Vivekananda Jayanti 2023: विवेकानंद ने रामकृष्ण परमहंस को क्यों माना अपना गुरु? जानिए वो कौन सी हैं बातें…
Swami Vivekananda Jayanti 2023: स्वामी विवेकानंद ऐसे महान व्यक्तित्व थे, जिन्होंने पूरे विश्व में भ्रमण कर भारत की शान बढ़ाई. स्वामी विवेकानंद ने महज 25 साल की उम्र में ईश्वर और ज्ञान की प्राप्ति के लिए सांसारिक मोह माया को त्यागकर सन्यासी बन गए थे.
Swami Vivekananda Jayanti 2023: आज यानी 12 जनवरी को स्वामी विवेकानंद की जयंती के रुप में मनाया जाता है. इस दिन को 1984 में भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय युवा दिवस घोषित किया गया था, और यह 1985 से हर साल भारत में मनाया जाता है. स्वामी विवेकानंद ऐसे महान व्यक्तित्व थे, जिन्होंने पूरे विश्व में भ्रमण कर भारत की शान बढ़ाई. स्वामी विवेकानंद ने महज 25 साल की उम्र में ईश्वर और ज्ञान की प्राप्ति के लिए सांसारिक मोह माया को त्यागकर सन्यासी बन गए थे.
कौन थे विवेकानंद के गुरु
25 साल की उम्र में विवेकानंद ने सांसारिक मोह माया त्याग कर सन्यास बन गए. उसके बाद गुरु रामकृष्ण परमहंस के शिष्य बनने के बाद उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई. 39 वर्ष की अल्पायु में उन्होंने इस दुनिया को छोड़ दिया. लेकिन आज भी उनके विचार युवाओं के लिए प्रेरणा-स्रोत बने हुए हैं. भारत के आध्यात्मिक गुरु स्वामी विवेकानंद के बारे में हम सबसे पहले जानेंगे कि आखिर उन्होंने स्वामी रामकृष्ण परमहंस को अपना गुरु कैसे और क्यों बनाया.
स्वामी रामकृष्ण परमहंस को विवेकानंद जी अपना गुरु क्यों माना
रामकृष्ण परमहंस एक अद्भुत संत माने जाते है, क्योंकि वे परमहंस थे. हिन्दू मान्यताओं के अनुसार परमहंस की उपाधि उसे दी जाती है, जो समाधि की अंतिम अवस्था में हो. रामकृष्ण परमहंस ने दुनिया के सभी धर्मों के अनुसार साधना करके उस परम तत्व को महसूस कर लिया था. कहा जाता है कि उनमें कई तरह की सिद्धियां थीं, लेकिन वे सिद्धियों के पार चले गए थे. अब सवाल आता है कि विवेकानंद जी ने उन्हें अपना गुरु क्यों माना और परमहंस ने विवेकानंद को अपना शिष्य क्यों माना?
इस सवाल का जवाब है- रामकृष्ण परमहंस ने विवेकानंद को अपना शिष्य इसलिए बनाया, क्योंकि उनमें बुद्धि और तर्क करने की बहुत क्षमता थी. जबकि गुरु ने विवेकानंद के हर प्रश्न का समाधान कर उनकी बुद्धि को भक्ति में बदल दिया था, तब से विवेकानंद ने उन्हें अपना गुरु मान लिया था.
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यहां प्रस्तुत हैं रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद के बीच हुए एक अद्भुत संवाद के कुछ अंश…
1. विवेकानंद- मैं समय नहीं निकाल पाता, जीवन आपाधापी से भर गया है.
रामकृष्ण परमहंस- गतिविधियां तुम्हें हमेशा घेरे रखती हैं, लेकिन उत्पादकता आजाद करती है.
2. विवेकानंद- आज जीवन इतना जटिल क्यों बन गया है?
रामकृष्ण परमहंस- जीवन का विश्लेषण करना बंद कर दो, यह इसे जटिल बना देता है. जीवन को सिर्फ जियो.
3. विवेकानंद- फिर हम हमेशा दु:खी क्यों रहते हैं?
रामकृष्ण परमहंस- परेशान होना तुम्हारी आदत बन गई है, इसी वजह से तुम खुश नहीं रह पाते हो.
4. स्वामी विवेकानंद- अच्छे लोग हमेशा दुःख क्यों पाते हैं?
रामकृष्ण परमहंस- हीरा रगड़े जाने पर ही चमकता है. सोने को शुद्ध होने के लिए आग में तपना पड़ता है. अच्छे लोग दुःख नहीं पाते बल्कि परीक्षाओं से गुजरते हैं. इस अनुभव से उनका जीवन बेहतर होता है, बेकार नहीं होता.
5. विवेकानंद- आपका मतलब है कि ऐसा अनुभव उपयोगी होता है?
रामकृष्ण परमहंस- हां, हर लिहाज से अनुभव एक कठोर शिक्षक की तरह है. पहले वह परीक्षा लेता है और फिर सीख देता है.
6. विवेकानंद- समस्याओं से घिरे रहने के कारण हम जान ही नहीं पाते कि किधर जा रहे हैं?
रामकृष्ण परमहंस – अगर तुम अपने बाहर झांकोगे तो जान नहीं पाओगे कि कहां जा रहे हो. अपने भीतर झांको. आखें दृष्टि देती हैं. हृदय राह दिखाता है.
7. विवेकानंद- क्या असफलता सही राह पर चलने से ज्यादा कष्टकारी है?
रामकृष्ण परमहंस- सफलता वह पैमाना है, जो दूसरे लोग तय करते हैं. संतुष्टि का पैमाना तुम खुद तय करते हो.
8. विवेकानंद- कठिन समय में कोई अपना उत्साह कैसे बनाए रख सकता है?
रामकृष्ण परमहंस- हमेशा इस बात पर ध्यान दो कि तुम अब तक कितना चल पाए, बजाय इसके कि अभी और कितना चलना बाकी है. जो कुछ पाया है, हमेशा उसे गिनो; जो हासिल न हो सका उसे नहीं.
9. विवेकानंद : लोगों की कौन सी बात आपको हैरान करती है?
रामकृष्ण परमहंस : जब भी वे कष्ट में होते हैं तो पूछते हैं, ‘मैं ही क्यों?’ जब वे खुशियों में डूबे रहते हैं तो कभी नहीं सोचते, ‘मैं ही क्यों?’
10. विवेकानंद : मैं अपने जीवन से सर्वोत्तम कैसे हासिल कर सकता हूं?
रामकृष्ण परमहंस : बिना किसी अफसोस के अपने अतीत का सामना करो. पूरे आत्मविश्वास के साथ अपने वर्तमान को संभालो. निडर होकर अपने भविष्य की तैयारी करो.
11. स्वामी विवेकानंद : एक आखिरी सवाल. कभी-कभी मुझे लगता है कि मेरी प्रार्थनाएं बेकार जा रही हैं?
रामकृष्ण परमहंस : कोई भी प्रार्थना बेकार नहीं जाती, अपनी आस्था बनाए रखो और डर को परे रखो. जीवन एक रहस्य है जिसे तुम्हें खोजना है. यह कोई समस्या नहीं जिसे तुम्हें सुलझाना है. मेरा विश्वास करो- अगर तुम यह जान जाओ कि जीना कैसे है तो जीवन सचमुच बेहद आश्चर्यजनक है.