिया नैय अयलै
भेलय दूर सांझ अलबेली।
ऐलय रात ये असकल्ली,
तारों रो सिंगार सजीली,
बढ़लो सरंगों में इतरैली।
रात होलय पिया नैय अयलै।2
सांझ बेचारी मुंह लटकैली,
रात रँगीली छै मुसकैली,
झींगुर रो बाजा बजलै,
ओकरो परानो में आशा छैलै।
रात होलय पिया नैय अयलै।2
बीती गेलय रात पहर भर,
बहै लगलय हवा सर-सर
गाछी पात उड़ाई फड़-फड़!
करेजो करै धड़ धड़ धड़ धड़।
रात होलय पिया नैय अयलै।2
हम्मे देखलिये रात रानी केँ
कहै हमरा सेँ कानी कानी केँ,
हुनका हमरो याद नैय अयलै
हुनका हमरो प्यार नैय भइलै
रात होलय पिया नैय अयलै।2
जबय अइतय पिया सलौना,
आजही मेँ बसतै मनों रो कोना,
पूरा होतय सब्भे सपना अपनो
रात होलय पिया नैय अयलै।2
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अंग जनपद मेँ प्यार सरल हुये।
अंग मंगल हुये, जगमंगल हुये,
अंग जनपद मेँ प्यार सरल हुये।
शांति रो अमरित धरती पर बरसै,
नय कोय यहाँ तनियो टा तरसै।
सब्भे जन खुशियाली में हरसै,
अंग जनपद रो अंग अंग कुरचै।
अंग मंगल हुये, जगमंगल हुये,
अंग जनपद मेँ प्यार सरल हुये।
कोमल सुन्नर महुआ रंग मिट्ठो,
परन-करम नरियर रंग कट्ठो।
मानुख कलुष त्याग ,पवन हुये,
गोटा के फूल रंग सौसे अंग हुए।
अंग मंगल हुये, जगमंगल हुये,
अंग जनपद मेँ प्यार सरल हुये।
सुरजो रो पहली किरनी संग
मन हुलसै सब्भे रो जीवन,
हिय शुद्ध हुये मन हुए कंचन
चाँन इन्जोरिया झक झक मारै,
सौसे अंग जनपद भक भक करै।
अंग मंगल हुये, जगमंगल हुये,
अंग जनपद मेँ प्यार सरल हुये।
नय जात केँ, नय धरम केँ।
यहाँ नय कोनो भेद देखै छी
हिन्दू मुस्लिम सिख इसाई
सब्भे अपनो भाई भाई।
अंग मंगल हुये, जगमंगल हुये,
अंग जनपद मेँ प्यार सरल हुये।
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