Historical Place in Chhattisgarh: छत्तीसगढ़ के जनजातीय बहुल जिले सरगुजा के सीमांत क्षेत्र में बसा डीपाडीह वहां का सबसे समृद्ध और महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल माना जाता है. चारों ओर पहाड़ियों और सरना वृक्ष के जंगलों से घिरे इस क्षेत्र का प्राकृतिक सौंदर्य पर्यटकों को खींचता है. वर्ष 1988 में यहां हुई खुदाई में अनेक प्राचीन और दुर्लभ कलाकृतियां मिलीं, जिनकी वजह से यह क्षेत्र चर्चा में आया. डीपाडीह शब्द का अर्थ है प्राचीन भग्न आवासों का टीला. प्राचीन स्थलों का भूमि कृषि के लिए उपयोग किये जाने से प्राचीन आवासीय संरचनाएं नष्ट हो गयीं. इसके बावजूद प्राचीन भग्न मंदिरों के अवशेष टीलों के रूप में विद्यमान रहे. इन टीलों की जब खुदाई हुई, तो सातवीं सदी से लेकर 10वीं सदी तक के प्राचीन मंदिरों के अवशेष, प्रतिमाएं, स्थापत्य खंड व मूर्तियां मिलीं. साथ ही, कई मंदिर भी मिले, जिनमें अधिकतर शिव मंदिर थे.
डीपाडीह का प्रमुख पुरातात्विक स्थल है सामत सरना
सामत सरना डीपाडीह का प्रमुख पुरातात्विक स्थल है. कहा जाता है कि प्राचीन काल में सामत राजा और टांगीनाथ के मध्य युद्ध हुआ, जिसमें वीरगति पाने के कारण सामत राजा की रानियों ने बावड़ी में कूदकर प्राण त्याग दिये. क्षेत्रीय ग्रामवासी शिव (पशुधर) की नग्न प्रतिमा को ही सामत राजा मानकर पूजते थे, उन्हीं के नाम से यह स्थल सामत सरना के नाम से प्रसिद्ध है. खुदाई में मिले उरांव टोला स्थित शिव मंदिर में लोक जीवन तथा जीव-जंतुओं को शिल्पियों ने उकेरने में अद्भुत भाव प्रवीणता का परिचय दिया है. इसमें नृत्य करते मयूर, उड़ते हुए हंस तथा नायिकाओं के चित्रण से इस तथ्य की पुष्टि होती है. कर्णाभूषणों के प्रयोग में प्रमुख रूप से पोंगल एवं तरकी तथा बाली का प्रयोग किया गया है. एक नारी प्रतिमा में दोनों कानों में अलग-अलग आभूषण धारण करते दिखाया है, जो आज भी सरगुजा क्षेत्र की वृद्ध महिलाएं पहनती हैं.
भव्य शिव मंदिर और तीन नदियों का अद्भुत संगम
आठवीं सदी का यह शिव मंदिर आकार में बड़ा तथा भव्य है. लगभग तेरहवीं शताब्दी तक लगातार स्थापत्य गतिविधियों के प्रमाण यहां दिखते हैं. इससे स्पष्ट होता है कि यह एक धार्मिक, सामाजिक एवं आर्थिक सक्रियता का केंद्र रहा होगा. इस स्थल के चारों ओर पहाड़ियां हैं, बीच में सपाट मैदान है और सरगुजा की महत्वपूर्ण नदी, कन्हर यहां से गुजरती है. यहां से एक किलोमीटर से भी कम दूरी पर ऊपर बायीं ओर सूर्या नामक छोटी नदी कन्हर में मिलती है. कुछ नीचे गलफुल्ला नामक दूसरी नदी दाहिनी ओर मिलती है.
तीन नदियों का यह संगम इस स्थल के चयन के पीछे मुख्य कारण रहा होगा. मंदिर के गर्भगृह में चौकोर पीठ पर सात फीट ऊंचा शिवलिंग स्थापित है. यहां से प्राप्त प्रतिमाओं में उमा-महेश्वर की प्रतिमा विशेष उल्लेखनीय है. गणेश की नृत्य मुद्रा में द्विभुजी, चतुर्भुजी तथा कार्तिकेय की विशालकाय प्रतिमा प्रफुल्ल मुद्रा में प्रदर्शित है. भैरव की रौद्र प्रतिमा नर मुंडों की माला पहने हुए है. भैरव की यह प्रतिमा विकराल होने पर भी कलात्मक है. पशुधर शिव की मानवाकार प्रतिमा में अंगों का लोच तथा बंकिम भंगिमा में सम्मोहन है. एक बड़े शिवलिंग में 108 लघु लिंग बने हुए हैं. डीपाडीह की शिल्प कला में देवी प्रतिमा को भी प्रमुखता से रूपांकित किया गया है. यहां की शिल्प कला में अप्सराओं, सुर-सुंदरियों तथा यौवनांगी नायिकाओं को अनेक भाव-भंगिमाओं में प्रदर्शित किया है. कहीं दर्पण देखती, शृंगार करती, वेणी गूंथती, नुपूर पहनती, नृत्य करती, प्रिय की प्रतीक्षा करती तथा मनुहार की इच्छुक नायिकाओं का भाव विभोर अंकन है.
कहीं नायक के द्वारा अपनी प्रेयसी के पैर में चुभे हुए कांटे को बाण के फलक से निकालते हुए चित्रित किया गया है. डीपाडीह की मूर्तिकला में आध्यात्मिक तत्व तथा लौकिक परिवेश को संतुलित ढंग से प्रदर्शित करने के प्रयास में शिल्पियों का प्रयास स्तुत्य है. महिषासुर मर्दिनी, चामुंडा, योगिनी, दुर्गा, गौरी, स्कंद माता, सप्त मातृका की कई प्रतिमाएं कला की दृष्टि से उच्च कोटि की हैं. इस मूर्तिकला में अध्यात्मिक तत्व तथा लौकिक परिवेश को संतुलित ढंग से प्रदर्शित करने के प्रयास में शिल्पियों का प्रयास प्रशंसनीय है.
बावडिंयों और रानी पोखर का मनमोहक दृश्य
डीपाडीह में पुरानी बावड़ियां हैं, एक छोटा सा रानी पोखर है, उसी तरह सामत-सरना मंदिर के पिछवाड़े एक बावड़ी है. इसके प्राचीन इतिहास के रोचक अध्याय में चईला पहाड़ भी महत्वपूर्ण है. डीपाडीह के स्मारकों के लिए समीप स्थित चईला पहाड़ से स्थापत्य खंड काटकर मंदिर निर्माण के लिए प्रयोग किया गया है. आसपास के क्षेत्रों में देखने योग्य जगह है तातापानी. यहां प्राकृतिक रूप से धरती से गर्म पानी निकलता है. कई बार वैज्ञानिकों ने इसका परीक्षण किया, लेकिन पता नहीं कर सके कि गर्म पानी का स्रोत क्या है.