Jagannath Rath Yatra: हिंदू धर्म में जगन्नाथ रथ यात्रा का विशेष महत्व है. उड़ीसा के पुरी में जगन्नाथ मंदिर से यह रथ यात्रा की शुरुआत होती है. हर साल आषाढ़ महीने की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को रथ यात्रा शुरू की जाती है. इस तिथि को भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन देवी सुभद्रा के साथ 9 दिनों की रथ यात्रा पर निकलते हैं. मान्यता के अनुसार भगवान जगन्नाथ की मुख्य लीला भूमि पूरी है इसलिए इस यात्रा का महत्व और ज्यादा बढ़ जाता है.
गुंडिचा माता मंदिर है भगवान जगन्नाथ की मौसी का घर
गुंडिचा मंदिर भगवान जगन्नाथ के मंदिर से 3 किलोमीटर दूर स्थित है. इसका निर्माण कालिंग वास्तुकला में बनाया गया है. यह भगवान जगन्नाथ जी की मौसी गुंडिचा को समर्पित है. मान्यता है कि जगन्नाथ रथ यात्रा के दौरान भगवान यहां सात दिनों तक ठहरते है साथी मानता यह भी है कहा जाता है कि रथ यात्रा में जगन्नाथ बलभद्र एवं सुभद्रा गुंडिचा मंदिर आते जहां उनकी मासी उन्हें पीठादो, रसगुल्ला खिला के स्वागत करती है.
एक और कहानी यह भी है कि मंदिर के निर्माता राजा इंद्रधनु की रानी का नाम गुंडिचा था जिसके नाम पर इस मंदिर का निर्माण किया गया गुंडिचा ने देवशिल्पी विश्वकर्मा द्वारा बनाई जाने वाली जगन्नाथ जी की दिव्य छवि पर एक नजर डाली छवि से प्रभावित होकर उन्होंने अपने पति से मंदिर बनवाने और रथ यात्रा शुरू करने पर जोर दिया. वही एक अन्य मत के अनुसार भगवान जगन्नाथ मंदिर निर्माण से इतना प्रसन्न थे कि उनके घर गुंडिचा मंदिर जाने का वादा किया था.
Also Read- Jagannath Rath Yatra: 53 साल बाद बना दुर्लभ संयोग एक नही 2 दिन निकाली जाएगी रथ यात्रा
कौन है भगवान जगन्नाथ की मौसी गुंडिचा माता?
गुंडिचा माता राजा इंद्रद्युम्न की पत्नी हैं, जो ओडिशा के पुरी में प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर के संस्थापक है. यह मंदिर भगवान जगन्नाथ, भगवान विष्णु के अवतार, उनके भाई-बहनों, बलभद्र (बलराम) और सुभद्रा को समर्पित है. उनके नाम पर बना गुंडिचा मंदिर इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह वार्षिक रथ यात्रा (रथ उत्सव) का गंतव्य है.
हेरापंचमी पर्व- हेरापंचमी जगन्नाथ रथ यात्रा के पांचवें दिन मनाया जाने वाला त्योहार है. “हेरा” शब्द का अर्थ है “देखना” और “पंचमी” पांचवें दिन को संदर्भित करता है. यह अनुष्ठान भगवान जगन्नाथ को देखने के लिए देवी लक्ष्मी (महालक्ष्मी) की गुंडिचा मंदिर की यात्रा का प्रतीक है.
किंवदंती के अनुसार,
बीमारी से स्वस्थ होने के बाद भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन देवी सुभद्रा के साथ महालक्ष्मी जी की आज्ञा लेकर सैर पर निकल पड़ते है. भगवान ने महालक्ष्मी को वचन दिया की वे जल्द ही 2 दिन में वापिस लौट आएंगे दो दिन बीत जाने पर भगवान जगन्नाथ नहीं आते है.
महालक्ष्मी धैर्य पूर्वक तक इंतजार करती रही. पांचवे दिन महालक्ष्मी अपने पति भगवान जगन्नाथ को देखने के लिए गुंडिचा मंदिर पहुंच जाती हैं. महालक्ष्मी के क्रोध को देखकर भगवान जगन्नाथ उनके क्रोध शांत होने का इंतजार करते है. उसी समय महालक्ष्मी एवं भगवान जगन्नाथ के सैनिकों के बीच युद्द भी होता है क्रोधवश महालक्ष्मी भगवान जगन्नाथ के रथ नंदिघोष का हिस्सा तोड़ देती है.
और वापिस हेरा गोहीरी मार्ग से मंदिर लौट जाती है जब पांचवे दिन महालक्ष्मी मंदिर में भगवान जगन्नाथ को देखने आती है तो इसे हेर पर्व कहते है.
क्या है मरजन की प्रथा?
मरजन की प्रथा, जिसे गुंडिचा मरजन के नाम से भी जाना जाता है, रथ यात्रा से पहले गुंडिचा मंदिर की सफाई का एक अनुष्ठान है. यह त्यौहार से एक दिन पहले किया जाता है. इस परंपरा में भक्तों द्वारा पूरे मंदिर की पूरी तरह से सफाई की जाती है, जो भगवान जगन्नाथ का स्वागत करने के लिए हृदय और आत्मा की सफाई का प्रतीक है. माना जाता है कि इस अभ्यास से मंदिर शुद्ध होता है, जिससे यह भगवान जगन्नाथ के प्रवास के दौरान उनकी दिव्य उपस्थिति के लिए तैयार हो जाता है.
Also Read-Jagannath Rath Yatra:क्या है नेत्रोत्सव और नवजौबाना दर्शन
Jagannath Rath Yatra: आखिर कौन थे सालबेग जिनकी मजार पर आज भी रुकती है रथ यात्रा