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पापड़ के चटपटे जायके, विदेशों में इस नाम से है मशहूर

मसालेदार पापड़ों में अमृतसरी पापड़ सबसे अधिक मशहूर हैं. पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी की कालजयी कहानी ‘उसने कहा था’ के नायक की मुलाकात अपनी होने वाली पत्नी से किशोरी रूप में एक पापड़ बेचने वाले की दुकान पर ही होती है.

हिंदुस्तानी थाली में या केले के पत्ते में पापड़ का खास स्थान है. रेस्तरां में वेटर मेन्यू के साथ ही पहले से भुने या तले कुछ पापड़ तश्तरी में सामने रख देता है ताकि इन्हें चबाते आप अपनी भूख जगायें और यह तय करें कि खाना क्या है. अंग्रेजी राज के दौरान हमारे गोरे हुक्मरानों ने पापड़ों को पोपडम नाम भी दिया, जो विदेशों में लोकप्रिय हो गया है. बहुत कम लोग पापड़ों के अद्भुत जायकों के बारे में सोच-विचार करते हैं और इसके अनुसार इनकी खरीद-फरोख्त करते हैं. पहला फर्क तो उत्तर भारतीय और दक्षिण भारतीय पापड़ों का है. उत्तर में पापड़ उरद या मूंग की दाल के बनाये जाते हैं. व्रत-उपवास के दिन खाने वाले पापड़ आलू या साबूदाने से तैयार होते हैं. पापड़ सादे, हल्के नमकीन या मिर्च-मसाले वाले हो सकते हैं.

मसालेदार पापड़ों में अमृतसरी पापड़ सबसे अधिक मशहूर हैं. पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी की कालजयी कहानी ‘उसने कहा था’ के नायक की मुलाकात अपनी होने वाली पत्नी से किशोरी रूप में एक पापड़ बेचने वाले की दुकान पर ही होती है. इतिहासकारों का मानना है कि अमृतसर की दुकान पर पापड़ का चस्का लगाने वाले राजस्थान के मारवाड़ी सौदागर थे, जो कश्मीर के शाल-दुशाले की खरीद के लिये इस पवित्र नगरी में पहुंचते थे. जाहिर है, दाल के बने धूप में सुखाये पापड़ काफ़ी टिकाऊ होते हैं और इनके सहारे परदेस मे भी घर का स्वाद आनंददायक हो जाता है. राजस्थान में न केवल पापड़ खाने के साथ खाये जाते हैं, बल्कि इनकी सब्जी भी पकायी जाती है. सारा कौशल इस बात का है कि पापड़ की शक्ल बरकरार रहे, गल कर लुगदी ना हो जाये और खाने वाले को इस बात का पता चल सके कि पापड़ का मुख्य जायका काली मिर्च, जीरे वाला था या लाल मिर्च का.

हिंदी मुहावरा है- तरह-तरह के पापड़ बेलना. जब से हमारी जिंदगी की रफ़्तार तेज हुई है और संयुक्त परिवार बिखरने लगे, घरों में पापड़ बेलना समाप्त हो गया है. स्वयंसेवी महिला संगठनों या कुटीर उद्योग पापड़ खाने वालों की पसंद के अनुसार बड़े पैमाने पर पापड़ों का उत्पादन करते हैं. गुजरात में इलाबेन ने लिज्जत पापड़ उद्योग की नींव डाली थी, जो अनूठी सहकारिता के लिए विश्वविख्यात है. अनेक राज्यों में खादी ग्राम उद्योग भी अलग-अलग जायकों के पापड़ अपने द्वारा पोषित-प्रोत्साहित इकाइयों में बनवाता है. पर जितनी विविधता अमृतसरी पापड़ों में चखने को मिलती है, वह अन्यत्र दुर्लभ है.

दक्षिण भारत में पापड़ ज्यादातर चावल के आटे से तैयार होते हैं और यह आकार में बहुत छोटे होते हैं. दिलचस्प बात यह है कि सागर तटवर्ती गोवा, कर्नाटक और केरल में झींगे और मछलियों से भी पापड़ बनाये जाते हैं. वहीं हमें कद्दू के पापड़ चखने का भी अवसर मिला है. आम तौर पर यह पापड़ नाम से नहीं, बल्कि शिर्प प्रॉन या फिश वेफर्स के नाम से बाजार में पेश किये जाते हैं. एक मजेदार बात और, कहीं पापड़ खाने के शुरू में परोसा जाता है या कहीं खाने के साथ खाया जाता है, तो सिंध में यह खाने के अंत को सूचित करता है.

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