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जामताड़ा या जसीडीह तक आइए Train से, बासुकीनाथ धाम के जोर-शोर से कर लेंगे दर्शन

Jharkhand Tourism: बासुकीनाथ मंदिर भगवान शिव को समर्पित झारखंड का एक प्राचीन मंदिर है. तो आइए आज आपको बताते हैं आखिर क्या महत्व है बासुकीनाथ धाम का.

By Rupali Das | June 18, 2024 4:31 PM
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Jharkhand Tourism: प्राकृतिक सौंदर्य, जैव विविधता, पहाड़, नदियों और प्राचीन मंदिरों से भरा-पूरा राज्य है झारखंड. यहां के कई ऐतिहासिक और धार्मिक केंद्र पर्यटकों के बीच काफी मशहूर हैं. यहां मौजूद विभिन्न देवी – देवताओं के प्रसिद्ध मंदिर श्रद्धालुओं के आस्था और विश्वास का प्रतीक है. झारखंड में मौजूद बासुकीनाथ मंदिर भक्तों की श्रद्धा का केंद्र है. इस दर्शनीय स्थल में सावन के महीने का खास महत्व है. अगर आप भी झारखंड भ्रमण का प्लान बना रहे हैं, तो बासुकीनाथ मंदिर होगा आपके लिए खास.

Jharkhand Tourism: कहां है बासुकीनाथ धाम

झारखंड के देवघर-दुमका राज्य मार्ग पर स्थित है, भगवान शिव-पार्वती का प्राचीन मंदिर, बासुकीनाथ धाम. यह मंदिर दुमका जिला मुख्यालय से करीब 24 किलोमीटर दूर है. आप ट्रेन के माध्यम से भी बासुकीनाथ धाम आ सकते हैं. यहां का सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन जसीडीह जंक्शन और जामताड़ा रेलवे स्टेशन है. रांची हवाई अड्डे से इस मंदिर की दूरी लगभग 350 किलोमीटर है. हर वर्ष हजारों लोग यहां बाबा के दर्शन करने आते हैं. श्रावण मास में यहां विशाल श्रावणी मेले का आयोजन किया जाता है, जिसे देखने के लिए देश-विदेश से पर्यटक आते हैं.

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Jharkhand Tourism: सावन में क्यों बढ़ जाता है इस जगह का महत्व

बासुकीनाथ धाम हिंदू धर्म के लोगों के लिए एक पवित्र तीर्थ स्थान है. यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है. बासुकीनाथ धाम की गिनती वैश्विक स्तर पर प्रसिद्ध शैव-स्थल के रूप में होती है. श्रावण माह भगवान शिव का महीना है. इस दौरान भगवान शिव की विशेष आराधना की जाती है. लोग दूर-दूर से कांवड़ यात्रा करके बैद्यनाथ धाम में स्थित ज्योतिर्लिंग पर जल चढ़ाने आते हैं. मान्यता है कि बाबा बैद्यनाथ की पूजा, बासुकीनाथ की पूजा के बिना अधूरी होती है. यही कारण है सावन के महीने में हजारों-लाखों श्रद्धालु बाबा बैद्यनाथ के साथ-साथ बासुकीनाथ की पूजा करने देवघर आते हैं.

इस अवसर पर बासुकीनाथ धाम में विशेष श्रावणी मेले का आयोजन किया जाता है. बासुकीनाथ धाम का संबंध समुद्र मंथन के काल से भी किया जाता है. कहा जाता है कि समुद्र मंथन के दौरान वासुकी नाग को रस्सी के तरह उपयोग किया गया था. समुद्र मंथन से पहले वासुकी नाग ने यहां भगवान शिव की पूजा-अर्चना की थी जिसके कारण इस स्थान का नाम बासुकीनाथ पड़ गया. बासुकीनाथ धाम को लेकर और भी कई कहानियां प्रचलित हैं. यह खूबसूरत मंदिर भारतीय पारंपरिक शैली में बना हुआ है. बासुकीनाथ धाम मंदिर का इतिहास और संस्कृति कई साल पुराना और समृद्ध है.

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