Sarhul: स्वस्थ संसार की कामना के साथ मनाया जाता है सरहुल पर्व

प्रकृति पर्व सरहुल के मौाके पर प्रकृति की पूजा की जाती है और स्वस्थ संसार की कामना की जाती है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 10, 2024 4:21 PM
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आलोका कुजूर

Sarhul: झारखंड के आदिवासी समुदाय का सबसे लोकप्रिय पर्व होता है ‘सरहुल’. यह पर्व प्रकृति से जुड़ा हुआ है. धरती पर जितने भी जीव-जंतु हैं उनके बेहतर जीवन के लिए यह उत्सव मनाया जाता है. यह पर्व हमे जीवन को उत्सव की तरह बनाने का संदेश देता है. सरहुल तब मनाया जाता है जब वन में सखुआ के फूल खिलना शुरू हो जाते हैं. प्रकृति नए रूप में दिखाई देती है. प्रकृति फूलो से भर जाती है, नए पत्ते निकल आते हैं, वन मनमोहक हो जाता है.आदिवासी इसे नए साल का आगमन मानते है. झारखंड में सखुआ वृक्ष अधिक पाया जाता है, जिसका विशेष महत्व होता है. आदिवासी समुदाय वन, पहाड़, झरने के साथ साथ जीते है. जीविका और जीवन इनके बीच चलता है, इसलिए वे मानते है कि साल यानी सखुआ का पेड़ जहां होता है वहां हवा, जमीन और पानी काफी शुद्ध होता है. वहां प्रदूषण न के बराबर होता है, तथा पानी का स्रोत अच्छा होता है, जिसकी जरूरत सृष्टि को है. झारखंड के आदिवासी पूर्वज सरहुल को पर्यावरण पर्व के रूप में मानते है.

सखुआ फूल की होती है पूजा

सखुआ के फूल का सरहुल में विशेष रूप से पूजा की जाती है. आदिवासीयों का मानना है की सखुआ के फूल की पूजा इसलिए करते है कि किसी भी जीव की उत्पति के पहले फूल खिलता है, फल लगते है, फल के बाद बीज बनते है. फूल जितने अच्छे होंगे स्रष्टि की रचना भी उतना ही खूबसूरत होगी. आदिवासी किसानों का मानना है कि बेहतर फल से मानव के विकास में सहायता मिलती है. बेहतर बीज से बेहतर सर्जन, बेहतर फसल होगी जिससे पूरी सृष्टि की भूख-प्यास मिटेगी, जिससे बेहरत संसार की रचना होगी. जब संसार स्वस्थ रहता है तो हमारा भविष्य भी बेहतर होता है. इसलिए फूल ही जीवन चक्र को आगे ले जाने की शुरुआत करते है. आदिवासी समुदाय फूल की पूजा कर अपने दरवाजे पर तथा अपने कानों और बालो में लगाते हैं कि भविष्य में वातावरण मानव व जीव जंतुओ के लिए अच्छा हो. वन, हवा, पानी, जमीन फसल सब स्वस्थ हो, तभी मानव व संसार भी स्वस्थ होंगे. ‘सरहुल’ पर्व इसलिए पूरे धूम-धाम के साथ मनाया जाता है. सरहुल के पूर्व नए वन उत्पादन को घरो में नहीं लाए जाता है. जब तक सखुआ के फूल की पूजा नहीं हो जाती है, तब तक वन उत्पादन को अपने घरो में नहीं लाते हैं.

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