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MP के मंदसौर में है अष्टमुखी पशुपतिनाथ का मंदिर, एक ही समय में आठ अलग रूपों में देते है दर्शन

मंदसौर में अष्टमुखी पशुपतिनाथ मंदिर हिंदू आध्यात्मिकता और सांस्कृतिक विरासत की स्थायी विरासत का एक प्रमाण है, आइए जानते है इससे जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी

By Pratishtha Pawar | July 16, 2024 6:37 PM
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मध्य प्रदेश के ऐतिहासिक शहर मंदसौर(Mandsaur) में स्थित अष्टमुखी पशुपतिनाथ मंदिर(Ashtamukh Pashupatinath Temple) भगवान शिव को समर्पित एक प्राचीन मंदिर है, जो अपने अष्टमुखी(Ashtamukh) दिव्य रूप के कारण भक्तों की श्रद्धा और आस्था का केंद्र बन हुआ है.अष्टमुखी पशुपतिनाथ भगवान का यह मंदिर भगवान शिव के अवतार पशुपतिनाथ को समर्पित है जो कि शिवना नदी के तट पर स्थित है.

मंदसौर में पशुपतिनाथ मंदिर इसका निर्माण औलिकरा वंश के राजा यशोवर्मन ने 5वीं शताब्दी ईस्वी में  करवाया था.ऐतिहासिक अभिलेखों और शिलालेखों से पता चलता है कि यह मंदिर प्राचीन काल में भी एक महत्वपूर्ण धार्मिक केंद्र था.

Pashupatinath temple, mandsaur, mp (image source-social media)

अष्ट तत्वों को दर्शाते है ये मुख

मंदिर की वास्तुकला उत्तर भारतीय शैली का एक बेहतरीन उदाहरण है, जिसकी विशेषता इसकी ऊंची चोटी और जटिल नक्काशी है. मुख्य गर्भगृह में एक अनोखा अलौकिक अष्टमुखी शिवलिंग है, जो 7.3 फीट ऊंचा है. शिवलिंग के ऊपरी ओर चार मुख और निचली और चार मुख स्थित है.

यहां पर भक्तों को जीवन की चारों अवस्थाओं के दर्शन होते है. पूर्व दिशा वाला मुख बाल्यावस्था को दर्शाता है,पश्चिम दिशा वाला मुख युवावस्था, उत्तर दिशा वाला मुख प्रौढ़ावस्था, दक्षिण दिशा वाला मुख किशोरावस्था का प्रतीक है.  

मंदिर में चारों ओर दरवाजे है जिसका अर्थ है कि भगवान पशुपतिनाथ के दरवाजे हमेशा भक्तों के लिए खुले रहते है. भगवान शिव के अष्टमुख के नाम उनके अष्ट तत्वों के अनुसार है- शर्व, भाव, रुद्र, उग्र, भीम, पशुपति, ईशान, महादेव.

Pashupatinath temple, mandsaur, mp (image source-social media)

शिवना नदी के पवित्र तट पर 19 जून 1940 को यह अलौकिक शिवलिंग प्रकट हुई थी जिसका स्वरूप मूर्ति रूप में भी है और शिवलिंग के रूप में भी,1961 में मंदिर में स्थापना स्वामी प्रत्यक्षानन्द के कर कमलों से हुई.

यह शिवलिंग नेपाल के काठमांडू में पशुपतिनाथ मंदिर में पाए जाने वाले लिंग के समान है.

Pashupatinath temple, mandsaur, mp (image source-social media)

पशुपतिनाथ मंदिर किंवदंतियों और मिथकों से जुड़ा हुआ है जो इसके रहस्यमय आकर्षण को और भी बढ़ाते हैं. एक लोकप्रिय किंवदंती केशी नामक एक राक्षस की कहानी बताती है, जो इस क्षेत्र को आतंकित कर रहा था.  स्थानीय लोगों ने भगवान शिव से मुक्ति के लिए प्रार्थना की, और भगवान शिव ने राक्षस को परास्त करने के लिए अपने पशुपतिनाथ रूप में प्रकट हुए, और तभी से वे अपने अष्टमुखी अवतार मे यहां पर विराजमान है.

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सावन और महाशिवरात्रि के दौरान लगता है मेला

सावन के पवित्र महीने और महाशिवरात्रि के त्योहार के दौरान पशुपतिनाथ मंदिर भक्ति और उत्सव का केंद्र बन जाता है. सावन के दौरान,भक्त भगवान शिव से आशीर्वाद पाने के लिए मंदिर में पूजा-अर्चना और अनुष्ठान करने के बड़ी संख्या में आते हैं. सावन में यहां भक्तों के लियव भव्य मेले और भंडारे का आयोजन होता है.

महाशिवरात्रि, भगवान शिव को समर्पित भव्य रात्रि, भक्तों की और भी बड़ी भीड़ को देखती है. बड़े उत्साह के साथ मनाए जाने वाले इस त्यौहार में रात भर जागरण एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम शामिल होते है. 

पशुपतिनाथ मंदिर के बारे में रोचक तथ्य

  • पशुपतिनाथ मंदिर का निर्माण 5वीं शताब्दी ई. में औलीकर वंश के राजा यशोवर्मन ने करवाया था.
  • मंदिर में एक दुर्लभ अष्टमुख वाला शिव लिंग है, जो भगवान शिव के चार पहलुओं – सद्योजात, वामदेव, अघोरा और तत्पुरुष को दर्शाता है.
  • इस दुर्लभ शिवलिंग की ऊंचाई 7.5 फीट है.
  • यह मंदिर शिवना नदी के तट पर स्थित है.
  • एक लोकप्रिय किंवदंती बताती है कि भगवान शिव ने अपने पशुपतिनाथ रूप में राक्षस केशी को हराया, जो इस क्षेत्र को आतंकित कर रहा था, इस प्रकार स्थानीय लोगों की रक्षा की.
  • मिथक के अनुसार, शिव लिंग की खोज एक चरवाहे ने की थी, जिसकी गाय हर दिन एक विशेष स्थान पर रहस्यमय तरीके से दूध देना बंद कर देती थी, जिसके कारण उस स्थान पर मंदिर की स्थापना हुई.
  • सावन के पवित्र महीने और महाशिवरात्रि के त्यौहार के दौरान, मंदिर में हजारों की संख्या में भक्त आते हैं जो अनुष्ठान, प्रार्थना और रात भर जागरण में भाग लेते हैं.

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