सौम्या ज्योत्सना
पोषक तत्वों से भरपूर मोटे अनाज- ज्वार, बाजरा, रागी, कोदो, कुटकी और कूटू आदि न सिर्फ सेहत के लिए फायदेमंद, बल्कि पर्यावरण के लिए भी अनुकूल होते हैं, क्योंकि इनकी खेती में धान या गेहूं के मुकाबले कम पानी लगता है. मौजूदा दौर में मोटे अनाज की जरूरतों को पूरा करने के लिए पुणे की 52 वर्षीया शर्मिला जैन ओसवाल आज ‘गुड मॉम’ नाम से खुद का स्टार्टअप चला रही हैं. साथ ही इसके जरिये वह देश के किसानों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने की दिशा में भी काम रही हैं.
एक किसान परिवार में पली-बढ़ी शर्मिला जैन ओसवाल शादी के बाद कनाडा में अपने परिवार के साथ बेहतरीन जिंदगी जी रही थीं. कनाडा में वह बतौर वकील काम कर रही थीं. इसके एवज में उन्हें मोटी सैलरी भी मिलती थी. मगर, साल 2004 और 2006 के बीच भारत में किसानों की दुर्दशा और लगातार आत्महत्या की घटनाओं ने उन्हें इतना प्रभावित किया कि उन्होंने नौकरी छोड़ने का फैसला कर लिया. वह देश के किसानों की स्थिति सुधारने के साथ-साथ पोषण सुरक्षा के क्षेत्र में काम करना चाहती थीं. इसी सोच के साथ साल 2008 में वह वापस पुणे लौट आयीं. इस बीच किसानों की समस्याओं को समझने और उनकी स्थिति का जायजा लेने के लिए उन्होंने दो सालों तक महाराष्ट्र, गुजरात और राजस्थान में विभिन्न जगहों का दौरा किया. इसके बाद उन्होंने किसानों की मदद करने, जल स्रोतों को पुनर्जीवित करने और ज्वार, बाजरा, रागी जैसी फसलों को उगाने सहित स्मार्ट खेती के तौर-तरीकों को बढ़ावा देने के लिए ‘ग्रीन एनर्जी फाउंडेशन’ नामक एनजीओ की नींव रखी. फिर अपनी संस्था के जरिये उन्होंने खेती-बाड़ी में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए व्यापक स्तर पर अभियान चलाया.
किसानों को मोटे अनाज की खेती के लिए किया प्रोत्साहित
साल 2008 में एनजीओ की स्थापना करने के बाद उन्हें पहली बार नाबार्ड से 10 लाख रुपये का अनुदान मिला. इसकी मदद से उन्होंने साल 2010 में महाराष्ट्र के बुचकेवाडी में अपना पहला टिकाऊ जल प्रबंधन कार्यक्रम शुरू किया. चूंकि, गांव जल संकट से जूझ रहा था. इसके चलते खेतीबाड़ी करने में भी काफी मुश्किल हो रही थी. इस समस्या को दूर करने के लिए शर्मिला ने एक समान जल वितरण मॉडल पर काम किया, ताकि सभी ग्रामीणों को समान रूप से हर मौसम में पानी मिलता रहे. उन्होंने महाराष्ट्र, राजस्थान और गुजरात में अपना काम जारी रखा. शर्मिला कहती हैं, “मक्का जैसी फसलों की खेती में बहुत अधिक पानी की जरूरत पड़ती है. इसलिए मेरी संस्था ने आइटीसी के ई-चौपाल के साथ साझेदारी कर डूंगरपुर में किसानों की काफी मदद की. किसानों जानकारी दी गयी कि कम पानी का इस्तेमाल कर कैसे मोटे अनाजों की खेती की जा सकती है. मेरी संस्था ने किसानों को बाजरा उगाने में भी काफी मदद की. ”
इनके प्रयासों की प्रधानमंत्री भी कर चुके हैं सराहना
शर्मिला के स्टार्टअप ‘गुड मॉम’ को भारतीय बाजरा अनुसंधान संस्थान से जैविक खेती में सर्वश्रेष्ठ स्टार्टअप 2021 और ‘पोशाक अनाज पुरस्कार 2022’ मिल चुका है. वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी ‘मन की बात’ में बाजरा की खेती बढ़ाने में उनके प्रयासों की सराहना कर चुके हैं. शर्मिला बताती हैं, ‘‘मुझे खेतीबाड़ी का काफी शौक था. इसलिए इस क्षेत्र में कुछ ऐसा करने की इच्छा थी, ताकि किसानों की स्मार्ट तरीके से मदद कर सकूं.’’
ऐसे हुई स्टार्टअप ‘गुड मॉम’ की शुरुआत
शर्मिला कहती हैं, ‘‘जब पूरा देश कोरोना से जूझ रहा था, तब मेरा बेटा शुभम अशोक विवि से स्नातक करने के बाद घर पर ही मौजूद था. बातचीत के क्रम में पता चला कि कैसे उसके दोस्त जंक फूड खाते थे. स्वस्थ भोजन के विकल्प के तौर खुद का स्टार्टअप शुरू करने का विचार आया. इस तरह ‘गुड मॉम’की शुरुआत हुई. वे कहती हैं, ‘गुड मॉम’ की वेबसाइट पर मैं बाजरा नूडल्स, पास्ता, कुकीज, क्रैकर, जड़ी-बूटियां बेचती हूं. अधिकांश अनाज और खाने के लिए तैयार वस्तुओं की कीमत 48 रुपये से 150 रुपये के बीच है. आज अपने स्टार्टअप से मैं सलाना करीब 16 करोड़ रुपये से अधिक की कमाई कर लेती हूं. ‘गुड मॉम’ से देशभर के करीब 5,000 से अधिक किसान जुड़े हुए हैं, जो बाजरा जैसी फसलों का उत्पादन करते हैं.’’ी