देश के पूर्व उप-राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन के अवसर पर हर साल 5 सितंबर को शिक्षक दिवस को मनाया जाता है. कहा जाता है कि राधाकृष्णन एक शिक्षक थे, जिन्होंने शिक्षा क्षेत्र में अपने 40 वर्ष दिए. उनका शिक्षा के क्षेत्र में काफी बड़ा योगदान रहा है. उप-राष्ट्रपति बनने के बाद सर्वप्रथम कुछ छात्रों ने मिलकर उनका जन्मदिन मनाना चाहा था. जिसे सुनते ही डॉ. राधाकृष्णन ने कहा कि मेरा जन्म दिवस मनाने से अच्छा है देश भर में शिक्षक दिवस मनाया जाए, तो मुझे गर्व होगा. तब से ही आज तक हर साल देश भर के विभिन्न कॅालेज, संस्थान, या स्कूलों में 05 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाने की परंपरा है.
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन के अवसर पर पढ़ें उनके अनमोल विचार
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पुस्तकें वो साधन हैं जिनके जरिए हम विभिन्न संस्कृतियों के बीच पुल का निर्माण कर सकते हैं.
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उम्र या युवावस्था का समय से लेना-देना नहीं है. आप अपने आप को कितना नौजवान या बूढा महसूस करते हैं यही मायने रखता है.
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सचमुच ऐसा कोई बुद्धिमान नहीं है जो स्वयं को दुनिया के कामकाज से अलग रख कर इसके संकट के प्रति असंवेदनशील रह सके.
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कोई भी आजादी तब तक सच्ची नहीं होती,जब तक उसे विचार की आजादी प्राप्त न हो. किसी भी धार्मिक विश्वास या राजनीतिक सिद्धांत को सत्य की खोज में बाधा नहीं देनी चाहिए.
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मेरी महत्वाकांक्षा न केवल क्रॉनिकल की है बल्कि मन की गति को समझाने और प्रकट करने और मानव प्रकृति के गहन विमान में भारत के स्रोतों को उजागर करने की है.
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केवल निर्मल मन वाला व्यक्ति ही जीवन के आध्यात्मिक अर्थ को समझ सकता है. स्वयं के साथ ईमानदारी, आध्यात्मिक अखंडता की अनिवार्यता है.
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अपने पड़ोसी से खुद की तरह प्रेम करो क्योंकि तुम खुद अपने पड़ोसी हो. यह तुम्हारा भ्रम है जो तुम्हें ये सोचने पर विवश करता है कि तुम्हारा पड़ोसी तुम्हारे अलावा कोई और हैं
यदि मानव दानव बन जाता है तो ये उसकी हार है, यदि मानव महामानव बन जाता है तो ये उसका चमत्कार है. यदि मनुष्य मानव बन जाता है तो ये उसके जीत है -
भगवान हम में से हर एक में रहता है, महसूस करता है और पीड़ित होता है और समय के साथ हम में से प्रत्येक में उसकी विशेषताओं, ज्ञान, सौंदर्य और प्रेम का पता चलेगा.
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शिक्षक वह नहीं जो छात्र के दिमाग में तथ्यों को जबरन ठूंसे, बल्कि वास्तविक शिक्षक तो वह है जो उसे आने वाले कल की चुनौतियों के लिए तैयार करें.
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शिक्षा का परिणाम एक मुक्त रचनात्मक व्यक्ति होना चाहिए जो ऐतिहासिक परिस्थितियों और प्राकृतिक आपदाओं के विरुद्ध लड़ सके.
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शिक्षा के द्वारा ही मानव मस्तिष्क का सदुपयोग किया जा सकता है. अत:विश्व को एक ही इकाई मानकर शिक्षा का प्रबंधन करना चाहिए.
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हमें राजनीतिक या आर्थिक बदलाव से शांति नहीं मिलती बल्कि शांति मानवीय स्वभाव में बदलाव से आ सकती है.
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