Jagannath Rath Yatra 2024: आखिर कौन थे सालबेग जिनकी मजार पर आज भी रुकती है रथ यात्रा

भगवान जगन्नाथ जी की इस यात्रा में भगवान स्वयं अपने भक्तों के पास जाते है और उनके सारे कष्टों का निवारण करते है. ऐसे ही एक अनन्य भक्त की कहानी है जो श्रद्धालुओं को भगवान जगन्नाथ की ओर आकर्षित करती है वह है – भगवान जगन्नाथ के परम भक्त सालबेग की कहानी.

By Pratishtha Pawar | July 7, 2024 7:50 AM
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Jagannath Rath Yatra: भगवान श्री जगन्नाथ की रथ यात्रा का हिन्दू धर्म के लोगों को बेसब्री से इंतजार रहता है,यह यात्रा हर वर्ष हिन्दू कैलंडर के अनुसार आषाढ़ माह में शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को निकलती है. भगवान विष्णु के चार धाम में से एक जगन्नाथ पूरी है जहां से रथ यात्रा बड़े धूमधाम और भव्यता के साथ निकाली जाती है. जिसमें देश विदेश से भक्त आते है.

यह किंवदंती ओडिशा में सबसे प्रसिद्ध घटनाओं में से एक- रथ यात्रा के दौरान सामने आती है. इस भव्य ‘रथ उत्सव’ में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की राजसी मूर्तियों को पुरी की सड़कों पर परेड करते हुए देखा जाता है, जो दुनिया के सभी कोनों से भक्तों को आकर्षित करती है. हालांकि, इस यात्रा का सबसे दिलचस्प हिस्सा तब होता है जब रथ सालबेग की मजार पर रुकते हैं.

सालबेग से जुड़ी कई कहानियां सामने आती है जिसमें से एक कहानी कुछ इस प्रकार है-

कौन थे सालबेग?

प्रचलित किवदंतियों के अनुसार- सालबेग एक मुगल सूबेदार और एक धर्मनिष्ठ ब्राह्मण महिला का बेटा था. उनका जन्म विवादों में घिरा रहा और उनका बचपन गहरी आध्यात्मिक लालसा से भरा. अपने इस्लामी पालन-पोषण के बावजूद, सालबेग हिंदुओं के देवता भगवान जगन्नाथ की ओर आकर्षित थे.

काफी समय से गंभीर बीमारी से पीड़ित सालबेग को उनकी मां ने भगवान की रथ यात्रा के दर्शन करने को कहा. यह जानते हुए कि उनके पास समय सीमित है, उन्होंने भगवान जगन्नाथ से एक आखिरी दर्शन के लिए प्रार्थना की. अपनी कमजोर हालत के बावजूद, उन्होंने पुरी की कठिन यात्रा शुरू भी की. फिर भी, वे समय पर नहीं पहुंच सके; उनकी शक्ति कम हो गई और वे गिर पड़े.

कहानी में दिलचस्प मोड तब आता है जब रथ शहर से गुजर रहा था, और वह उसी स्थान पर आकर रुक जाता है जहां सालबेग लेते हुए थे, ऐसा माना जाता है कि शक्तिशाली रस्सियां आपो आप खिंच गईं, लेकिन रथ हिले नहीं. ऐसा लग रहा था जैसे दैवीय शक्ति ने खुद ही रुकने का आदेश दिया हो. भीड़ हैरान और विस्मित थी, और सालबेग की कमज़ोर आंखों में कृतज्ञता के आंसू भर आए.

सालबेग की भक्ति इतनी शक्तिशाली थी कि इसने रथ यात्रा पर एक अमिट छाप छोड़ी. आज भी भगवान जगन्नाथ के रथ सालबेग की मजार पर थोड़े समय के लिए रुकते हैं और भक्त कवि-संत को श्रद्धांजलि देते हैं.

यह ठहराव केवल श्रद्धांजलि नहीं है बल्कि भगवान जगन्नाथ के सर्वव्यापी प्रेम का प्रमाण है, जो हर भक्त को प्रेरित करते हैं. सालबेग की कहानी पवित्र भक्ति की है, जो दर्शाती है कि ईश्वर भेदभाव नहीं करता. उनका जीवन और उनकी मजार पर रथ यात्रा का वार्षिक ठहराव ईश्वर और भक्त के बीच शाश्वत बंधन का प्रतीक है, चाहे वे किसी भी मूल के हों.

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