हम में से ज्यादातर लोग आज सोशल मीडिया (social media) के आदी हैं. चाहे आप इसका इस्तेमाल दोस्तों और रिश्तेदारों से जुड़ने के लिए करें या वीडियो देखने के लिए. सोशल मीडिया हम में से हर एक के लिए जाना-पहचाना व लोकप्रिय माध्यम है. टेक्नोलॉजी और स्मार्ट उपकरणों के प्रभुत्व वाली दुनिया में नेटफ्लिक्स को बिंग करना या फेसबुक पर स्क्रॉल करना हर उम्र वर्ग में आम बात हो गयी है. ये वेबसाइट और ऐप हमारा ज्यादातर समय खा रहे हैं, इतना कि यह अब एक लत-सी हो गयी है. जबकि सोशल मीडिया पर बीतने वाला समय अपना कौशल विकसित करने, प्रियजनों के साथ आनंद लेने या बाहरी दुनिया की खोज में खर्च किया जाना चाहिए.
अगर आप समाज से अलग-थलग महसूस करते हैं और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जैसे फेसबुक, इंस्टाग्राम जैसे ऐप पर ज्यादा समय बिताते हैं, तो एक नये शोध के अनुसार, इससे स्थिति और बिगड़ सकती है. सोशल मीडिया से युवाओं में अवसाद बढ़ रहा है. फेसबुक से डिप्रेशन का खतरा 7% और चिड़चिड़ापन का खतरा 20% बढ़ा है. सोशल मीडिया ने मोटापा, अनिद्रा और आलस्य की समस्या बढ़ा दी है. ‘फियर ऑफ मिसिंग आउट’ को लेकर भी चिंताएं बढ़ गयी हैं. स्टडी के मुताबिक, सोशल मीडिया से सुसाइड के मामले बढ़े हैं. इंस्टाग्राम से लड़कियों में हीन भावना आ रही है. सोशल मीडिया चेक और स्क्रॉल करना, पिछले एक दशक में तेजी से लोकप्रिय गतिविधि बन गयी है. अधिकांश लोगों द्वारा सोशल मीडिया का उपयोग करने से ऐसा हो रहा है. वास्तव में, सोशल मीडिया एक व्यवहारिक लत है, जो इस प्लेटफॉर्म पर लॉग ऑन करने या उपयोग करने के लिए एक अनियंत्रित आग्रह से प्रेरित है.
वर्तमान समय में फोन बड़े से लेकर बच्चों तक के लिए जरूरी हो गया है. बच्चों के स्कूल की पढ़ाई भी ऑनलाइन हुई है. ऐसे में बच्चे फोन पर ज्यादा समय बिताते हैं. फोन के ज्यादा इस्तेमाल की वजह से बच्चों को सोशल मीडिया की लत भी लग रही है. इससे बच्चों की नींद पर असर पड़ रहा है और नजर भी कमजोर हो रही है. नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ की रिपोर्ट में ये साफ हुआ है कि अगर कोई बच्चा एक हफ्ते तक लगातार सोशल मीडिया का प्रयोग करता है, तो वह एक रात तक की नींद भी खो सकता है. अक्सर बच्चों के साथ ऐसा होता है कि जब वो सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर सोते हैं, तो आंखें बंद करने के बाद भी उनके दिमाग में वह चीजें चलती रहती हैं, जो वो देखकर सोये हैं. जबकि, कई किशोर दैनिक आधार पर (फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर, यूट्यूब, वाइन, स्नैपचैट और वीडियो गेम सहित) ऑनलाइन मीडिया के किसी न किसी रूप में संलग्न होते हैं. किशोरों में सोशल मीडिया की लत अत्यधिक खतरनाक है. नकारात्मक प्रभाव के बावजूद इसे रोकने में असमर्थता चिंता का विषय बन गया है.
दुनिया में हर पांचवा युवा यानी लगभग 19% युवाओं ने साल भर में किसी न किसी तरह के खेल में पैसा लगाया है. इसमें वे कई बार ऑनलाइन सट्टेबाजी का शिकार हुए हैं. आज सोशल मीडिया के अत्यधिक उपयोग से युवा वर्ग में न सिर्फ आत्मविश्वास कम हो रहा है, बल्कि अकेलेपन का भी आभास बढ़ रहा है. यही कारण है कि हताशा और चिंता भी बढ़ती है. पिछले काफी समय से सोशल मीडिया पर वैसे तो सभी वर्गों की सक्रियता बढ़ी है, लेकिन सबसे ज्यादा प्रभावित युवा वर्ग हो रहा है. यहां तक कि आत्महत्या का ख्याल भी युवाओं में बढ़ रही है. लंबे समय तक सोशल मीडिया पर बने रहने के कारण मानसिक स्वास्थ्य पर विपरीत असर हो रहा है. ऐसे मामलों में 15 से 45 वर्ष आयु के केस अधिक सामने आ रहे हैं.
टेक्नोलॉजी और स्मार्ट गैजेट वाली दुनिया में नेटफ्लिक्स को बिंग करना या फेसबुक पर स्क्रॉल करना, इन दिनों मिनटों और घंटों को खोना आम बात हो गयी है. ये वेबसाइट और ऐप हमारा ज्यादातर समय खा रहे हैं. यह मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों, जैसे आत्मसम्मान में कमी, अकेलेपन की भावना, अवसाद और चिंता का कारण बन सकता है.
कम से कम एक या दो बार, ‘सोशल मीडिया फ्री’ दिवस मनाएं. गैजेट से दूरी बनाएं. यह शनिवार/रविवार को हो सकता है या जो भी दिन आपको उपयुक्त लगता हो. समय के साथ, हमें अपने स्क्रीन पर दिखने वाले छोटे-छोटे इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप या फेसबुक आइकन की आदत हो जाती है. नया क्या है, यह देखने के लिए नियमित रूप से अपने फोन की जांच करना हमारी आदत बन गयी है. आप अपने सोशल मीडिया के उपयोग को कम करने के लिए दिन में एक बार नोटिफिकेशन देख सकते हैं.