Ramayan: रामायण में जब रावण के बेटे मेघनाद ने लक्ष्मण जी को नागपाश बाण से घायल कर दिया, तब श्रीराम को बहुत चिंता हुई. लक्ष्मण जी को ठीक करने का एक ही उपाय था – संजीवनी बूटी. इसके लिए हनुमानजी को हिमालय की ओर भेजा गया. रास्ते में हनुमानजी को राक्षस कालनेमि ने धोखे से रोकने की कोशिश की. यह घटना हनुमानजी की अटल भक्ति और राम नाम के जाप की महिमा को दर्शाती है.
कालनेमि का धोखा
कालनेमि, जो रावण का साथी था, ने हनुमानजी को रोकने के लिए साधु का वेश धारण किया. उसने सोचा कि अगर वह हनुमानजी को बहका सके, तो वे संजीवनी बूटी समय पर नहीं ला पाएंगे और लक्ष्मण जी की जान नहीं बचेगी. कालनेमि ने हनुमानजी से कहा, “थोड़ा आराम कर लो, मैं तुम्हें राम नाम का जाप सिखाऊंगा.
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हनुमानजी की अडिग भक्ति
हनुमानजी को कालनेमि की चालाकी का तुरंत पता चल गया. वे जानते थे कि राम नाम का जाप केवल एक धोखा था, क्योंकि असली भक्ति छल-कपट से नहीं की जाती. हनुमानजी ने बिना कोई समय गंवाए कालनेमि का अंत कर दिया और अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहे.
संजीवनी बूटी का महत्
हनुमानजी की रामजी के प्रति अटल भक्ति और समर्पण के कारण, वे संजीवनी बूटी लेकर समय पर लौटे और लक्ष्मण जी को नया जीवन मिला. यह घटना हमें बताती है कि सच्ची भक्ति और विश्वास हर मुश्किल को पार कर सकती है.
हनुमानजी संजीवनी बूटी लाने क्यों गए थे?
लक्ष्मणजी को मेघनाद के नागपाश बाण से गंभीर चोट लगी थी, जिसके इलाज के लिए संजीवनी बूटी आवश्यक थी. हनुमानजी ने उनकी जान बचाने के लिए हिमालय पर्वत से संजीवनी बूटी लाने का कठिन कार्य किया.
हनुमानजी ने कालनेमि के छल को कैसे नाकाम किया?
हनुमानजी ने अपनी अटल भक्ति और राम नाम के जाप से कालनेमि के छल को पहचाना और उसे परास्त किया. कालनेमि ने उन्हें राम नाम का जाप भूलवाने की कोशिश की, लेकिन हनुमानजी की सच्ची भक्ति ने उन्हें हर संकट से बचा लिया.