Bihar Tourism: बिहार की संस्कृति, प्राचीन मंदिर, धार्मिक केंद्र और तीर्थस्थल पर्यटकों के बीच काफी मशहूर हैं. यह राज्य अपने ऐतिहासिक स्थान, नदियों और पहाड़ के लिए भी प्रसिद्ध है. यहां मौजूद कई स्थानों का ऐतिहासिक और धार्मिक घटनाओं से खास जुड़ाव है. यह राज्य वर्षों से विश्व प्रसिद्ध पर्यटन स्थल रहा है. बिहार में मौजूद चंडिका स्थान एक प्रसिद्ध धार्मिक, ऐतिहासिक और पर्यटन केंद्र है. इस जगह का जुड़ाव माता सती से लेकर महाभारत काल तक से है. यह हिंदू धर्म के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है. अगर आप भी बिहार घूमने आ रहे हैं तो चंडिका स्थान जरूर आएं.
Bihar Tourism: कैसे आएंगे चंडिका स्थान
चंडिका स्थान,बिहार के मुंगेर में स्थित प्रसिद्ध शक्तिपीठ है. यह मंदिर मां चंडिका को समर्पित है, जहां मां सती की बाईं आंख की पूजा होती है. चंडिका स्थान, बिहार की राजधानी पटना के हवाई अड्डे से करीब 188 किमी दूर स्थित है. इस मंदिर का सबसे करीबी रेलवे स्टेशन मुंगेर जंक्शन है, जिसकी दूरी लगभग 2 किमी है. यह एक पवित्र तीर्थस्थल से है, जिसका जिक्र महाभारत काल में भी मिलता है.
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Bihar Tourism: जाने इस मंदिर का महत्व और इतिहास
चंडिका मंदिर का इतिहास सालों पुराना है. यह मंदिर मुंगेर में स्थित प्रसिद्ध पर्यटक स्थल है. जहां हर रोज बड़ी संख्या में श्रद्धालु माता सती के नेत्र के दर्शन करने आते हैं. मां चंडिका मंदिर गंगा नदी के किनारे स्थित है, यहां नवरात्रि की अष्टमी पर विशेष पूजा की जाती है. इस दिन माता का भव्य श्रृंगार किया जाता है, देश-विदेश से पर्यटक यहां पूजा-अर्चना करने आते हैं. मान्यता है कि यहां आने वाले हर भक्त की मनोकामना मां पूरी करती है. नवरात्र के दौरान यहां विशेष पूजा की जाती है, जिसमें कई साधक तंत्र सिद्धि के लिए भी जुटते हैं. तंत्र साधना के संदर्भ में इस मंदिर को असम के कामख्या मंदिर के समान माना जाता है. यह मंदिर नेत्र रोगियों के लिए वरदान के समान है. मान्यता है कि नेत्र रोग से पीड़ित श्रद्धालु यहां आकर माता को नमन करते हैं और उनका काजल लेकर जाते हैं. इस काजल को लगाने से उनके नेत्र संबंधी सभी विकार दूर हो जाते हैं. यह माता की चमत्कारिक शक्ति है.
Bihar Tourism: महाभारत काल से क्या है जुड़ाव
चंडिका स्थान का वर्णन महाभारत में भी मिलता है. मान्यता है कि अंगराज कर्ण हर रोज गंगा नदी में स्नान करने के पश्चात यहां सवा मन सोना दान करते थे. यह सोना कर्ण मां चंडिका की पूजा और सेवा कर प्राप्त करते थे. अंगराज द्वारा सोना दान करने के बारे में जब राजा विक्रमादित्य को पता चला तो वह इसके पीछे का रहस्य जानने के लिए चंडिका स्थान पहुंच गए. यहां आकर विक्रमादित्य ने देखा कि ब्रह्म मुहूर्त में स्नान कर कर्ण मंदिर में एक खोलते तेल के कड़ाह में कूद जाते हैं. अंगराज के मांस का चौंसठों योगिनियां भक्षण कर लेती हैं. इसके बाद माता कर्ण की अस्थियों पर अमृत छिड़ककर उन्हें जीवित कर देती हैं. माता प्रसन्न होकर कर्ण को सवा मन सोना देती हैं, जिसे वे कर्णचौड़ा पर खड़ा हो दान कर दिया करते थे. यह दृश्य देखकर एक दिन विक्रमादित्य कर्ण से पहले चंडिका स्थान पहुंच गए. उन्होंने वहां रखे कड़ाह में छलांग लगा दी और तीन बार अपने शरीर को समाप्त कर लिया. हर बार माता ने उन्हें जीवित कर दिया. जब चौथी बार विक्रमादित्य कड़ाह में कूदने गए तो माता ने उन्हें रोका और वरदान मांगने को कहा-ऐसे में विक्रमादित्य ने उनसे सोने की थैली और अमृत कलश मांग लिया. दोनों चीज विक्रमादित्य को देने के बाद माता ने कड़ाह को उल्टा कर दिया, क्योंकि अंग राज के आने का समय हो गया था और उनके पास अमृत कलश नहीं था. इसलिए वह कर्ण को दोबारा जीवित नहीं कर सकती थी. आज भी वह कड़ाह चंडिका स्थान में उल्टा हुआ है. चंडिका स्थान प्रसिद्ध धार्मिक और पर्यटन स्थल है. यह मंदिर ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण केंद्र है. इस मंदिर के प्रति श्रद्धालुओं में अपार आस्था है.
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