Tea of Assam : असम के चाय की कहानी : जानिए क्यों और कैसे हुई असम में चाय की खोज
चाय के बिना हम भारतीय अपनी सुबह की शुरुआत की कल्पना तक नहीं कर सकते हैं. परंतु क्या आप जानते हैं कि देश में चाय की खेती की शुरुआत कैसे हुई? आइए आज इसी बारे में जानते हैं...
Tea of Assam : एक पेय पदार्थ, यानी beverage के रूप में चाय पूरी दुनिया में लोकप्रिय है. यह दुनियाभर के लोगों का पसंदीदा पेय भी है. भारत में तो इसके प्रति लोगों में दीवानगी है. चाहे सुबह की शुरुआत करनी हो, नींद भगानी हो, तरोताजा महसूस करना हो, या ठंड के मौसम में गर्मी का अहसास करना हो, हमारे देश में इन सबका उपाय चाय में ही समाया है. भारत में चाय की खेती मुख्यत: असम, पश्चिम बंगाल, अरुणाचल प्रदेश, तमिलनाडु, केरल और हिमाचल प्रदेश के कुछ भागों में होती है. असम में चाय की सबसे अधिक खेती होती है. देश में उत्पादित चाय का 50 प्रतिशत से अधिक असम से ही आता है. परंतु क्या आप जानते हैं कि भारत में चाय की खेती की शुरुआत असम से ही हुई है. आइए जानते हैं असम में चाय की खेती से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों के बारे में.
ऐसे पड़ी असम में चाय की खेती की नींव
असम में चाय की खोज का इतिहास दिलचस्प है. बात उस समय की है जब देश में अंग्रेजों का शासन था. अंग्रेज चाय पीने के शौकीन थे और अपने इस शौक के लिए वे चीन पर निर्भर थे. तब ग्रेट ब्रिटेन में चीन से ही चाय की पत्तियां आती थीं. ऐसे में जहां-जहां अंग्रेजों का शासन था, वहां-वहां चाय की मांग बढ़ती गयी. बढ़ती मांग के कारण अंग्रेजों की चीन पर निर्भरता भी बढ़ती जा रही थी. सो उन्होंने इसका विकल्प तलाशना शुरू कर दिया. यही वह कारण रहा जिससे भारत, विशेषकर असम में चाय की खेती की शुरुआत हुई. असम में चाय के पौधों की खोज का श्रेय रॉबर्ट ब्रूस को जाता है. रॉबर्ट ब्रूस एक स्कॉटिश अन्वेषक व व्यापारी थे. वे बंगाल तोपखाने में मेजर के रूप में काम भी कर चुके थे. तब भले ही भारत के लोगों का चाय से कोई परिचय नहीं था, परंतु असम की जंगलों में चाय के पौधे बहुतायत में पाये जाते थे. और वहां रहने वाली सिंगफोस और खामती समेत कई जनजानियां एक मिश्रण के रूप में चाय की पत्तियों का उपयोग किया करती थीं. ब्रूस असम में 1822 में पहली बार आये थे. इसके अगले वर्ष, यानी 1823 में वे रंगपुर आये जो अहोम साम्राज्य की राजधानी थी. रॉबर्ट की रंगपुर के एक स्थानीय धनी व्यक्ति मनीराम दत्ता के साथ अच्छी जान-पहचान थी. मनीराम ने रॉबर्ट का परिचय एक स्थानीय सिंगफो जनजाति के प्रमुख, बीसा गाम से करवाया. रंगपुर की अपनी यात्रा के दौरान रॉबर्ट ने यहां के जंगलों में ऐसे पौधों की भरमार देखी जिसकी पत्तियां चीन के कैमेलिया साइनेंसिस वार साइनेंसिस (चाय के पौधे) जैसी दिख रही थीं. वास्तव में ये चाय के ही पौधे थे. इस प्रकार रॉबर्ट ब्रूस एक ऐसे पौधे की खोज करने में सक्षम रहे, जिसने भारत में चाय की खेती की नींव डाली. उनकी यह खोज असम के साथ-साथ पूरे भारत में चाय बागानों के लिए एक ऐसा ऐतिहासिक पल लेकर आयी थी जिसके बारे में किसी को अनुमान नहीं था कि इससे भारत में एक नये किस्म की खेती शुरू होगी, जो पीढ़ियों तक न केवल असम के लोगों, बल्कि मजदूरों और ब्रिटिश औपनिवेश के भाग्य को संवारने वाली साबित होगी. किसी को यह भी ज्ञात न था कि चाय के पौधे की खोज से देश में एक नये पेय पदार्थ का ऐसा चलन शुरू हो जायेगा, जो हमारी दिनचर्या का महत्वपूर्ण अंग बन जायेगा. हालांकि यह दुर्भाग्यपूर्ण रहा कि रॉबर्ट ब्रूस अपनी इस ऐतहासिक खोज के परिणाम को देखने के लिए जीवित नहीं रहे. वर्ष 1824 में उनका निधन हो गया.
ब्रूस बंधुओं का योगदान
रॉबर्ट ब्रूस की खोज को पहचान देने में उनके भाई चार्ल्स ब्रूस की सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका रही. रॉबर्ट ब्रूस के जाने के बाद उन्होंने उनके काम को आगे बढ़ाया. चार्ल्स ब्रूस एंग्लो-बर्मी युद्ध (1824) के दौरान ब्रिटिश गनबोट डिविजन के इंजार्च थे. अपने भाई के निधन के बाद उनकी खोज को पहचान दिलाने और उनके काम को आगे बढ़ाने के लिए चार्ल्स ने सिंगफो प्रमुख बीसा गाम से भेंट की. बीसा गाम से मिलने के बाद चार्ल्स ने सादिया स्थित अपने बंगले पर चाय के कुछ पौधे रोपे. उन्होंने उनमें से कुछ पौधे गुवाहाटी में रहने वाले मुख्य आयुक्त जेनकिंस को भेजे और कुछ पौधे कलकत्ता के बॉटनिकल गार्डन को भी भेजे. हालांकि वे पौधे पनप नहीं पाये, सो यहां चाय की खेती की शुरुआत नहीं हो पायी. काफी समय तक ऐसा ही चलता रहा. पर चार्ल्स ने इन असफलताओं से हार नहीं मानी. अंतत: उन्होंने चाय उगाने में सफलता पायी और 1836 में चाय समिति को चाय के नमूनों का एक छोटा-सा खेप भेजा. इन नमूनों को भारत के तत्कालीन वायसरॉय लॉर्ड ऑकलैंड ने अप्रूव किया, वहीं विशेषज्ञों ने भी बताया कि ये नमूने अच्छी गुणवत्ता वाले हैं. इस प्रकार असम में चाय की खेती शुरुआत हुई. वर्ष 1837 में चाय की छत्तीस और 1838 में आठ पेटियां लंदन रवाना की गयीं. अब एक और इतिहास बनने की बारी थी. दस, जनवरी, 1839 को लंदन में चाय की पहली खेप की नीलामी हुई. और अंतत: 1839 में असम टी कंपनी की स्थापना हुई, जिससे भारत में चाय के इतिहास का एक नया दौर आरंभ हुआ. उपरोक्त बातों से पता चलता है कि भारत, विशेष रूप से असम में चाय की खेती की शुरुआत और उसे एक उद्योग का रूप देने में ब्रूस बंधुओं का अतुलनीय योगदान रहा है. वही चाय जिससे हमारे सुबह की शुरुआत होती है.
असम सराकर के टी ट्राइब्स एंड आदिवासी वेलफेयर डिपार्टमेंट की वेबसाइट के अनुसार, इस समय असम में 800 से अधिक चाय बागान हैं.