Guru Ravidas Jayanti 2023: आज 5 फरवरी को संत रविदास जयंती है. 14वीं सदी के भक्ति युग में माघी पूर्णिमा के दिन रविवार को काशी के मंडुआडीह गांव में रघु व करमाबाई के पुत्र रूप में जन्मी इस विभूति ने भले ही चर्मकारी के पैतृक व्यवसाय को चुना हो, मगर अपनी रचनाओं से जिस समाज की नींव रखी, वह वाकई अद्भुत है. तो आइए संत रविदास की जयंती पर पढ़ें उनके अनमोल वचन.
किसी के लिए भी पूजा इसलिए नहीं करनी चाहिए क्योंकि वो किसी पूजनीय पद पर बैठा है. अगर व्यक्ति में योग्य गुण नहीं हैं तो उसकी पूजा न करें. लेकिन अगर कोई व्यक्ति ऊंचे पद पर नहीं बैठा है लेकिन उसमें योग्य गुण हैं तो ऐसे व्यक्ति की पूजा करनी चाहिए.
कोई भी व्यक्ति छोटा या बड़ा अपने जन्म के कारण नहीं बल्कि अपने कर्म के कारण होता है. व्यक्ति के कर्म ही उसे ऊंचा या नीचा बनाते हैं.
भगवान उस ह्रदय में निवास करते हैं जहां किसी भी तरह का बैर भाव नहीं होता है. न ही कोई लालच या द्वेष नहीं होता है.
हमें हमेशा कर्म करते रहना चाहिए और साथ साथ मिलने वाले फल की भी आशा नहीं छोड़नी चाहिए, क्योंकि कर्म हमारा धर्म है और फल हमारा सौभाग्य.
कभी भी अपने अंदर अभिमान को जन्म न दें. इस छोटी सी चींटी शक्कर के दानों को बीन सकती है परन्तु एक विशालकाय हाथी ऐसा नहीं कर सकता.
हमेशा कर्म करते रहो लेकिन उससे मिलने वाले फल की आशा नहीं करनी चाहिए. क्योंकि कर्म हमारा धर्म है और फल हमारा सौभाग्य.
मोह-माया में फंसा जीव भटकता रहता है. इस माया को बनाने वाला ही मुक्ती दाता है.
जिस तरह से तेज हवा के चलते सागर में बड़ी लहरें उठती हैं और फिर से सागर में ही समा जाती हैं. सागर से अलग उनका कोई अस्तित्व नहीं होता है. इसी तरह से परमात्मा के बिना मानव का भी कोई अस्तित्व नहीं है.
संत रविदास को जूते बनाने का काम पैतृक व्यवसाय के तौर पर मिला. उन्होंने इसे खुशी से अपनाया. वे अपना काम पूरी लगन से करते थे. यही नहीं वे समय के भी थे.
कभी भी अपने अंदर अभिमान को जन्म न दें. इस छोटी से चींटी शक्कर के दानों को बीन सकती है परन्तु एक विशालकाय हाथी ऐसा नहीं कर सकता.
मोह-माया में फंसा जीव भटक्ता रहता है. इस माया को बनाने वाला ही मुक्तिदाता है.
भ्रम के कारण सांप और रस्सी तथा सोने के गहने और सोने में अन्तर नहीं जाना जाता. लेकिन जैसे ही भ्रम दूर हो जाता है वैसे ही अंतर ज्ञात होने लगता है. इसी तरह अज्ञानता के हटते ही मानव आत्मा, परमात्मा का मार्ग जान जाती है, तब परमात्मा और मनुष्य मे कोई भेदभाव वाली बात नहीं रहती.