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बराबर गुफा की अंदरूनी दीवारें चिकनी और पॉलिश की हुई हैं.
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इतिहास में रुचि रखने वालों के लिए यह पसंदीदा जगह
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वाणावर पहाड़ी की चोटी पर भगवान सिद्धेश्वरनाथ का मंदिर स्थापित
Barabar Caves Tour: भारत दुनिया भर में उत्कृष्ट गुफा वास्तुकला के लिए जाना जाता है. गया, बिहार के उत्तर में लगभग 16 मील की दूरी पर, भारत की सबसे पुरानी रॉक-कट वास्तुकला देखी जा सकती है – बराबर और नागार्जुनी गुफाएं. इन गुफाओं को भारत में सम्राट अशोक के शासनकाल के दौरान मौर्य साम्राज्य (322-185 ईसा पूर्व) की सबसे पुरानी जीवित रॉक-कट गुफाएं माना जाता है. बराबर या सतघरवा गुफाएं भारत के बिहार राज्य के जहानाबाद जिले के मखदुमपुर क्षेत्र में स्थित है. यह गुफाएं 322 से 185 ईसा पूर्व में मौर्य काल में बनी मानी जाती है इनमें सम्राट अशोक के शिलालेख भी पाए जाते है.
वाणावर पहाड़ी प्राचीनतम धरोहरों को संजोये हुए है
वाणावर पहाड़ी श्रृंखला अनेक प्राचीनतम धरोहरों को संजोये हुए हैं. पहाड़ी श्रृंखला कौआडोल, पातालगंगा, भूतही, धनावा, भैरव आदि नाम से भी जानी जाती हैं. वन्य जीवों की शरणस्थली एवं ऋषि मुनियों की तपोभूमि रहा वाणावर पहाड़ी की चोटी पर भगवान सिद्धेश्वरनाथ का मंदिर स्थापित है. हिंदुओं की आस्था का केंद्र बाबा सिद्धनाथ का मंदिर तथा अशोक सम्राट के समय निर्मित सतघरवा लोगों के लिए दर्शनीय है. वहीं कौआडोल पहाड़ी की तलहटी में स्थित है जो हिंदू, बौद्ध एवं इस्लाम धर्मों का संगम है. उक्त स्थल पर मां दुर्गा, गौरी की प्राचीन मूर्तियां विराजमान हैं तो बीच वाले भाग में पीपल वृक्ष के नीचे भगवान बुद्ध की भूमि स्पर्श मुद्रा में बैठी काली पत्थर की दुर्लभ मूर्ति है.
सतघरवा गुफा देखने पहुंचते हैं बड़ी संख्या में लोग
वाणावर की वादियों में पहुंचने वाले अधिकतर लोग सतघरवा गुफा को देखना नहीं भूलते हैं. गुफा देखने के लिए स्थानीय लोगों के अलावा बड़ी संख्या में देसी- विदेशी पयर्टकों की भी भीड़ लगी रहती है. इसके अलावा पहाड़ी इलाके में स्थित हथियाबोर, बबन सीढ़िया एवं पातालगंगा इलाके के रास्ते लोग पहाड़ी की चोटी पर चढ़ाई करते है, जहां बाबा सिद्धेश्वरनाथ के दरबार में जलाभिषेक करने के बाद वे पहाड़ी इलाके में ही खाना बनाकर पिकनिक भी मनाते हैं. जिले का एक मात्र ऐतिहासिक पर्यटक स्थल तथा पिकनिक स्पॉट होने के कारण यहां लोगों का जमावड़ा लगता है.
बराबर गुफाओं की कुछ दिलचस्प बातें
इन गुफाओं की एक अन्य दिलचप विशेषता है, यहाँ की दीवारें! जी हां, गुफा की अंदरूनी दीवारें चिकनी और पॉलिश की हुई हैं. शायद इसलिए भी इस गुफ़ा ने अपनी वही पुरानी चमक अब तक खोई नहीं है. बराबर गुफाओं का निर्माण कार्य सम्राट अशोक के शासनकाल के समय में हमें ले जाता है. इसलिए आप सम्राट अशोक से जुड़े कई शिलालेख भी यहाँ पाएंगे. बराबर गुफ़ा के पास एक और अन्य गुफा भी स्थित है, नागार्जुनी गुफा जो बराबर गुफा से लगभग 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. दोनों ही गुफाएं एक ही समय की हैं इसलिए इन्हें एक साथ सतघर के रूप में जाना जाता है.
बराबर शृंखला की सबसे ऊंची चोटी पर है सिद्धेश्वर नाथ महादेव मंदिर. हजारों साल पुराने इस शिव मंदिर में जल चढ़ाने के लिए सालों भर श्रद्धालु आते हैं, लेकिन सावन में तो यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. यहां मगध के महान सम्राट अशोक के समय के शिलालेख आज भी उस साम्राज्य की गाथा अपने अंदर सहेजे हुए हैं. यही कारण है कि इतिहास में रुचि रखने वालों के लिए यह पसंदीदा जगह है. बराबर न केवल पहाड़ और जंगल के लिए प्रसिद्ध है बल्कि औषधीय पौधे और लौह अयस्क के भी यहां भंडार हैं.
सातवीं सदी में बनाया गया था बाबा सिद्धनाथ का मंदिर
बराबर पहाड़ पर मौजूद बाबा सिद्धनाथ मंदिर का निर्माण सातवीं शताब्दी में राजगीर के महान राजा जरासंध द्वारा इस मंदिर का निर्माण कराया गया था. यहां से गुप्त मार्ग राजगीर किले तक पहुंचा था. इस रास्ते से राजा पूजा-अर्चना करने के लिए मंदिर में आते थे. पहाड़ी के नीचे विशाल जलाशय पातालगंगा में स्नान कर मंदिर में पूजा-अर्चना की जाती थी.
कैसे पहुंचें
बराबर गुफाओं की सैर करने के लिए पटना से सड़क के जरिये यहां तीन से चार घंटे में पहुंच सकते हैं. पटना- गया राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 83 से होते हुए मखदुमपुर में जमुना नदी के पुल को पार करने पर पूरब की ओर सड़क जाती है, जो सीधे पर्यटक स्थल बराबर तक पहुंचती है. ट्रेन से आने वाले लोग बराबर हाल्ट पर उतर कर सवारी गाड़ी के माध्यम से भी यहां पहुंच सकते हैं.