लाल चींटियों की मसालेदार चटनी के हैं कई हेल्थ बेनेफिट, झारखंड के आदिवासियों से सीखें रेसिपी

देमता चटनी आदिवासी समाज के लोगों द्वारा बनाया जाने वाला एक अनोखा व्यंजन है, जिसे जंगलों में सखुआ और आम के पेड़ के नीचे पाई जाने वाली लाल चींटियों से बनाया जाता है. ये सुनने में तो बहुत ही विचित्र लगता है पर आदिवासी समाज के लिए ये एक लोकप्रिय व्यंजन है.

By Saurabh Poddar | February 15, 2024 3:57 PM

झारखंड पहाड़ों और जंगलों से घिरा हुआ आदिवासी बहुल राज्य है. आदिवासी समुदाय के लोग प्रकृति के निकट होते हैं और यही वजह है कि उनका खानपान काफी हेल्दी होता है. आदिवासी समाज के लोग सदियों से प्रकृति से मिलने वाली चीजों का उपयोग अपने जीवन में करते हैं. झारखंड के जंगलों में पाई जाने वाली सामग्रियों से न सिर्फ स्वादिष्ट भोजन बनता है, बल्कि इसके कई औषधीय गुण भी होते हैं. हम आपको बतायेंगे कुछ ऐसी सामग्रियों के बारे में जो आदिवासी समाज में प्रसिद्ध हैं और गुणों के खान हैं.

लाल चींटियों की चटनी देमता

देमता चटनी आदिवासी समाज के लोगों द्वारा बनाया जाने वाला एक अनोखा व्यंजन है, जिसे जंगलों में सखुआ और आम के पेड़ के नीचे पाई जाने वाली लाल चींटियों से बनाया जाता है. ये सुनने में तो बहुत ही विचित्र लगता है पर आदिवासी समाज के लिए ये एक लोकप्रिय व्यंजन है. देमता चटनी को बनाने के लिए इसे टमाटर, अदरक, लहसुन, मिर्च और नमक मिलाकर पीस लिया जाता है. इन चींटियों के अंडों को भी खाया जाता है. चींटियों के अंडों से सब्जी और सूप बनाया जाता है. ये प्रोटीन से भरपूर होता है. इसे खाने से आंख की रौशनी बढ़ती है और ये आपके इम्युनिटी को बढ़ना में भी मदद करता है. बुखार, खांसी और ठंड जैसी तकलीफों को भी ये दूर करता है.

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बेंग साग

बेंग साग झारखंड में पाया जाने वाला एक साग है. इसका वैज्ञानिक नाम सेंटिला एसियाटिका है और आयुर्वेद में इसे ब्राह्मी कहा जाता है. झारखंड के लोग इसे विभिन्न प्रकार से बनाकर खाते हैं. आदिवासी लोग इससे अक्सर चटनी बनाकर खाते है. बेंग साग को आलू या फिर चने के साथ फ्राई करके भी खाया जाता है. ये स्वाद में हल्का कड़वा होता है. बेंग साग में बहुत सारे गुण होते है. इसमें भारी मात्रा में आयरन और फाइबर पाया जाता है. बिरसा एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी के रिसर्च के अनुसार बेन्ग साग जॉन्डिस जैसी बीमारी को ठीक करने में मदद करता है. ये रक्त शोधक के रूप में भी काम करता है. बेंग साग गर्मी और बरसात के मौसम में ज्यादा पाया जाता है.

कुदरुम

लाल रंग के कुदरुम फूल झारखंड के बाजार में ठंड के मौसम में काफी पाए जाते है. हिबिस्कस सबदरिफ़ा इसका वैज्ञानिक नाम है. इसे यहां के स्थानीय लोग चटनी बनाने के लिए इस्तेमाल करते है. इस फूल की पंखुड़ियों को नमक, चीनी , मिर्च, अदरक और लहसुन के साथ मिलाकर पीस कर चटनी तैयार किया जाता है. यह खाने में खट्टा- मीठा होता है. कुदरुम की चटनी न सिर्फ खाने में स्वादिष्ट होती बल्कि इसके कई स्वास्थ्य लाभ भी हैं. कुदरुम में विटामिन सी पाया जाता है, जो घाव भरने और हड्डियों और दांतों को मजबूत करने में मदद करता है. ये ब्लड शुगर लेवल को बनाये रखने में और पेट की समस्याओं को दूर करने में मदद करता है.

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कोइनार साग

कोइनार साग बारिश के मौसम में पाया जाने वाला एक साग है. यह भी यहां के स्थानीय आदिवासियों द्वारा काफी पसंद किया जाता है. यह सेहत के लिए बहुत अच्छा होता है क्योंकि इसमें आयरन, कैल्शियम और विटामिन ए जैसे पोषक तत्व पाए जाते हैं. इसे बनाने में आसानी होती है. ज्यादातर इसे लहसुन, प्याज़ और मिर्च के साथ भूनकर खाया जाता है. आलू या दाल के साथ मिलाकर इसकी सब्जी बनाई जा सकती है. इसे अक्सर रोटी के साथ खाया जाता है.

फुटकल

फुटकल साल में सिर्फ एक बार पाया जाने वाला साग है, इसलिए इसे यहां के स्थानीय लोग सीजन में इकट्ठा करके रखते हैं. फुटकल साग से आप तरह-तरह की चीजें बना सकते हैं. इसे तोड़कर लोग सूखा लेते हैं और साल भर इसका इस्तेमाल करते हैं. फुटकल साग से आदिवासी लोग विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाते हैं जैसे फुटकल की चटनी, फुटकल का आचार, फुटकल की सब्जी. इसको खाने के बहुत सारे फायदे हैं क्योंकि इसमें आयरन, कैल्शियम, जिंक और फाइबर पाया जाता हैं. इसे खाने से हीमोग्लोबिन बढ़ता है साथ ही साथ यह पेट की समस्याओं को ठीक करने में भी काफी लाभदायक है.

इनपुट: अनु कंडुलना

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