संकट मोचन संगीत समारोह का उजास सारे आकर्षणों से है परे : पंडित जसराज
संगीत मार्तंड पंडित जसराज ने एक बार कहा था कि पैसा, पारिश्रमिक और पद अपनी जगह है, लेकिन संकट मोचन संगीत समारोह में प्रस्तुति का जो आनंद है, वह सारे आकर्षणों से परे है.
राजेन्द्र शर्मा, टिप्पणीकार
संगीत मार्तंड पंडित जसराज ने एक बार कहा था कि पैसा, पारिश्रमिक और पद अपनी जगह है, लेकिन संकट मोचन संगीत समारोह में प्रस्तुति का जो आनंद है, वह सारे आकर्षणों से परे है. कुछ वर्ष पूर्व उपमहाद्वीप में विख्यात दिग्गज गजल गायक गुलाम अली भी जब यहां आये थे, तो चकित रह गये थे. और, उनको इस प्रांगण में सुनना भी गौरवमयी पल था. प्रसंगवश, इस समारोह में सुगम संगीत को भी मान्यता है यानी गजल और भजन के कलाकार भी सूची में शोभायमान होते हैं.
भारतीय शास्त्रीय संगीत में भारत का अपनी तरह का इकलौता और सबसे विराट आयोजन माना जाने वाला वाराणसी का संकट मोचन संगीत समारोह के सौवें आयोजन 10 अप्रैल से 16 अप्रैल तक वाराणसी के संकट मोचन मंदिर के उसी प्रांगण होने जा रहा है, जहां सौ साल पहले साल 1923 में इसका पहला आयोजन हुआ था. सात दिन तक सुरों की बिखरेगी, जिसे देखने के लिए देश और दुनिया के कोने-कोने से लोग बाबा विश्वनाथ की नगरी पहुंच रहे हैं.
एक तरफ ऐतिहासिक नगरी का लावण्य, तो दूसरी तरफ सात रोज तक कलाकारों की रस वर्षा. इसके वैभव की जरा कल्पना करें- गंगा किनारे की मनोरम दुनिया और काशी का पुरातन वैभव. उस पर उन कलाकारों, जो प्रथम श्रेणी के सितारा फनकार माने जाते हैं, को निशुल्क सुनने का अवसर मिलना अप्रतिम है. कौन नहीं चाहेगा कि जिन्हें सुनना और मिलना आम तौर पर कठिन होता जा रहा है, उन्हें सहज भाव से देख लेना और इनकी कला का आस्वाद उठाते हुए उनसे बतिया लेना! समारोह के आयोजन का एक इतिहास है.
वाराणसी में दुर्गाकुंड क्षेत्र में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के निकट स्थित संकट मोचन मंदिर एक ऐतिहासिक मंदिर. इसमें रखी भगवान हनुमान की मूर्ति के बारे में कहा जाता है कि इसे कवि गोस्वामी तुलसीदास ने स्वयं अपने हाथों से गढ़ा था. ऐसी भी मान्यता है कि 16वीं शताब्दी में तुलसीदास ने रामचरितमानस का अच्छा-खासा हिस्सा वहीं रहकर लिखा था.
साठ के दशक तक यह संगीत समारोह काशी के स्थानीय कलाकारों पर ही निर्भर था. संकट मोचन मंदिर के तत्कालीन महंत पंडित अमरनाथ मिश्र, जो स्वयं पखावज के सिद्ध कलाकार थे, सरोद वादक पंडित ज्योतिन भट्टाचार्य, तबला वादक पंडित किशन महाराज एवं पंडित आशुतोष भट्टाचार्य की मंडली इस आयोजन की रूप-रेखा तैयार करती थी, पर 1966-67 के दौरान तत्कालीन महंत प्रोफेसर वीरभद्र मिश्र ने इसे स्थानीयता की परिधि से बाहर लाते हुए इसे राष्ट्रीय स्वरूप प्रदान करने की मंशा से पंडित मणिलाल जी (पंडित जसराज जी के बड़े भाई) को आमंत्रित किया. माना जाता है कि हनुमत कृपा से पंडित घराने के तीनों भाई- मणिराम जी, प्रताप जी और जसराज जी देश के दिग्गज शास्त्रीय गायकों की श्रेणी में जा बैठे.
लंबे समय तक संकट मोचन संगीत समारोह में मुस्लिम और महिला कलाकारों का आना-जाना नहीं था, लेकिन वीरभद्र मिश्र ने इस सोच के तहत कि संगीत किसी जेंडर और मजहब की सीमा में कैद नही होता है, महिला और मुस्लिम कलाकारों को अपनी प्रस्तुति देने का अवसर जुटाया. मुस्लिम कलाकारों में बनारस के ही उस्ताद बिस्मिल्लाह खान ने अपनी शहनाई बजाकर अपनी हाजिरी लगायी थी. इस बार के आयोजन में 13 मुस्लिम कलाकार अपनी प्रस्तुति देंगे.
वर्तमान में समारोह की जिम्मेदारी संभाल रहे महंत विश्वंभर नाथ मिश्र ने इस समारोह को शास्त्रीय, जैज, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के कलाकारों के लिए भी खोल दिया. इसकी शुरुआत पाकिस्तान के गजल गायक गुलाम अली ने की थी. तब शास्त्रीय गायक पंडित छन्नूलाल मिश्र ने इसका विरोध किया था, पर उनकी किसी ने न सुनी, बल्कि इसके उलट छन्नूलाल मिश्र की ही खूब आलोचना हुई थी. महंत विश्वंभर नाथ मिश्र कहते हैं कि संकट मोचन संगीत समारोह का प्रारूप संगीत और संस्कृति की पूरी अवधारणा को धार्मिक होने से बचाता है. संगीत समारोह और गंगा में एकरूपता है. जैसे गंगा सभी के लिए हैं, वैसे ही संकट मोचन का मंच भी सभी के लिए है. ये सभी के लिए जीवन के अविकल और निर्विवाद आधार हैं.
वाराणसी से सांसद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अभी तक इस समारोह में चाहते हुए भी सम्मिलित नहीं हो सके हैं. यह कसक उनके दिल में भी है. यह इसी से प्रमाणित होता है कि पिछले वर्ष दो-दो मिनट के अंतराल पर प्रधानमंत्री मोदी ने पांच ट्वीट करते हुए लिखा था कि संकट मोचन संगीत समारोह संगीत प्रेमियों के लिए सौगात है. फिल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन के मन में भी यह मलाल है कि अभी तक वह इस संगीत समारोह में नही जा सके हैं.
संगीत मार्तंड पंडित जसराज ने एक बार कहा था कि पैसा, पारिश्रमिक और पद अपनी जगह है, लेकिन संकट मोचन संगीत समारोह में प्रस्तुति का जो आनंद है, वह सारे आकर्षणों से परे है. कुछ वर्ष पूर्व उपमहाद्वीप में विख्यात दिग्गज गजल गायक गुलाम अली भी जब यहां आये थे, तो चकित रह गये थे. और, उनको इस प्रांगण में सुनना भी गौरवमयी पल था. प्रसंगवश, इस समारोह में सुगम संगीत को भी मान्यता है यानी गजल और भजन के कलाकार भी सूची में शोभायमान होते हैं. शास्त्रीय संगीत में उत्तर भारतीय के साथ दक्षिण भारतीय विधाएं भी जोड़ी गयी हैं. कुछ प्रचलन से बाहर होती विधाएं भी आकर्षण होंगी.