मणिकर्ण में घुम्मकड़ी के दौरान सुंदर पेड़-पौधों के साथ-साथ अनेक रंगों की मिट्टी के सम्मिश्रण से रची, लुभावनी पर्वत शृंखलाओं के दृश्य मानस पटल पर अंकित हो जाते हैं. पर्यटन का गवाह कैमरा यहां बेहद सक्रिय भूमिका निभाता है. पर्यटकों की कलात्मक प्रतिभा इस यात्रा को और निराली बनाने में उनकी मित्र बन जाती है. अनेक खूबसूरत पत्थर, सुंदर ड्रिफ्टवुड्स, जंगली फूल, पारदर्शी क्रिस्टल (जिनकी लुक टोपाज जैसी होती है) मिल जाते हैं.
ऐतिहासिक, धार्मिक और पर्यटन आकर्षण मणिकर्ण का अर्थ है ‘कान का बाला’. सदियों से यहां आ रहे पर्यटकों को लगभग 5,800 फुट उंचाई पर बहती पार्वती नदी खूब रोमांचित करती है. नदी का खिलंदड़ पानी बर्फ की मानिंद ठंडा है और इसके दाहिनी तरफ गर्म जल के उबलते स्रोत हैं, जो नदी से गले मिलते हैं. इस ठंडे-उबलते कुदरती संतुलन ने वैज्ञानिकों को चकित कर रखा है. उनके अनुसार पानी में गंधक और अन्य रेडियोधर्मी तत्व हैं, जो अनेक बीमारियों को काफी हद तक ठीक कर सकते हैं. इस कारण भी यहां दूर-दूर से पर्यटक आते हैं.
बर्फ खूब पड़ती है मणिकर्ण में, लेकिन गर्म पानी का आकर्षण कम नहीं. ठंड के मौसम में प्रसिद्ध गुरुद्वारा परिसर के अंदर बनाये गये विशाल स्नान स्थल में जितनी देर चाहें, नहा सकते हैं. मगर ध्यान रहे, ज्यादा देर नहाने से चक्कर आ सकते हैं. पुरूषों व महिलाओं के लिए अलग-अलग प्रबंध हैं. दिलचस्प है कि मणिकर्ण के तंग बाजार में भी गर्म पानी की सप्लाई पाइपों से की जाती है. अनेक रेस्तराओं में यही गर्म पानी उपलब्ध है. स्लेट की छत वाली दुकानों व मकानों के बीच घूमते हुए लगता है, मानो शिलांग या लद्दाख में घूम रहे हों. तिब्बती कला एवं संस्कृति से जुड़े सामान और विदेशी वस्तुएं खूब उपलब्ध हैं.
विदेशी स्नैक्स व भोजन भी मिलते हैं. इन्हीं गर्म चश्मों में गुरुद्वारे के लंगर के लिए बड़े-बड़े बर्तनों में चाय बनाते हैं. दाल, चावल व अन्य खाद्य पकाते हैं. पर्यटकों के लिए कपड़े की पोटलियों में चावल डालकर धागे से बांधकर बेचे जाते हैं, विशेषकर नवदंपत्ति इकट्ठे धागा पकड़कर चावल उबालते हैं. उन्हें लगता है कि यह उनकी जिंदगी की पहली ओपन रोमांचक किचन है. यहां पानी इतना खौलता है कि जमीन पर पांव नहीं टिकते. गर्म जल का तापमान हर मौसम में एक समान रहता है. गुरुद्वारे की विशाल इमारत में ठहरने के लिए खासी जगह है. प्राईवेट होटल व कई निजी गेस्ट हाउस भी हैं.
मणिकर्ण अन्य कई दिलकश पर्यटक स्थलों का आधार स्थल भी है. यहां से आधा किलोमीटर दूर ब्रह्म गंगा है, जहां पार्वती नदी व ब्रह्मगंगा मिलती हैं. यहां कुदरत का खुला दीदार कर सकते हैं. नारायणपुरी, राकसट, बरसेनी और पुलगा जा सकते हैं. पवित्र स्थल रूद्रनाथ लगभग 8,000 फुट की उंचाई पर बसा है. मणिकर्ण से लगभग 25 किलोमीटर दूर अनुमानत: 10,000 फुट पर स्थित खीरगंगा भी गर्म जल स्रोतों के लिए जानी जाती है. पांडव पुल 45 किलोमीटर है. इस क्षेत्र में जहां चाहें, वहां रूककर मनोरम प्रकृति का आनंद ले सकते हैं.
115 किलोमीटर दूर मानतलाई तक जा पहुंचते हैं. मानतलाई के लिए पर्यटकों को समूहों में ही जाना होता है. संसार की विरली अपने किस्म की अनूठी संस्कृति व लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था रखने वाले अदभुत गांव मलाणा का मार्ग भी मणिकर्ण से लगभग 15 किलोमीटर पीछे जरी नामक स्थल से होकर जाता है. प्रसिद्ध स्थल कसोल मणिकर्ण से चार किलोमीटर पहले है. यहां पार्वती नदी के किनारे दरख्तों के पड़ोस में बहते पानी को हरी घास से जुदा करती सफेद रेत नजारों को खास बना देती है.
मणिकर्ण में घुम्मकड़ी के दौरान सुंदर पेड़-पौधों के साथ-साथ अनेक रंगों की मिट्टी के सम्मिश्रण से रची, लुभावनी पर्वत शृंखलाओं के दृश्य मानस पटल पर अंकित हो जाते हैं. पर्यटन का गवाह कैमरा यहां बेहद सक्रिय भूमिका निभाता है. पर्यटकों की कलात्मक प्रतिभा इस यात्रा को और निराली बनाने में उनकी मित्र बन जाती है. अनेक खूबसूरत पत्थर, सुंदर ड्रिफ्टवुड्स, जंगली फूल, पारदर्शी क्रिस्टल (जिनकी लुक टोपाज जैसी होती है) मिल जाते हैं. यह सब पर्यटकों के घरों के अतिथि कक्ष का अहम हिस्सा बनते हैं और मणिकर्ण की रोमांचक यादों के स्थायी हिस्सा बने रहते हैं. ट्रेकिंग के शौकीन पर्यटकों के लिए मणिकर्ण से कई रोमांचक ट्रेक इंतजार में हैं. हमारी जिंदगी में ऐसी खास आवारगियों के कारण रोमांस और रोमांच बार-बार ताजा हो उठता है क्योंकि पहाड़ हमेशा बुलाते जो रहते हैं.
मणिकर्ण कुल्लू से 10 किलोमीटर पहले बसे भुंतर से होते हुए 45 किलोमीटर है. भुंतर में हवाई अड्डा है. यह दिल्ली से लगभग 580 किलोमीटर और चंडीगढ़ से लगभग 290 किलोमीटर है.
अप्रैल से जून तक अधिक उपयुक्त रहेगा. सर्दी या कभी भी जाने का अपना मजा है, मगर पहले रास्तों का पता कर लें.