World Of Music: रूप बदलता रिकॉर्डेड म्यूजिक का सुरीला सफर, फोनोग्राफ से स्मार्टफोन तक पहुंचा

गाना सुनना किसे अच्छा नहीं लगता. खुशी हो या गम, हम हर स्थिति में गाने सुनने का बहाना खोज ही लेते हैं. आज हम सबके हाथ में स्मार्टफोन हैं, जिससे जब मन करे और जो मन करे गाना सुन सकते हैं. संगीत के इस रिकॉर्डेड स्वरूप में आने की यात्रा काफी लंबी है. जानें इससे जुड़ी रोचक बातें.

By Vivekanand Singh | May 12, 2024 8:37 PM
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World Of Music: माना जाता है कि थॉमस अल्वा एडिसन ने सबसे पहले आवाज को रिकॉर्ड किया था, लेकिन असल में सबसे पहले गाना रिकॉर्ड करने की उपलब्धि एडवर्ड लियोन स्कॉट डे मार्टिनविले के नाम है. स्कॉट एक फ्रेंच प्रिंटर और बुक सेलर थे. उन्होंने भी फोनॉटोग्राफ का आविष्कार किया था. इसकी मदद से ऑडियो रिकार्डिंग कर पाना संभव हो पाया था. वर्ष 1860 में उन्होंने इसकी मदद से एक औरत की आवाज में गाना रिकॉर्ड किया था.

एडिसन व फोनोग्राफ का आविष्कार

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बाद में फोनोग्राफ का अविष्कार थॉमस अल्वा एडिसन ने वर्ष 1877 में किया था. इससे आवाज को रिकॉर्ड करने के साथ-साथ इसे वापस प्ले करके सुना भी जा सकता था. जो सबसे पहला रिकॉर्डेड फोनोग्राफ बिका था, वह दरअसल एक मेटल के बने सिलेंडर की तरह दिखता था, जिसके चारों तरफ टिन की पतली शीट लगी हुई थी. इसे आवाज से वाइब्रेट करने वाले एक डाइफ्राम पर रखा जाता था, जिससे एक नुकीली-सी कांटे जैसी चीज जुड़ी होती थी. जब यह टिन की पट्टी को छूता था, तो उससे रिकॉर्डेड धुन बजने लगती थी. इस दौरान सिलेंडर लगातार घूमता रहता था.

वर्ष 1948 में आया विनाइल रिकार्ड्स

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वर्ष 1900 की शुरुआत में जब रिकार्डेड डिस्क आया था, तब यह 78 आरपीएम (रोटेशन प्रति मिनट) की दर से घूमता था. इतनी तेजी से घूमने की वजह से इससे काफी बुरा शोर पैदा होता था. वर्ष 1948 में कोलंबिया रिकार्ड्स ने 12 इंच के रिकार्ड्स प्रस्तुत किये, जो 33 आरपीएम के थे. इन्हें लॉन्ग प्ले के नाम से जाना जाता है. इसके कुछ ही समय के बाद 45 आरपीएम के आरसीए रिकार्ड्स चलन में आये. 7 इंच के इन रिकार्ड्स को ‘एक्सटेंडेड प्ले सिंगल’ यानी ईपी के नाम से जाना जाता है. ये दोनों ही रिकार्ड्स ट्रांसपोर्ट के दौरान टूट जाया करते थे, जिस वजह से आरसीए और कोलंबिया दोनों ने ही अपने रिकार्ड्स को विनाइल पर बनाना शुरू कर दिया.

वर्ष 1963 में आया कॉम्पैक्ट कैसेट

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कॉम्पैक्ट कैसेट या टेप का आविष्कार फिलिप्स कम्पनी ने किया था. इसमें 45 मिनट तक एक तरफ से गाने सुने जा सकते थे. फिर कैसेट को पलट कर दूसरी तरफ से भी 45 मिनट तक गाने सुन सकते थे. इनका चलन काफी कुछ सालों पहले तक बना ही हुआ था. बाद में छोटे आकार के टेप्स के चलन में आने के बाद तो इन्हें कही भी आसानी से लाना और ले जाना संभव हो गया.

वर्ष 1972 में फ्लॉपी डिस्क का आविष्कार

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फ्लॉपी डिस्क को अब तक आप डेस्कटॉप कंप्यूटर्स में डाटा स्टोर करने के लिए जानते होंगे. पहले एक कंप्यूटर से दूसरे कंप्यूटर में डाटा ट्रांसफर करने के लिए फ्लॉपी डिस्क का इस्तेमाल किया जाता था. यह बिल्कुल सीडी की तरह ही होता था. लेकिन 80 और 90 के दशक में कुछ लोग फ्लॉपी में अपने म्यूजिक एलबम्स भी रिलीज किया करते थे. सबसे पहला फ्लॉपी डिस्क आइबीएम ने वर्ष 1972 में दुनिया को दिया था. तब यह 5/4 इंच का हुआ करता था. 3/2 इंच की फ्लॉपी की शुरुआत 1982 में हुई थी. यह ज्यादा चलन में नहीं आ पाया.

वर्ष 1982 में आया कॉम्पैक्ट डिस्क (सीडी)

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फ्लॉपी भले ही म्यूजिक के लिए लोगों की पसंद न बन पाया हो, लेकिन इसने म्यूजिक के डिजिटल भविष्य की एक झलक जरूर लोगों के सामने रख दी थी. वर्ष 1974 में फिलिप्स कंपनी को कैसेट और रिकार्ड्स के विकल्प के रूप में सीडी का आइडिया आया था. इसी समय सोनी कंपनी भी सीडी के ऊपर काम कर रही थी. वर्ष 1982 में सीडी पहली बार लॉन्च की गयी. इसी साल सोनी ने अपना सबसे पहला सीडी प्लेयर भी लॉन्च किया था, जिसकी कीमत तब 1000 डॉलर यानी आज के 84,000 रुपये से ज्यादा थी. सीडी के साथ ही पोर्टेबल सीडी प्लेयर भी मार्केट में आ गया. बाद में यह और भी विकसित रूप में डीवीडी और ब्लू रे डिस्क के रूप में सामने आया, जिसमें सीडी के मुकाबले ज्यादा कहीं ज्यादा गाने स्टोर किये जा सकते हैं.

वर्ष 1992 में एमपी-3 प्लेयर का आविष्कार

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एमपी-3 प्लेयर को डेवलप करने का श्रेय रिसर्चर कार्लहेंज ब्रेंडनबर्ग को जाता है. कंप्यूटर के विकास के साथ ही ऑडियो रिकॉर्डिंग को एमपी-3 फाइल फॉर्मेट में सेव किया जाने लगा. बाद में इसे प्ले करने के लिए पोर्टेबल एमपी-3 प्लेयर डिवाइस अस्तित्व में आया, जो आज भी बहुत लोकप्रिय है. हालांकि इसे 80 के दशक में ही तैयार कर लिया गया था, लेकिन इसे लोगों तक अपनी पहुंच बनाने में समय लगा. वर्ष 1992 में लोग इसके बारे में जानने लगे और इसका इस्तेमाल शुरू हुआ. 1999 में नैपस्टर के निर्माण के साथ ही चारों तरफ एमपी3 प्लेयर का ही बोलबाला हो गया. नैपस्टर ने लोगों को फ्री में एमपी3 फाइलें शेयर करने की सुविधा दी, जिससे यह लोगों तक आसानी से पहुंचने लगा.

क्या है आज की म्यूजिक स्ट्रीमिंग टेक्नोलॉजी

वर्ष 2001 (सेलफोन)

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सेलफोन के प्रचलन में आने के बाद उसमें भी एमपी3 प्लेयर की सुविधा दी गयी. एमपी-3 प्लेयर के साथ पहला सेलफोन साइमंस का एसएल-45 था, जो 2001 में आया था. इसकी लोकप्रियता को देखते हुए बाद में अधिकतर सेलफोन बनाने वाली कंपनियों ने यह सुविधा अपने फोन में देनी शुरू कर दी. आज भी स्मार्टफोन या सेलफोन से गाने सुनने वाले लोगों की संख्या सबसे अधिक है.

वर्ष 2002 (स्ट्रीमिंग)

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आज की तारीख में आप इंटरनेट की मदद से गाने सुन सकते हैं, जिसे स्ट्रीमिंग कहते हैं. इसके लिए इंटरनेट पर क्लाउड स्टोरेज होते हैं, जहां गाने पहले से स्टोर किये होते हैं. मोबाइल पर एप या वेबसाइट की मदद से आप इन्हें एक्सेस कर सकते हैं. इसका फायदा यह है कि आपको अपने मोबाइल में स्टोरेज की चिंता करने की जरूरत नहीं पड़ती और आप जितने मन चाहे उतने गाने सुन सकते हैं. स्ट्रीमिंग एप या तो विज्ञापन के साथ फ्री में म्यूजिक की सुविधा देते हैं या मंथली पेमेंट के साथ अनलिमिटेड म्यूजिक की सुविधा देते हैं. नये पुराने सभी तरह के गानों को यहां सर्च किया और ऑनलाइन सुना भी जा सकता है. शायद आगे इससे और भी कुछ बेहतर हमें देखने को मिले, जिसकी हमने कभी कल्पना भी नहीं की हो.

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