Tourism: रहस्यों से भरा है जूनागढ़ का किला
जूनागढ़ अपने ऐतिहासिक महत्व के लिए जाना जाता है. जूनागढ़ (Junagadh)की ऐतिहासिक संरचनाएं देखने लायक हैं. राज्य की राजधानी से लगभग 341 किमी की दूरी पर बसा जूनागढ़ अपने नवाबी इतिहास के साथ सैलानियों को यहां आने के लिए मजबूर करता है. जूनागढ़ का किला कई रहस्यों से भी भरा हुआ है.
सुमन बाजपेयी, टिप्पणीकार
माना जाता है कि कंस के पिता उग्रसेन जो मथुरा के राजा थे, यहां यात्रा करने आये थे. गिर पर्वत पर तपस्या करने वाले ऋषियों ने उनसे कहा कि वे उनके लिए एक गांव का निर्माण कर दें क्योंकि उनके पास रहने की कोई जगह नहीं है. निचले हिस्से में अगर वे रह नहीं सकते क्योंकि वहां बाढ़ आ जाती है. तब उग्रसेन ने पर्वत को काटकर उनके लिए गांव बनवाया और नाम दिया रेवत नगर. उसके बाद वहां बौद्ध व जैन धर्म आया और उसके बाद राजपूत आये, जिन्होंने इसे जूनागढ़ (Junagadh Fort) का नाम दिया.
जूनागढ़ का क्या है अर्थ
जूनागढ़ का अर्थ है पुराना किला. गिरनार पहाड़ी पर बसे इस शहर में आठ सौ ज्यादा हिंदू और जैन मंदिर हैं. जूनागढ़ के ऊपरकोट किले की इस यात्रा में किले के परिसर में ही बहुत सारे स्थल बने हुए हैं, जिनके लिए काफी चलना पड़ता है. जूना का अर्थ होता है किला और गढ़ यानी गिरनार पर्वत. चंद्रगुप्त मौर्य और सम्राट अशोक के शासन काल के दौरान जूनागढ़ शहर अस्तित्व में आया था. माना जाता है कि कंस के पिता उग्रसेन जो मथुरा के राजा था, यहां यात्रा करने आये थे. गिर पर्वत पर तपस्या करने वाले ऋषियों ने उनसे कहा कि वे उनके लिए एक गांव का निर्माण कर दें क्योंकि उनके पास रहने की कोई जगह नहीं है. निचले हिस्से में अगर वे रह नहीं सकते क्योंकि वहां बाढ़ आ जाती है. तब उग्रसेन ने पर्वत को काटकर उनके लिए गांव बनवाया और नाम दिया रेवत नगर. उसके बाद वहां बौद्ध व जैन धर्म आया और उसके बाद राजपूत आये, जिन्होंने इसे जूनागढ़ का नाम दिया. दिलचस्प बात यह है कि इस किले के अंदर 33 हिंदू राजाओं ने राज किया. अंतिम राजा था गंगा जड़िया.
मस्जिद में क्यों किया था तब्दील
किले के मुख्य द्वार से प्रवेश करने से पहले हनुमान व गणपति की मूर्तियां बनी हैं. पता चला कि भगवान का अपमान करने के कारण राजा को श्राप मिला था कि जहां तेरा महल होगा, वहां मस्जिद होगी और जहां गांव होगा, वहां जंगल और कब्रिस्तान. और यह बात सच हुई. मुख्य द्वार, जिसे तोरण गेट कहा जाता है, की बाउंड्री में नौ किलोमीटर पत्थर की खाई हुआ करती थी, जिसके अंदर जहरीले सांप व अजगर हुआ करते थे और ऊपर घास बिछा दी जाती थी. किले के अंदर कुछ दूर चलने पर सबसे पहले रानी रणकदेवी का महल पड़ता है. अब केवल वह इमारत ही है और देखने पर मस्जिद जैसे लगता है, क्योंकि मुसलिम राजा मोहम्मद शाह ने जब इस पर अधिकार किया था, तो उसने मीनारें बनवा दी थीं. यह महलनुमा मस्जिद 140 खंभों पर खड़ी है. मोहम्मद बेगड़ा ने जूनागढ़ फतह के दौरान (1470) अपनी विजय की याद में इसे मस्जिद में तब्दील कर दिया था. थोड़ी सीढ़ियां चढ़ वहां पहुंचे, तो वह स्थान देखा, जहां रानी रणकदेवी के फेरे हुए थे. विवाह मंडप के लिए गोलाकार पत्थर अभी भी वहां हैं. उनके सिंहासन की जगह भी है, जहां की कारीगरी देखते ही बनती है.
गिरनार पर्वत का नजारा
ऊपर जाने के बाद गिरनार पर्वत का बहुत अच्छा नजारा दिखता है. थोड़ा आगे बढ़ने पर दो तोपें हैं. कहा जाता है कि जूनागढ़ के नवाब ने ये तोपें तुर्किस्तान के सुलतान से ली थीं. जब बौद्ध गुफाओं के पास पहुंचते हैं, तो लगता है जैसे किसी रहस्यमय दुनिया में प्रवेश कर रहे हैं. सीढ़ियां उतरकर नीचे पहुंचने पर ज्ञात होता है कि पत्थरों से बनी 60 फीट गहरी तीन मंजिला इन गुफाओं का प्रयोग भिक्षुओं के रहने के लिए किया जाता था. इनमें सुसज्जित खंभे, अलंकृत प्रवेशद्वार, पानी के संग्रह के लिए बनाए गए जल कुंड, चैत्य कक्ष, प्रार्थना कक्ष, खिड़कियां आदि स्थापत्य कला का अद्भुत उदाहरण पेश करती हैं.
अड़ीकड़ी बावड़ी बनाने में 24 साल लगे
आगे बनी अड़ीकड़ी बावड़ी को बनाने में 24 साल लगे थे और इसमें 170 सीढ़ियां हैं. पौने दो सौ फीट गहराई है इस बावड़ी की. एक लंबी सड़क पार कर बना है नवघन कुआं, जो 1025 में बना था. इसका निर्माण चूडासमा राजपूतों ने कराया था. इसकी गहराई, जो पौने चार सौ फीट है, को देख कोई भी सहम सकता है. पानी के संग्रह के लिए इसकी अलग तरह की संरचना की गयी थी. कुछ कदम की दूरी पर अनाज का कोठार बना है.