विवेकानंद जयंती: जीवन के हर मोड़ पर काम आते हैं स्वामीजी के 10 प्रेरणादायक विचार

स्वामी विवेकानंद के विचार केवल भारतीय समाज ही नहीं, बल्कि समूची दुनिया के लिए मार्गदर्शक हैं. अपने विचारों में मानवता और अध्यात्म के जिन स्वरूपों की वे व्याख्या करते हैं, वे अतुलनीय हैं.

By Prabhat Khabar News Desk | January 12, 2021 8:07 AM

स्वामी विवेकानंद के विचार केवल भारतीय समाज ही नहीं, बल्कि समूची दुनिया के लिए मार्गदर्शक हैं. अपने विचारों में मानवता और अध्यात्म के जिन स्वरूपों की वे व्याख्या करते हैं, वे अतुलनीय हैं.

विवेकानंद के 10 विचार

वे कहते हैं कि जिस पल मुझे यह ज्ञान हुआ कि हर मनुष्य के हृदय में भगवान हैं, तब से मैं हर व्यक्ति में ईश्वर की छवि देखने लगा हूं. मैं हर बंधन से छूट गया.

हमारे बाहर की दुनिया वैसी ही है, जैसा हम अंदर से सोचते हैं. हमारे विचार ही चीजों को सुंदर और बदसूरत बनाते है़ं हमारे अंदर पूरा संसार समाया है. बस, हमें चीजों को सही रोशनी में रखकर देखने की जरूरत है.

स्वामी विवेकानंद का कहना है कि मनुष्य की सोच उसके चरित्र का निर्माण करती है. अगर ईसा मसीह की तरह सोचोगे और तुम ईसा बन जाओगे. बुद्ध की तरह सोचोगे और तुम बुद्ध बन जाओगे. ईश्वर तक पहुंचने के लिए हमें बाह्य माध्यमों पर निर्भर नहीं होना है. सब कुछ हमारे अंदर ही विद्यमान है.

प्रेम सर्वत्र व्याप्त है. प्रेम फैलाव है और स्वार्थ सिकुड़न की दशा है. अत: दुनिया का बस एक ही नियम होना चाहिए, प्रेम, प्रेम, प्रेम…! जो प्रेम में रमा है, सही मायने में वही जीता है. जो स्वार्थ में लिप्त है, वह मर रहा है. इसलिए प्रेम प्राप्त करने के लिए प्रेम करो. यही जिंदगी का नियम है.

दुनिया की हर चीज बहुत अच्छी, पवित्र और सुंदर है. अगर आपको कुछ बुरा दिखायी देता है, तो इसका मतलब यह नहीं कि वो बुरा है. संभव है कि आपने उसे सही रोशनी में नहीं देखा हो.

किसी अन्य व्यक्ति को दोष देना गलत है. अगर तुम स्वयं अपने हाथ आगे बढ़ा कर किसी की मदद कर सकते हो तो जरूर करो, अगर नहीं कर सकते हो तो अपने हाथ बांध कर खड़े रहो.

अपने वालों को शुभकामनाएं दो और उन्हें उनके रास्ते जाने दो. आप किसी को अनावश्यक दोष नहीं दे सकते और आप दोष देने के अधिकारी भी नहीं हैं.

हमें यह कतई नहीं सोचना चाहिए कि हमारे लिये, हमारी आत्मा के लिए कुछ भी नामुमकिन है. यह सोच ही सबसे ज्यादा हमें दुख देती है. अगर कोई पाप है, तो वो सिर्फ और सिर्फ अपने आपको या दूसरों को कमजोर मानना है.

हमें सब कुछ अंदर से ही सीखने की जरूरत है. तुम्हें कोई नहीं पढ़ा सकता, कोई आध्यात्मिक नहीं बना सकता. अगर यह सब कोई सिखा सकता है तो यह केवल आपकी आत्मा है.

सच का महत्व सबसे अधिक होना चाहिए. सच्चाई के लिए कुछ भी छोड़ देना चाहिए, पर किसी के लिए भी सच्चाई नहीं छोड़नी चाहिए

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Posted by: Pritish Sahay

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