Ram Manohar Lohia Jayanti 2022: 23 मार्च को जहां भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु के शहादत का दिन है तो वहीं महान समाजवादी चिंतक डॉ. राम मनोहर लोहिया की जयंती भी है. राम मनोहर लोहिया का जन्म 23 मार्च 1910 को अकबरपुर में हुआ था. उनके पिताजी हीरालाल पेशे से अध्यापक और सच्चे राष्ट्रभक्त थे.
राम मनोहर लोहिया ने देश की राजनीति में भावी बदलाव की बयार आजादी से पहले ही ला दी थी. उनके पिताजी गांधीजी के अनुयायी थे. राम मनोहर लोहिया ने अपनी प्रखर देशभक्ति और तेजस्वी समाजवादी विचारों के कारण अपने समर्थकों के साथ ही अपने विरोधियों के बीच भी अपार सम्मान हासिल किया. देश की राजनीति में स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान और स्वतंत्रता के बाद ऐसे कई नेता हुए जिन्होंने अपने दम पर शासन का रुख बदल दिया जिनमें से एक थे राममनोहर लोहिया.
शहीदे आजम भगत सिंह,राजगुरु और सुखदेव को लोहिया जयंती के दिन ही फांसी पर चढ़ाने के कारण राम मनोहर लोहिया ने मृत्यु तक अपने जन्मदिन को नही मनाया. उनके साथियों की शहादतों के बाद उन्होंने खुद का जन्मदिन मनाने से इनकार कर दिया और अपने समाजवादी साथियों से यह अपील की कि वह भी उसे न मनाएं . अगर कोई उनसे जन्मदिन मनाने का आग्रह करता तो वह स्पष्ट रूप से कहते थे कि भगत सिंह और उनके साथियों की शहादतों को याद करना चाहिए और इस दिन को हमें बलिदान दिवस के रूप में मनाना चाहिए.
स्वतंत्र भारत की राजनीति और चिंतन धारा पर जिन गिने-चुने लोगों के व्यक्तित्व का गहरा असर हुआ है, उनमें डॉ. राम मनोहर लोहिया और जयप्रकाश नारायण प्रमुख रहे हैं. भारत के स्वतंत्रता युद्ध के आखिरी दौर में दोनों की भूमिका बड़ी महत्वपूर्ण रही है. डॉ. लोहिया भारतीय राजनीति के संभवतः अकेले ऐसे नेता थे, जिनके पास इसको लेकर एक सुविचारित सिद्धांत था. वे हर हाल में शहादत दिवसों को जयंतियों पर तरजीह देने के पक्ष में थे.
राम मनोहर लोहिया के अनुसार जो लोग ये कहते हैं कि राजनीति को रोजी-रोटी की समस्या से अलग रखो तो यह कहना उनकी अज्ञानता है या बेईमानी है. राजनीति का अर्थ और प्रमुख उद्देश्य लोगों का पेट भरना है. जिस राजनीति से लोगों को रोटी नहीं मिलती, उनका पेट नहीं भरता वह राजनीति भ्रष्ट, पापी और नीच राजनीति है.’ अर्थात राजनीति को हम दरकिनार करके समाज के विकास या समतामूलक समाज की स्थापना की बात नहीं कर सकते हैं. क्योंकि राजनीति भी हमारे समाज का ही हिस्सा है.