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Swami Vivekanand का शिकागो की धर्म संसद में दिया गया भाषण, आज भी भारतीयों को गर्व से भर देता है, वीडियो

11 सितंबर 1893 को शिकागो में विश्व धर्म संसद का आयोजन किया गया था. यहां स्वामी विवेकानंद ने जो भाषण दिया था उसके बाद पूरी दुनिया में भारत की छवि बदल गई. कहते हैं इस भाषण के बाद दुनिया भारत की मुरीद हो गई थी.

Swami Vivekananda Jayanti 2023: 1893 में अमेरिका के शिकागो में विश्व धर्म सम्मेलन में स्वामी विवेकानदं ने जो भाषण दिया था उसके बाद कम्यूनिटी हॉल कई मिनटों तक तालियों की गड़गड़ाहट से गूंजता रहा था. विवेकानंद जी द्वारा दिया गया यह भाषण आज भी भारतीयों को गर्व से भर देता है. आगे पढ़ें उन्होंने भाषण में ऐसा क्या कहा था…

‘मेरे अमेरिकी भाइयों और बहनों’

‘मेरे अमेरिकी भाइयों और बहनों’

”मैं आपको दुनिया की प्राचीनतम संत परम्परा की तरफ़ से धन्यवाद देता हूं. मैं सभी धर्मों की जननी की तरफ से धन्यवाद देता हूं और सभी जातियों, संप्रदायों के लाखों, करोड़ों हिन्दुओं की तरफ से आपका आभार व्यक्त करता हूं. यह ज़ाहिर करने वालों को भी मैं धन्यवाद देता हूं, जिन्होंने बताया कि दुनिया में सहिष्णुता का विचार पूरब के देशों से फैला है.”

हम विश्व के सभी धर्मों को सत्य के रूप में स्वीकार करते हैं

विवेकानंद जी ने कहा था, ”मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं, जिसने दुनिया को सहनशीलता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया. हम सिर्फ सार्वभौमिक सहनशीलता में ही विश्वास नहीं रखते, बल्कि हम विश्व के सभी धर्मों को सत्य के रूप में स्वीकार करते हैं. मुझे गर्व है कि मैं उस देश से हूं, जिसने सभी देशों के सताए गए लोगों को अपने यहां शरण दी. मुझे गर्व है कि हमने अपने दिल में इसराइल की वो पवित्र यादें संजो रखी हैं, जिनमें उनके धर्मस्थलों को रोमन हमलावरों ने तहस-नहस कर दिया था. फिर उन्होंने दक्षिण भारत में शरण ली.”

सांप्रदायिकताएं, कट्टरताएं और इनकी भयानक वंशज हठधर्मिता न होते तो मानव समाज कहीं ज्यादा उन्नत होता

‘रुचिनां वैचित्र्यादृजुकुटिलनानापथजुषाम… नृणामेको गम्यस्त्वमसि पयसामर्णव इव…’ इस श्लोक का उच्चारण करते हुए स्वामी विवेकानंद ने कहा-

जिस तरह अलग-अलग स्रोतों से निकली विभिन्न नदियां अंत में समुद्र में जाकर मिल जाती हैं, उसी तरह मनुष्य अपनी इच्छा के अनुरूप अलग-अलग मार्ग चुनता है, जो देखने में भले ही सीधे या टेढ़े-मेढ़े लगें, परंतु सभी भगवान तक ही जाते हैं. सांप्रदायिकताएं, कट्टरताएं और इनकी भयानक वंशज हठधर्मिता लंबे समय से पृथ्वी को अपने शिकंजों में जकड़े हुए हैं. इन्होंने धरती को हिंसा से भर दिया है. कितनी ही बार यह धरती खून से लाल हुई है, कितनी ही सभ्यताओं का विनाश हुआ है और न जाने कितने देश नष्ट हुए हैं. यदि ये भयानक राक्षस न होते, तो आज मानव समाज कहीं ज्यादा उन्नत होता, लेकिन अब उनका समय पूरा हो चुका है.”

सम्मेलन का शंखनाद हर तरह के क्लेश दुर्भावनाओं का विनाश करेगा

अपने भाषण के अंतिम अंश में उन्होंने उम्मीद जताते हुए कहा था, ”इस सम्मेलन का शंखनाद सभी हठधर्मिताओं, हर तरह के क्लेश और सभी मनुष्यों के बीच की दुर्भावनाओं का विनाश करेगा. चाहे वह तलवार से हो या फिर कलम से.”

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