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शीत का संदेश ले आयी शरद पूर्णिमा, चांद से अंत समय तक उत्साही और आकर्षक बने रहने का लें संकल्प

आश्विन माह की शरद पूर्णिमा शारदीय नवरात्र की समाप्ति के बाद शीत का संदेश लेकर आती है. शीत ऋतु में खान-पान की विविधता तो होती ही है, स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से भी उत्तम ऋतु है . ऐसी मान्यता है कि इस दिन आकाश से अमृत की वर्षा होती है तथा इसी दिन से ही मौसम बदलता है यानी सर्दियों का आंरभ होता है.

डॉ कविता विकास : चंद्रमा जब सबसे सुंदर होता है, उस दिन वह प्रौढ़ावस्था के अंतिम चरण में होता है, यानी वह दिन पूर्णिमा होता है और बात जब शरद पूर्णिमा की हो, तब तो वर्ष के सबसे सुंदर रूप में होता है चांद, सोलह कलाओं से परिपूर्ण. यह चांद का अति विलक्षण रूप है, जब वह पृथ्वी के सबसे निकट भी होता है. इतना निकट कि चकोर भी अपनी लालसा आज पूरी कर ले, पर चकोर को भी पता है, सच्चे प्रेम की अंतिम परिणति विरह ही है.

आश्विन माह की शरद पूर्णिमा शारदीय नवरात्र की समाप्ति के बाद शीत का संदेश लेकर आती है. शीत ऋतु में खान-पान की विविधता तो होती ही है, स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से भी उत्तम ऋतु है यह. छुटपन से घर के बड़े-बुजुर्गों से सुनती आयी हूं कि आज के दिन खीर बना कर उसे छत पर ऐसे ढंक कर रखा जाता है कि चांद की रोशनी उसमें समा जाये, फिर उसे प्रसाद के रूप में जब ग्रहण किया जाता है, तो उसमें कई तरह के रोग और विकारों को दूर करने की क्षमता आ जाती है. अध्ययन के अनुसार, दुग्ध में लैक्टिक अम्ल और अमृत तत्व होता है, जो किरणों से अधिक मात्र में शक्ति का शोषण करता है. अगर खीर चांदी के पात्र में रखा जाये, तो उसमें अधिक प्रतिरोधक क्षमता आ जाती है.

शरद पूर्णिमा पौराणिक गाथा
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एक पौराणिक गाथा के अनुसार, इसी दिन श्रीकृष्ण ने गोपियों संग महारास रचाया था. इसलिए बृज क्षेत्र में शरद पूर्णिमा को रास पूर्णिमा भी कहा जाता है. प्रेम और कलाओं से पूर्ण चंद्रमा की रोशनी यमुना पर जब पड़ती थी, तो मानो पूरा वृंदावन दूध में नहा जाता था. उस समय का वर्णन शब्दों में व्यक्त करना संभव नहीं है. श्रीकृष्ण की बांसुरी पर गोपियों की थिरकन उसी अलौकिक रोमांच का प्रतिफल था.

इस दिन भगवान विष्णु की व्रत कथा पढ़ी जाती है. संतान सुख के लिए इसे विशेष तौर पर किया जाता है. कहते हैं, इसी दिन लक्ष्मीजी अपने वाहन उल्लू पर विराजमान होकर पृथ्वी की सैर को निकलती हैं और रात में जाग कर जहां लोग व्रत-कथा पढ़ रहे होते हैं, उन पर अपना वरद-हस्त भी रखती हैं, इसलिए इसे ‘कोजागरा व्रत’ यानी ‘कौन जाग रहा है’ व्रत भी कहते हैं. मान्यता है लंकाधिपति रावण भी शरद पूर्णिमा के दिन किरणों को दर्पण के माध्यम से अपनी नाभि पर ग्रहण करता था, जिससे उसे पुनर्यौवन शक्ति मिलती थी. शिव-पार्वती और कार्तिकेय की भी आज के दिन पूजा की जाती है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन आकाश से अमृत की वर्षा होती है तथा इसी दिन से ही मौसम बदलता है यानी सर्दियों का आंरभ होता है.सोमचक्र, नक्षत्रीय चक्र और आश्विन के त्रिकोण के कारण शरद ऋतु से ऊर्जा का संग्रह होता है, जिसका निग्रह वसंत में होता है. चंद्रमा का ओज इस दिन इतना ऊर्जावान होता है कि समंदर की लहरें हद की सीमा तोड़ कर चांद तक पहुंचने की होड़ लगा देती हैं. मान्यतानुसार, देवताओं का प्रिय पुष्प ब्रह्मकमल शरद पूर्णिमा को हो खिलता है.

यह है प्रकृति का नायाब करिश्मा 
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मान्यताएं और पौराणिक कथाएं आज भी हमारी आस्था का केंद्र हैं. हमारी आदतों में ये मान्यताएं इस तरह से रची-बसी हैं कि हमारे तमाम उत्सव और व्रत विधान उनसे ही संचालित होते हैं. यही हमारी संस्कृति की शोभा हैं और इनसे ही हमारी संस्कृति को वृहद आयाम भी मिलता है. अनेक मान्यताएं विज्ञान की कसौटी पर खरी उतरती हैं. शरद पूर्णिमा की रात चांद की सुंदरता को महज निरी आंखों से निहारने का महत्व नहीं है, बल्कि उसे महसूस करने की भी घड़ी है. आज भी कई घरों में रात को खीर बनाने की परंपरा है, भले ही उन्हें छत पर न छोड़ा जाये, पर चांद को एक बार दिखा कर उसे प्रसाद के रूप में अवश्य ग्रहण किया जाता है.

जीवन की आपाधापी में लोग समय से पहले ही वृद्ध हो रहे हैं, चांद से अंत समय तक उत्साही और आकर्षक बने रहने का संकल्प लें. शरद पूर्णिमा के चांद को अब तक नहीं देखा है, तो इस बार अवश्य देखें, आज के हाई-टेक बच्चों को पौराणिक गाथाएं सुनाकर अपनी संवृद्ध संस्कृति का ज्ञान कराएं और कुछ पल निर्मल-शीतल दूधिया चांदनी में ठहर कर इस अमृत-वर्षा का आनंद लें. यह आपको प्रकृति के करीब ले जायेगा. तब आप महसूस करेंगे कि यह प्रकृति के नायाब करिश्मा का एक अप्रतिम उदाहरण है. अगर आप इसके प्रति संवेदनशील होंगे, तो खुद को प्रकृति के करीब पायेंगे. शरद पूर्णिमा शीत ऋतु के आगाज का संदेश लेकर भी आती है, तो आइए हम सब एक नये मौसम का स्वागत करें और अपने जीवन को आनंद के इन पलों से जोड़े रखें.

नयनाभिराम मावस, श्वेताभ चांदनी है,

महकी हुईं दिशाएं, यह रात मदभरी है.

सुनकर शरद की आहट, उपवन संवर रहे हैं,

मौसम सुहावना है, कण-कण में ताजगी है.

सोलह कलाएं धरकर, मोहक हुआ है हिमकर,

छलका रहा है अमरित, मुखरित विभावरी है.

यह पूर्णिमा शरद की, है लक्ष्मी को अर्पित,

सुख-संपदा जो देती, वह पद्मसुंदरी है.

सुख-दुख है घटता-बढ़ता, ज्यों रूप चंद्रमा का,

कट-बढ़ के पूर्णता को, पाने में आदमी है.

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