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बड़े काम के होते है ये कीड़े , कपड़ों पर ऐसे होता है इनका इस्तमाल

क्या आपने कभी जानने की कोशिश की कि सिल्क तैयार करने की प्रक्रिया आखिर क्या है. अगर आपको भी सिल्क के कपड़ें पहनना पसंद है तो ये खबर आपको एक बार जरूर पढ़नी चाहिए. तो चलिए इस खबर के माध्यम से हम आपको रेशम के धागे बनाने की पूरी प्रक्रिया के बारे में बताते है.

सर पे टोपी लाल हाथ में रेशम का रूमाल हो तेरा क्या कहना….ये गाना तो आपने सुना ही होगा, लेकिन आज यहां हम गाने की नहीं, बल्कि रेशम की बात कर रहे है. रेशम यानि सिल्क भला किसे नहीं भाता, सिल्क की सारी पहनना हर दूसरी महिला की पहली पसंद है. सिल्क का कपड़ा जितना मुलायम होता है उतना ही महंगा भी होता है. ये तो सब जानते है कि सिल्कवॉर्म नाम के कीड़े से सिल्क बनता है लेकिन क्या आपने कभी जानने की कोशिश की कि सिल्क तैयार करने की प्रक्रिया आखिर क्या है. अगर आपको भी सिल्क के कपड़ें पहनना पसंद है तो ये खबर आपको एक बार जरूर पढ़नी चाहिए. तो चलिए आपको हम रेशम के धागे बनाने की पूरी प्रक्रिया के बारे में बताते है.

300 से 400 अंडे देती है मादा सिल्कवर्म

ये तो सभी जानते होंगे कि सिल्कवर्म के लार्वा से ही सिल्क (रेशम) का धागा बनाया जाता है और सभी एक सेरिकल्चर टर्म के बारे में भी सुना ही होगा. जिसे सिल्कवर्म की खेती के लिए किया जाता है. मादा सिल्कवर्म 300 से 400 अंडे देती है. सभी अंडों को एक जगह रखा जाता है. लगभग 10 दिनों के अंदर, प्रत्येक अंडे से एक कीड़ा न‍िकलता है. जिसे लार्वा भी कहा जाता है. इसके बाद हाथों से सिल्क की कीड़े को निकाला जाता है और कंपार्टमेंट्स में रखा जाता है. इन कंपार्टमेंट्स में शहतूत की पत्तियां रखी जाती हैं. सिल्कवर्म इन पत्तियों को खाकर 3 इंच तक बढ़ जाते हैं. जब इनका खाना बंद होता है तब यह कीड़े अपने मुंह से एक तरल प्रोटीन को निकालते है, जो हवा के संपर्क में आने पर सख्त हो जाता है और एक धागे का रूप ले लेता है. इस तरह से ये कीड़े बॉल के आकार का कोकून बनाते हैं.

कोकून से ऐसे निकाला जाता है धागा

सिल्क बनाने का सबसे मुश्किल प्रॉसेस अब शुरू होता है. कोकून से धागे को निकालने के लिए कोकून को उबलते पानी में डाला जाता है. ताकि धागे को आसानी से निकाला जा सके. धागा बनाने के दौरान कीड़ा खुद अपने ही बनाए रेशमी जाल में फस कर मर जाता है. यहां बता दें कि एक कोकून से 500 से 1300 मीटर लंबा रेशमी धागा प्राप्त होता है. कोकून से धागा निकालने के बाद उसे बार-बार धोया जाता है, ताकि उसका नेचुरल गम निकल सके. धागा निकालने के बाद उसे लपेटने का प्रॉसेस शुरू होता है. इस प्रॉसेस में घंटों लग जाता है. हालांकि, ये विधी यहीं खत्म नहीं होती है. धागे को लपेटने के बाद उसे सुखाया जाता है, क्योंकि पानी से तुरंत निकले पर धागा थोड़ा नरम रहता है ऐसे में उसे सुखा कर थोड़ा सख्त किया जाता है तब जाकर आगे का प्रॉसेस शुरू होता है.

रेशम उत्पादन में भारत दूसरे स्थान पर

धागे को सुखाने के बाद उसे डाई किया जाता है. इसके बाद अलग-अलग धागों को बंडल्स में बांधकर डाई किया जाता है. इसे कई दिनों तक दोहराया जाता है. ऐसा करने से सही कलर टोन और क्वालिटी बनती है. डाई किये गए धागों को फिर से धूप में सुखाया जाता है. धागों के सूखने के बाद रेशम के धागों को स्पिन किया जाता है. आखिरकर इन सारे प्रॉसेस के बाद रेशम का धागा कपड़ा बनाने के लिए पूरी तरह तैयार हो जाता है. यहां बता दें कि रेशम उत्पादन में भारत चीन के बाद दूसरे स्थान पर है. 

भारत के इन क्षेत्रों में होता है रेशम का उत्पादन

शहतूत रेशम मुख्य रूप से कर्नाटक, तमिलनाडु, तेलंगाना के दक्षिणी राज्यों में उत्पादित किया जाता है, और गैर-शहतूत किस्मों (वान्या रेशम) जैसे टसर का उत्पादन छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा और पश्चिम बंगाल में किया जाता है. मोगा रेशम असम राज्य के लिए विशिष्ट है और एरी रेशम मेघालय और नागालैंड में उगाया जाता है. कर्नाटक शहतूत रेशम का बड़ा उत्पादक है. कर्नाटक भारत में रेशम उद्योग का मुख्य केंद्र भी है.

यहां हुई थी सबसे पहले रेशम की खोज

रेशम की खोज 118 ईसा पूर्व चीन में हुई थी. इसका उत्पादन सबसे पहले नवपाषाण काल में चीन में शुरू हुआ और वहां से फिर पूरी दुनिया में फैल गया. रेशम उत्पादन में भारत चीन के बाद दूसरे स्थान पर है. यहां हर तरह का रेशम तैयार किया जाता है और उसे बाहर भी भेजा जा रहा है. रेशम का रुमाल, शॉल पूरी दुनिया में मशहूर है.

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