Subhash Chandra Bose Jayanti 2023: आज यानी 23 जनवरी को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 126वीं जयंती मनाई जा रही है. भारत के महान स्वतंत्रता सेनानियों में सुभाष चंद्र बोस का नाम भी शामिल है. नेता जी का नारा ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ आज भी लोगों के बीच देशभक्ति का जज्बा पैदा करता है.
नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म ओडिशा के कटक में 23 जनवरी 1897 को हुआ था.एक संपन्न बंगाली परिवार से ताल्लुक रखने वाले बोस के सात भाई और छह बहनें थीं.पिता का नाम जानकीनाथ बोस और माता प्रभावती देवी थीं.शुरुआती शिक्षा कटक के रेवेंशॉव कॉलेजिएट स्कूल से पूरी करने के बाद 1913 में कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया.1915 में इंटरमीडिएट की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास करने के बाद उन्होंने भारतीय प्रशासनिक सेवा में कार्य करने का लक्ष्य बनाया और तैयारी के लिए इंग्लैंड के कैंब्रिज विश्वविद्यालय चले गए.
नेताजी मेधावी छात्र थे. भारतीय सिविल सेवा परीक्षा को पास करने के बावजूद, उन्होंने भारत की स्वतंत्रता के लिए लड़ने के लिए सरकारी पद से इस्तीफा दे दिया. उन्हें उनके गुरु चित्तरंजन दास द्वारा पेश किए गए ‘फॉरवर्ड’ अखबार के संपादक के रूप में जाना जाता था. ‘स्वराज’, फिर भी उनके द्वारा एक और अखबार शुरू किया गया था. 1935 में नेताजी की ‘द इंडियन स्ट्रगल’ नाम की किताब प्रकाशित हुई थी.
देशभक्तों की बात करें तो बोस स्वयं एक आध्यात्मिक देशभक्त थे. नेताजी का मानस स्वामी विवेकानंद और श्री रामकृष्ण परमहंस से काफी प्रभावित था. वह 15 वर्ष के थे जब उन्हें पहली बार स्वामी विवेकानंद के कार्यों का पता चला, जिसके बाद आध्यात्मिकता के प्रति उनका शाश्वत झुकाव प्रकट हुआ और उनके भीतर एक क्रांति कई गुना बढ़ गई. उनका मानना था कि दोनों आध्यात्मिक गुरु एक अदृश्य व्यक्तित्व के दो पहलू हैं.
इस बारे में बहुत कम लोग जानते हैं कि जर्मन के तानाशाह अडोल्फ हिटलर ने ही सुभाष चंद्र बोस को सबसे पहली बार ‘नेताजी’ कहकर बुलाया था. नेताजी के साथ ही सुषाभ चंद्र बोस को देश नायक भी कहा जाता है. कहा जात है कि देश नायक की उपाधि सुभाष चंद्र बोस को रवीन्द्रनाथ टैगोर से मिली थी.
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान आजादी के लिए संघर्ष में एक महत्वपूर्ण विकास आजाद हिंद फौज का गठन और कार्यकलाप था, जिसे भारतीय राष्ट्रीय सेना या आईएनए के रूप में भी जाना जाता है. भारतीय क्रांतिकारी राश बिहारी बोस जो भारत से भाग कर कई वर्षों तक जापान में रहे, उन्होंने दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों में रहने वाले भारतीयों के समर्थन के साथ भारतीय स्वतंत्रता लीग की स्थापना की थी.
सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु की बात करें तो यह आज तक रहस्य बना है. क्योंकि आज तक उनकी मृत्यु से पर्दा नहीं उठ सका. बता दें कि 1945 में जापान जाते समय सुभाष चंद्र बोस का विमान ताईवान में क्रेश हो गया. हालांकि उनका शव नहीं मिला था.