Shaheed Diwas 2022: 23 मार्च का दिन शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है. साल 1931 को आज ही के दिन 23 मार्च 1931 को फांसी पर चढ़ाया गया था और इन तीन देशभक्तों ने हंसते-हंसते शहादत को गले लगा लिया था. भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की याद में ही हर साल 23 मार्च को शहीद दिवस (Shaheed Diwas) मनाया जाता है.
27 सितंबर 1907 को अविभाजित पंजाब के लायलपुर (अब पाकिस्तान) में जन्मे भगत सिंह बहुत छोटी उम्र से ही आजादी की लड़ाई में शामिल हो गए और उनकी लोकप्रियता से भयभीत ब्रिटिश हुक्मरान ने 23 मार्च 1931 को 23 बरस के भगत को फांसी पर लटका दिया. उनका अंतिम संस्कार सतलज नदी के तट पर किया गया था.
भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ने 1928 में लाहौर में एक ब्रिटिश जूनियर पुलिस अधिकारी जॉन सॉन्डर्स की गोली मारकर हत्या कर दी थी. इसके बाद भगत सिंह और बीके दत्त (बटुकेश्वर दत्त) ने 8 अप्रैल 1929 को सेंट्रल असेंबली में बम फेंके थे. बम फेंकने के बाद वहीं पर इन दोनों ने गिरफ्तारी दी थी. इसके बाद करीब 2 साल तक जेल में रहना पड़ा और फिर बाद भगत, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी गई.
इसके बाद सेंट्रल एसेंबली में बम फेंक दिया. बम फेंकने के बाद वे भागे नहीं, जिसके नतीजतन उन्हें फांसी की सजा हुई थी. तीनों को 23 मार्च 1931 को लाहौर सेंट्रल जेल के भीतर ही फांसी दे दी गई थी. जिस वक्त भगत सिंह जेल में थे, उन्होंने कई किताबें पढ़ीं थी. 23 मार्च 1931 को शाम करीब 7 बजकर 33 मिनट पर भगत सिंह और उनके दोनों साथी सुखदेव और राजगुरु को फांसी दे दी गई. फांसी पर जाने से पहले वे लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे.
कैसे मनाया जाता है शहीद दिवस: इस मौके पर पूरा देश शहीदों की कुर्बानी को याद करता है और उन्हें नमन करता है। देश के गणमान्य लोग एक साथ इकट्ठा होकर शहीदों की प्रतिमाओं पर फूल चढ़ाते हैं। वहीं, देश के सशस्त्र बल के जवान शहीदों को सम्मानजनक सलामी देते हैं। इसके अलावा, स्कूल-कॉलेज में भी इस उपलक्ष्य में वाद-विवाद, भाषण, कविता-पाठ और निबंध प्रतियोगिता जैसे कार्यक्रमों का आयोजन होता है।
शहीद दिवस को मनाकर हम न केवल शहीदों को श्रद्धांजलि देते हैं बल्कि आज की पीढ़ी को उन शहीदों के जीवन और बलिदानों से परिचित भी कराते हैं. भगत सिंह ने देश की आजादी के लिए जिस साहस के साथ शक्तिशाली ब्रिटिश सरकार का मुकाबला किया, वह युवकों के लिए हमेशा ही एक बहुत बड़ा आदर्श बना रहेगा.