नीलम को अपने नयी इंटर्नशिप और पढ़ाई के लिए तुरंत एक अच्छा-सा लैपटॉप लेना जरूरी था. मगर, सब उदास थे, क्योंकि अभी भी 4 हजार रुपये कम पड़ रहे थे. मम्मी और पापा ने किसी तरह 40 हजार इकट्ठा करके दे दिये थे. छह हजार खुद नीलम के पास थे. वह परेशान होकर सोच रही थी कि बाकी पैसों की व्यवस्था कैसे की जाए? उधार किसी से मांगना नहीं चाह रहे थे. विचार-विमर्श चल रहा था, तभी 12 वर्षीय सोनू ने 3800 रुपये लाकर नीलम के हाथ में रख दिये. नीलम उसे ताजुब से देखने लगी. उसने पूछा,सोनू तुम्हारे पास से रुपये कहां से आये ? सोनू ने मुस्कुरा कर कहा, सेविंग दीदी! सेविंग !!
सोनू बहुत समझदार और जिम्मेदार लड़का है. मम्मी ने हैरानी से पूछा, सोनू तुमने इतनी बचत की कैसे? हम तो तुम्हें ट्यूशन जाते समय 40 रुपये टिफिन और 20 रुपये ऑटो के लिए देते हैं? ये पैसे तो पूरे खर्च हो जाते होंगे. सोनू ने कहा, नहीं मम्मी. मैं बाहर रोज 40 रुपये का नहीं खाता. कभी-कभी 10 रुपये के 2 केले या एक संतरा ले लेता हूं और कोचिंग के बीच में वही खा लेता हूं. ऐसा करते-करते मेरे पास चार हजार जमा हो गये थे. इनमें से 200 रुपये का मैंने पिछले हफ्ते पेंसिल बॉक्स और नोटबुक ले ली थी.
बेटे की समझदारी देखकर पापा की आंखें नम हो गयी. मम्मी ने सोनू की पीठ थपथपाते हुए कहा-वाह बेटा तुमने साबित कर दिया कि तुम भी मम्मी-पापा के पदचिह्नों पर चलने वाले हो. दरअसल, सोनू ने वही किया जो घर में अपने माता-पिता को करते हुए देखता था. हम सबको अपने बच्चों को वित्तीय रूप से जिम्मेदार और समझदार बनाना चाहिए. इसके लिए उसे पैसे की कीमत,पैसे सोच समझकर खर्च करने और उन्हें संभाल कर रखने का सही तरीका और बचत का महत्व बताना जरूरी है. जानें कुछ आसान तरीकों के बारे में.
लाड प्यार के चक्कर में बच्चे के मुंह खोलते ही उसे महंगे गैजेट्स, ब्रांडेड कपड़े, फुटवेयर या खिलौने आदि न दिलाएं. पॉकेट मनी भी सोच समझ कर दें. बच्चा कोई भी डिमांड करे, तो उसकी वास्तविक जरूरतों को ही पूरा करें. बच्चे को ऐसा लगना चाहिए कि आपके लिए एक-एक पैसा कीमती है और आप मेहनत से पैसे कमाते हैं. इसलिए सोच समझकर खर्च करते हैं. इस तरह बच्चा भी समझकर डिमांड करेगा.
पेरेंट्स बच्चे के पहले रोल मॉडल होते हैं. बच्चा सबसे पहले अपने घर में ही शिष्टाचार, आचार व्यवहार और अन्य बातें सीखता है. अगर आप अपने बच्चे को वित्तीय रूप से जिम्मेदार और समझदार बनाना चाहते हैं, तो आपको उसी तरह बिहेव करना होगा. आपको अपने पैसों के खर्च का हिसाब किताब एवं आय-व्यय से संबंधित पॉजिटिव बातें अपने बच्चों के सामने डिस्कस करनी चाहिए. इससे वे वित्तीय शब्दावली अन्य बारीकियों से परिचित होंगे.
बच्चे को पॉकेट मनी देते समय इतनी हिदायत दें कि वह इसे बेकार चीजों में खर्च ना करे. उसे अपने पास मौजूद पैसे खर्च करने के लिए बजट बनाने की सलाह दें और अपने खर्च का हिसाब एक डायरी में लिखने को कहें. जब बच्चे के पास अपने पास मौजूद पैसे का कंट्रोल होगा, तो वह पूरी तरह जिम्मेदारी से उन्हें खर्च करेगा और बचत करने की योजना भी बनायेगा. इस तरह वे वित्तीय रूप से जिम्मेदार और समझदार बनेंगे.
बच्चों को निवेश के विभिन्न तरीकों, उनके जोखिम, उनसे प्राप्त होने वाले संभावित रिटर्न्स आदि की जानकारी दें. उन्हें बचत खाते, फिक्स डिपॉजिट, शेयर मार्केट, म्युचुअल फंड, गोल्ड ईटीएफ की विस्तृत जानकारी दें. साथ ही मुद्रास्फीति के कारण रुपयों की क्रय शक्ति में कमी जैसी बातें भी सामान्य भाषा में समझाएं.इससे उनके ज्ञान में भी इजाफा होगा.
बच्चों को उदाहरण सहित समझाएं कि मूलभूत जरूरतों व अन्य आवश्यकताओं और इच्छाओं में क्या अंतर है. दूसरों से होड़ के कारण फिजूलखर्ची के क्या दुष्परिणाम हो सकते हैं. उसे यह भी समझाएं कि हमें दूसरों से प्रभावित होकर नहीं, बल्कि अपनी कमाई, बजट और जरूरतों के हिसाब से ही पैसा खर्च करना चाहिए. आय का सारा पैसा कभी खर्च नहीं करना चाहिए, बल्कि आपातकालीन स्थितियों के लिए और संभावित बड़े खर्चों के लिए भी पैसे बचा कर रखने चाहिए.
जब भी आप कोई वित्तीय निर्णय ले रहे हों, तो बच्चों की मौजूदगी में लें. उनसे भी उनकी राय पूछें और अपनी उम्र और समझ के अनुसार विचार प्रकट करने का मौका दें. यह सिर्फ इसलिए, ताकि वह समझ सके कि पैसों के लिए निर्णय लेना वाकई बड़ी बात है और यह काम बहुत सोच समझ कर किया जाना चाहिए.
शिखर चंद जैन (फाइनेंशियल प्लानर सीए जतिन मित्तल से बातचीत पर आधारित)