Parenting Tips : बच्चों के स्वभाव में बदलाव के लिए पैरेंट्स शुरू से ही सिखाएं ये नैतिकता के गुण
मनोविज्ञानियों का मानना है कि बीते कुछ वर्षों में बच्चों में शिष्टाचार, विनम्रता, संवेदनशीलता और दयालुता में कमी आयी है. इसका कारण हमारी बदली हुई सामाजिक व्यवस्था और वातावरण है.
Parenting Tips : मनोविज्ञानियों का मानना है कि बीते कुछ वर्षों में बच्चों में शिष्टाचार, विनम्रता, संवेदनशीलता और दयालुता में कमी आयी है. इसका कारण हमारी बदली हुई सामाजिक व्यवस्था और वातावरण है. खतरनाक हरकतें करने को उकसाते हिंसक वीडियो गेम्स और डिजिटल क्रांति की वजह से गैजेट्स से उनका जुड़ाव भी इसकी एक वजह हो सकता है. हालांकि, अगर पेरेंट्स जरा-सी समझदारी से काम लें, तो बच्चों में शुरू से ही विनम्रता और दयालुता की भावना का रोपण कर सकते हैं. अब से 30/40 साल पहले के माता-पिता हों या आज की पीढ़ी के युवा माता-पिता हों, सब अपने बच्चों को संस्कारी, जिम्मेदार, दयालु और विनम्र बनाना चाहते हैं, लेकिन युवा माता-पिता संभवत: इसका सही तरीका या रास्ता नहीं जानते. अगर आप सचमुच बच्चों के स्वभाव में सकारात्मक परिर्वतन लाना चाहते हैं, तो उनमें कुछ नैतिक मूल्यों का रोपण करना बहुत जरूरी है.
सामाजिक जिम्मेदारी
किसी भी देश, समाज या परिवार में रहने के कुछ नियम-कानून होते हैं और इनके प्रति हमारी भी कुछ जवाबदेही बनती है. देश या समाज का नागरिक ही उसकी सबसे बड़ी ताकत होता है. अगर आप खुद को,अपने देश और समाज को सुकून,सम्मान और सफलता दिलाना चाहते हैं, तो अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों जैसे कचरा न फैलाना, प्रदूषण न फैलाना, अवैध और गैर कानूनी कामों में संलिप्त न रहना और जरूरतमंद लोगों की सहायता करना आदि को अपने व्यक्तित्व का हिस्सा बना लें. विंस्टन चर्चिल ने कहा था महानता की कीमत जिम्मेदारी है.
संवेदनशीलता
समानुभूति, सहानुभूति और संवेदनशीलता आवश्यक मानवीय गुण हैं. हम दूसरों के सुख दुःख, उनके दर्द का ख्याल रखें और उनके प्रति नरमी व दयालुता का भाव रखें और उनकी भावनाओं को समझें, तो बदले में हमें भी उन से ऐसा ही व्यवहार मिलता है. इससे सामाजिक दायरा, भाईचारा, प्रेम भाव भी बढ़ता है और विश्वसनीयता भी. समाजशास्त्री कहते हैं, समाज में सम्मान उन्हीं लोगों को मिलता है, जो दूसरों के प्रति संवेदनशील और परोपकारी होते हैं.
विनम्रता
जीवन में सम्मान और सफलता पाने के लिए विनम्र होना बहुत आवश्यक है. दरअसल, विनम्रता एक सभ्य इंसान होने की निशानी है, जबकि कठोरता एक कमजोर व्यक्ति की झूठी ताकत है. जाने-माने मोटिवेशनल स्पीकर शिव खेड़ा ने अपनी पुस्तक “जीत आपकी” में लिखा है, विनम्रता सारी खूबियों की बुनियाद है. यह महानता को दर्शाती है और बड़प्पन की पहचान है. सफलता और विनम्रता साथ साथ चलती है. टैक्सास स्थित बेलरी यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में पाया है कि विनम्र और ईमानदार लोगों को अक्सर अच्छा परफॉर्म और माना जाता है. कई अन्य अध्ययनों में भी पाया गया है कि विनम्र स्वभाव के लोग आमतौर पर रूखे व्यवहार वालों से ज्यादा सेहतमंद रहते हैं और उनके सामाजिक संबंध भी बेहतर होते हैं.
ईमानदारी
आज के समय में जब हर तरफ अविश्वास और छलकपट का बोलबाला है. ऐसे में आज की दुनिया में आगे बढ़ने के लिए विश्वसनीयता काफी आवश्यक गुण है. साथ ही इससे मानसिक सुकून भी मिलता है, क्योंकि आपको कुछ छिपाने या खुद को बचाने के लिए ज्यादा माथापच्ची नहीं करनी पड़ती है. व्यवहार विशेषज्ञ कहते हैं, कभी भी किसी ईमानदार आदमी को अपने स्वभाव और काम का विज्ञापन या प्रचार नहीं करना पड़ता. उसकी सराहना अपने आप फैलती रहती है और लोग उसका आदर करते हैं.
Also Read : Financial Tips: बिटिया को शुरू से ही सिखाएं बचत की तरकीब, ताकि जीवन में बने आत्मनिर्भर
त्याग
त्याग ना सिर्फ सामाजिक एवं व्यवसायिक जीवन में, बल्कि व्यक्तिगत जीवन में भी जरूरी होता है. दोस्ती निभाने और परिवार को बांधकर रखने में भी इसका काफी महत्व है. सुकून, सम्मान और सफलता के लिए सेक्रिफ़ाइस यानी त्याग की प्रवृत्ति बहुत जरूरी है. यहां त्याग का तात्पर्य धन-संपत्ति या मोहमाया त्याग कर तपस्या करने या साधु सन्यासी बन जाने से नहीं है. यहां त्याग का अर्थ है किसी की बड़ी खुशी के लिए अपनी किसी छोटी-छोटी खुशियां या जिद का परित्याग कर देना.
क्षमा भाव
नॉर्थ कैरोलिना स्टेट यूनिवर्सिटी एवं कॉलेज ऑफ ह्यूमैनिटी एंड सोशल साइंसेज की मनोविज्ञानी एवं शोधकर्ता केली लीन मुलवे ने अपने अध्ययन में पाया है कि अगर बच्चों को शुरू से दूसरों के नजरिये को समझने की कला सिखा दी जाये, तो उनके मन में संवेदनशीलता और क्षमा भाव को जागृत व सक्रिय किया जा सकता है. बच्चों या वयस्कों में क्षमा भाव का जागृत होना जरूरी है, ताकि वे रिश्तों की डोर को सुरक्षित और बांधकर रख सकें और छोटे-मोटे झगड़ों को आसानी से भुला सकें. अपने अध्ययन के लिए मूल्वे और उनके सहयोगियों ने 5 से 14 वर्ष के 185 बच्चों को चुना. उनके विचारों को जानने व समझने के लिए उनकी पारिवारिक सामाजिक पृष्ठभूमि के आंकड़े लिए और उनका साक्षात्कार लिया. वैज्ञानिकों ने पाया कि बच्चों में दूसरों को आसानी से क्षमा करने की जन्मजात आदत होती है. बस, हमें उसे विकसित करना होता है, जो हम उनके समक्ष अपने व्यवहार से कर सकते हैं. माता-पिता और शिक्षक बच्चों में ऐसे स्वभावगत गुणों को सक्रिय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं. इसके लिए बच्चों को उनकी गलती बता कर क्षमा मांगने के लिए प्रेरित करना चाहिए. इसी तरह कोई गलती करे और क्षमा मांगे तो उसे क्षमा करने के लिए प्रेरित करना चाहिए. साथ ही वे कोई गलती करें, तो उनसे इसका कारण पूछ कर सफाई का मौका देना चाहिए और फिर उन्हें आसानी से माफ भी कर देना चाहिए.
इनपुट : शिखर चंद जैन