शनि सदैव अनिष्टकारी नहीं होता. वह व्यक्ति के जीवन में आश्चर्यजनक उन्नति भी देता है. इस विषय में शास्त्र कहते हैं-
मंत्र
क्रोडं नीलाज्जन प्रख्यं नीलवर्ण समस्रजं ।
छायामार्तण्ड-सम्भूतं नमस्यामि शनैश्चरम् ।।
सूर्य प्रभो दीर्घदेहो विशालाक्ष शनिप्रिय ।
जन्म के समय शनि 1,6,11 स्थानों में हो तो सुवर्णपाद, 2,5,9 स्थानों में हो तो रजतपाद, 3,7,10 स्थानों में हो तो ताम्रपाद तथा 4,8,12 स्थानों में हो तो लौहपाद कहलाता है. लौहपाद में धन का नाश, सुवर्णपाद में सर्वसुखदायक, ताम्रपाद में सामान्य फलदायक तथा रजतपाद में शनि का प्रवेश सौभाग्यप्रद रहता है.
जातक की चन्द्रराशि से जब गोचर का शनि स्थितिवश द्वादश, प्रथम व द्वितीय (12,1,2) स्थानों में आता है तो शनि की साढ़ेसाती कहा जाता है. यह 7 वर्ष एवं 6 महीना की होती है. शनि कर्म फलदाताहै, साढ़ेसाती के समय शनि दंडनायक बन जाते हैं. इस समय मनुष्य को बुरे कर्म के लिए दुःख उठाना पड़ता है. शनि की चन्द्रमा से चतुर्थ एवं अष्टम भाव में स्थिति होने पर ढैय्या कहलाती है. साढ़ेसाती का प्रभाव साढ़े सात वर्ष एवं ढैय्या का प्रभाव ढाई वर्ष तक रहता है. प्रत्येक राशि में शनि ढाई वर्ष रहता है इसलिए तीनों राशियों में साढ़े सात वर्ष रहेगा.
शनि 12वें स्थान में हो तो ढाई वर्ष तक उसकी दृष्टि कहलाती है.
जन्मराशि में हो तो ढाई वर्ष तक भोग कहलाती है.
द्वितीय स्थान में हो तो ढाई वर्ष तक लात कहलाती है.
अर्थात् इस साढ़ेसाती में शनि नेत्र, उदर एवं पैरों में रहता है. उसी के अनुसार जातक पर प्रभाव डालता है.
शनि की साढ़ेसाती हर मनुष्य के जीवन में तीन बार आती है.
प्रथम साढ़ेसाती का प्रभाव शिक्षा एवं माता-पिता पर पड़ता है.
द्वितीय साढ़ेसाती का प्रभाव कार्यक्षेत्र, व्यापार-व्यवसाय व आर्थिक पर पड़ता है.
तृतीय साढ़ेसाती का सर्वाधिक प्रतिकुल प्रभाव स्वास्थ्य पर पड़ता है.
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शनि की साढे साती व ढैय्या के अशुभ प्रभाव को कम करने के लिए मनुष्य को ईमानदारी,सच्चाई,मेहनत से काम करना चाहिए.
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शास्त्रों में साढ़ेसाती के प्रभाव कम करने के लिए दान,व्रत-पूजन,मंत्र,रत्न धारण आदि उपाय वर्णित है.जिनके विधिपूर्वक पालन करने से शनि के दुष्प्रभाव से बचा जा सकता है.
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मन्त्र का प्रयोग-शनि की साढ़ेसाती से मुक्ति के लिए प्रातः स्नान के बाद 11, 21 या 108 बार शनि गायत्री मंत्र का जाप अतिशुभ माना गया है.
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तेल का दीपक जलाकर निम्न मंत्र श्रद्धा से रूद्राक्ष की माला से जप करें- ऊँ भग-भवाय विद्महें मृत्यु रूपाय धीमहि तन्नोः शनिः प्रचोदायात् ।।
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शनि के ध्यान मंत्र-
नीलाज्जन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम् ।
छायामार्तण्ड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम् ।।
जपनीय शनिदेव का मंत्र-
ऊँ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैय नमः
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वनस्पति धारण- शनि के अशुभ प्रभाव कम करने के लिए बिच्छु की जड़
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लम्बी, काले धागे में लपेटकर दाहिने हाथ में, महिलाएं बांए हाथ में बांध सकती हैं.
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शमी वृक्ष की जड़ भी काले कपड़े में लपेटकर बाजू में बांधकर ऊँ शं शनैश्चराय नमः । 108 बार बोलकर धारण करने से रोग,कष्ट व दरिद्रता दूर होती है.
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हर्बल स्नान-शनि की साढ़े साती या ढैय्या का क्रूर दृष्टि होने पर लोहे की बाल्टी में काले तिल,सुरमा,नागरमोथा,सौंफ,शमी के पत्ते डालकर सभी औषधियों का चूर्ण करके स्नान करने से,सभी प्रकार के नाड़ी के रोग,वायु रोग,शापटिका का दर्द,त्वचा रोग दूर हो जाते हैं.
रत्न धारण- जन्म कुंडली या हस्तरेखा का परीक्षण कर नीलम या कटैला की अंगुठी को मन्त्रपूत करवाकर शनिवार को सूर्यास्त के बाद विधिपूर्वक धारण करें.
लोहे का छल्ला-जो लोग नीलम या कटैला धारण नहीं कर सकते वह घोड़े की नाल का या नाव की कील का छल्ला रवि पुष्य नक्षत्र में अंगुठी या कढ़ा बनवाकर मध्यमा अंगुली में कलाई में शनिवार को धारण करें. इससे लकवा,नसों के रोग तथा ऊपरी बाधाओं का प्रकोप शांत हो जाता है.
छल्ला या कढ़ा धारण करने का मंत्र निम्नलिखित है-
मंत्र
क्रोडं नीलाज्जन प्रख्यं नीलवर्ण समस्रजं ।
छायामार्तण्ड-सम्भूतं नमस्यामि शनैश्चरम् ।।
सूर्य प्रभो दीर्घदेहो विशालाक्ष शनिप्रिय ।
मंदवारः प्रसन्नात्मा पीड़ा दहतु में शनि ।।
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घोड़े की नाल-शनि की बाधा दूर करने के लिए नाव की कील या घोड़े की नाल गंगा जल में धोकर घर के प्रवेशद्वार के ऊपर U आकार में लगाने से समस्त ऊपरी बाधाओं का प्रकोप सदा के लिये शांत हो जाता है. नाल पर हनुमान जी के मंदिर का सिंदुर का तिलक अवश्य लगायें. निम्न मंत्र पढ़कर नाल को अभिमंत्रित करने से नाल की शक्ति चार गुनी बढ़ जाती है.नाल लगाने के समय इस मंत्र का 11 बार जप करें.
मंत्र
ऊँ नमो भगवते शनैश्चराय सूर्य पुत्राय नमः
1.शनिवार को गरीबों को दान,वस्त्र व भोजन दें.
2.काले कुत्तों को बेसन के लड्डू खिलाने से रूका व्यवसाय शीघ्र ही चलने लगता है.
3.शनिवार का व्रत रखें,एक समय सूर्यास्त के बाद में ही भोजन करें.
4.गाय की सेवा करने से शनिदेव प्रसन्न होते हैं.
5.कोई भी व्यापारिक लोहे या प्लास्टिक की सामग्री शनिवार या अमावस्या के दिन
न खरीदें.
6.शनिवार के दिन सायंकाल पीपल के वृक्ष के नीचे सरसों के तेल का दीपक
जलावें. थोड़े काले तिल दीपक में अवश्य डालें.
7.शनिवार को सूर्यास्त के बाद श्रीहनुमान जी का दर्शन-पूजन करें तथा श्रीहनुमान चालीसा का 3, 7 या 11 पाठ करें.
डॉ.एन.के.बेरा, 8986800366
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