90’s Memories: खट्टे-मीठे कैंडीज से लेकर कॉमिक्स तक, आपको 90 के दशक की याद दिला देंगी ये चीजें
90's Memories: आईए जानते हैं 90s के बच्चों का बचपन कैसा था और उनके लिए मनोरंजन के क्या-क्या साधन थे. आज के बच्चों की तरह 90s के बच्चों के पास कंप्यूटर और हाथ में स्मार्टफोन नहीं थे. इंटरनेट नहीं था फिर भी वह बड़े खुश और मस्त मौला जिंदगी जीते थे। उनके मनोरंजन के कई साधन थे।
90’s Memories: 90s के दशक के हर भारतीय बच्चों की कुछ यादें. जिससे हम आज आपको इस लेख में रूबरू करवाएंगे शायद ही कोई ऐसा होगा जो 90s के दशक में इन चीजों के साथ अपने बचपन को न जिया होगा. बचपन हम सभी के लिए एक अनमोल उपहार की तरह होता है सभी का बचपन एक जैसा ही प्यारा, खुशहाल और मस्ती भरा होता है. कभी-कभी तो हमें लगता है कि काश हमारे बचपन के दिन फिर से वापस लौट आते. वो दिन तो वापस नहीं लौट सकते लेकिन हम कुछ पुरानी यादों को आज इस आर्टिकल के इसलिए के माध्यम से ताजा करने की कोशिश करेंगे.
आईए जानते हैं 90s के बच्चों का बचपन कैसा था और उनके लिए मनोरंजन के क्या-क्या साधन थे. आज के बच्चों की तरह 90s के बच्चों के पास कंप्यूटर और हाथ में स्मार्टफोन नहीं थे. इंटरनेट नहीं था फिर भी वह बड़े खुश और मस्त मौला जिंदगी जीते थे. उनके मनोरंजन के कई साधन थे. आज हम कुछ ऐसी चीजों के बारे में आपको बताने जा रहे हैं. जिनके बिना 90s के बच्चों का बचपन अधूरा था.
खट्टे मीठे कैंडीज
90s के बच्चों के कुछ पसंदीदा कैंडीज थे, मैंगो बाइट, हाजमोला कैंडी, कॉफी बाइट, सूगर कैंडी, कॉटन कैंडी, कैडबरी एक्लेयर्स आज के बच्चों की तरह बहुत महंगे शौक नहीं थे. 90s के बच्चे एक दो रुपए की इन चॉकलेट में ही बड़े खुश हो जाते थे.
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कॉमिक्स
कॉमिक्स की बात करें तो सबसे पहले बात आती है चाचा चौधरी की, जी हां यह एक ऐसा कॉमिक था जिसे 90s के लगभग सभी बच्चों ने पढ़ा होगा अगर नहीं पढ़ा होगा तो कहानी तो जरूर सुनी होगी और यह कॉमिक्स इतना प्रसिद्ध है कि अभी भी लोगों की जुबान पर इसका नाम रहता है. चाहे जितने कार्टूंस जितने गेम जितने टीवी शो क्यों ना आ जाए लेकिन उस समय की इस कॉमिक्स का मुकाबला करना इन सभी के लिए नामुमकिन है. इसी तरह के और कई कॉमिक्स और पत्रिकाएं हैं जैसे पंचतंत्र, अकबर बीरबल की कहानी, तेनाली रामा, चंदा मामा, चंपक, बाल हंस, नन्हे सम्राट, नंदनयह सारे कॉमिक्स पत्र पत्रिकाएं 90s के बच्चों के मनोरंजन का साधन हुआ करते थे.
टीवी सीरियल्स
लाइट जाने की समस्या उस वक्त खूब बनी रहती थी और हर घर में टीवी न होने के कारण जिस घर में भी टीवी होती थी रविवार को बच्चों की मंडली एक जगह वही नजर आती थी क्योंकि, उस दिन टीवी पर रामायण और महाभारत आते थे. बच्चो के साथ बड़ें तक इन सिरियल्स को देखने को बेचैन रहते थे, उसके बाद बारी आती है शक्तिमान की, शायद ही कोई ऐसा था जो 90 के दशक में इसका नाम न जानता हो. हर बच्चे के मुख में शक्तिमान का नाम रहता था 90s के सभी बच्चों को शक्तिमान खूब पसंद आता था इसी तरह के कई और भी टीवी सीरियल थे जैसे विक्रम और बेताल, शाकालाका बूम बूम, चंद्रकांता इत्यादि.
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ऑडियो कैसेट
आज के बच्चे जब भी गाना सुनना चाहते हैं अपने फोन के ऑडियों प्लेलिस्ट में जाकर आसानी से कोई भी गानासुन सकते हैं. लेकिन 90s में ऐसा नहीं था बचपन में गाने सुनने के लिए जितने जतन 90 के दशक के बच्चों को करनी पड़ती थी. यह आज के बच्चों के लिए समझ पाना थोड़ा मुश्किल होगा 90 के दशक में टेप रिकॉर्डर पर गाने सुनने पड़ते थे. कितनी बार तो कैसेट फंस जाती थी. बस रेडियो एक और माध्यम था उनके गाना सुनने का जब भी रेडियो पर कोई गाना बजता सभी बच्चे रेडयों घेर के बैठ जाते थे. रिपोर्ट: रिंकी सिंह