Independence Day 2023 Temple Visit: स्वतंत्रता दिवस एक विशेष दिन है। भारत को 190 वर्षों की लंबी लड़ाई के बाद, 15 अगस्त 1947 को ब्रिटिश सरकार और उनके क्रूर नियमों से आजादी मिली थी। हर साल की तरह इस साल भी हर जगह स्वतंत्रता दिवस (Independence Day 2023) की तैयारियां चल रही हैं. इस दिन लोग स्वतंत्रता सेनानियों के कुर्बानियों को याद करते हैं और तिरंगा झंडा फहराते हैं. आज हम आपको भारत के एक ऐसे शिव मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां पर आजादी के बाद से ही इंडिपेंडेंस डे और रिपब्लिक डे के दिन इस मंदिर पर धार्मिक झंडे के साथ राष्ट्रीय झंडे को भी फहराया जाता है. यह देश का पहला मंदिर है जहां तिरंगा फहराया जाता है. हम बात कर रहे हैं रांची के पहाड़ी मंदिर (Pahadi Mandir) की, जहां पूजा के साथ-साथ देश भक्ति की झलक दिखती है. इस मंदिर को पहाड़ी मंदिर के अलावा लोग फांसी टुंगरी के नाम से भी जानते हैं.
क्या है मंदिर में तिरंगा झंडा फहराने के पीछे की कहानी
पहाड़ पर स्थित भगवान शिव का यह मंदिर देश की आजादी के पहले अंग्रेजों के कब्जे में था. स्वतंत्रता मिलने के बाद सबसे पहले रात के 12 बजे इस पहाड़ी की चोटी पर भगवान शिव के पताका के साथ तिरंगा फहराया गया था. ये सिलसिला आज भी बदस्तूर जारी है. स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर इस पहाड़ी पर सबसे पहले तिरंगा झंडा फहराया जाता है.ऐसा माना जाता है कि 1947 की आधी रात को सबसे पहले इसी मंदिर के गुंबद में तिरंगा फहराया गया था. फांसी टुंगरी के अलावा इस मंदिर का नाम पीरु गुरु भी था, जिसे आगे चलकर ब्रिटिश काल में ही फांसी टुंगरी (Fansi Tungri) में बदल गया.
सावन मास में देखने को मिलती है खास भीड़
सावन माह में पहाड़ी मंदिर में खासी भीड़ देखने को मिलती है. पहाड़ी बाबा के नाम से मशहूर इस मंदिर में फरवरी से लेकर अक्टूबर तक भक्तों की काफी भीड़ देखी जाती है। महाशिवरात्रि, नागपंचमी और पूरे श्रावण भर भक्तों की लंबी कतारें यहां देखने को मिल जाती है। इस मंदिर से पूरे रांची शहर का खूबसूरत नजारा भी दिखता है। इस पहाड़ी से सूर्योदय और सूर्यास्त का नजारा देखने में काफी विहंगम लगता है.
सात वर्ष पहले पहाड़ी मंदिर पर 493 फीट ऊंचे फ्लैग पोल स्थापित किया गया, जिस पर 23 जनवरी 2016 को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती के अवसर पर 30. 17 मीटर लंबे और 20.12 मीटर चौड़ा तिरंगा झंडा फहराया गया था. तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर परिकर ने पहाड़ी मंदिर के नीचे बने समारोह स्थल से बटन दबाकर तिरंगा फहराया था.
रांची में कहां स्थित है ये मंदिर दूर है मंदिर
रांची रेलवे स्टेशन से करीब 8 किलोमीटर की दूर स्थित भगवान शिव के इस मंदिर को पहाड़ी मंदिर के नाम से जाना जाता है. पहाड़ी बाबा मंदिर का पुराना नाम टिरीबुरू था, जो आगे चलकर ब्रिटिश के समय में ‘फांसी गरी’ में बदल गया, क्योंकि अंग्रेजों के राज में यहा फ्रीडम फाइटर्स को फांसी पर लटकाया जाता था.
रांची में घूमें इन जगहों पर
जगन्नाथ मंदिर
जगन्नाथ मंदिर सत्रहवीं शताब्दी का भगवान जगन्नाथ को समर्पित मंदिर है जो जगन्नाथपुर में एक छोटी सी पहाड़ी पर स्थित है. यह राजधानी शहर के बाहरी इलाके धुरवा में रेलवे स्टेशन से लगभग 11 किलोमीटर और हवाई अड्डे से 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. जब आप जगन्नाथ मंदिर के दर्शन करेंगे, तो आप इसके पवित्र वातावरण, शांत वातावरण और सुंदर मूर्तिकला से मंत्रमुग्ध हो जाएंगे. शिखर से आप रांची शहर को देख सकते हैं और विहंगम दृश्य का आनंद ले सकते हैं. जगन्नाथ मंदिर में शाम की आरती मन को शांति का अनुभव कराती है.
पतरातू घाटी
झारखंड के रामगढ़ जिले में पतरातू घाटी स्थित है. पतराती एक आकर्षक घाटी है, जो लोगों को यहां आने से नहीं रोक सकता है. यह घाटी 1300 फीट से अधिक की ऊचाई पर स्थित है. हरे-भरे जंगल और घूमावदार सड़क आकर्षण का केंद है. यह घाटी हिमाचल की मनाली की खूबसूरती को याद दिलाता है.
सूर्य मंदिर
रांची के बुंडू में सूर्य मंदिर बेहद ही खूबसूरत मंदिर है.अपनी अनूठी वास्तुकला के लिए जाना जाने वाला, सूर्य मंदिर रांची में घूमने के लिए सबसे लोकप्रिय स्थानों में से एक बन गया है. एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित, मंदिर का निर्माण विशिष्ट सूर्य मंदिर वास्तुकला में किया गया है जिसमें 18 पहियों वाला एक विशाल रथ दिखाया गया है, जिसे सात घोड़ों द्वारा खींचा जा रहा है.
बिरसा जूलॉजिकल पार्क
अगर आप बच्चों के साथ यात्रा कर रहे हैं तो बिरसा जूलॉजिकल पार्क घूमने के लिए एक बेहतरीन जगह है। पार्क बाघ, शेर और हिरण सहित विभिन्न प्रकार की जीवों की प्रजातियों का घर है. अगर आप वाइल्डलाइफ लवर हैं, तो आप यहां से क्षेत्र के वन्यजीवों के बारे में सभी प्रकार की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं.
टैगोर हिल
टैगोर हिल का नाम महान कवि रवींद्रनाथ टैगोर के नाम पर पड़ा है, जिनके बारे में माना जाता है कि उन्होंने यहां काफी समय बिताया था। ऐसा कहा जाता है कि एकांत का आनंद लेने और अपनी किताबें लिखने के लिए टैगोर अक्सर इन पहाड़ियों पर जाते थे। लगभग 300 फीट की ऊंचाई पर स्थित है.