Karnataka Tourism: 97,000 रोशनी से जगमगाता है मैसूर पैलेस, क्या है इसकी कहानी

मैसूर पैलेस भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और वास्तुकला की चमक का एक प्रमाण है. इसकी भव्यता, इतिहास और परंपराए दुनिया भर से पर्यटकों को आकर्षित करती हैं

By Pratishtha Pawar | July 11, 2024 3:19 PM

Karnataka Tourism: कर्नाटक के मैसूर पैलेस(mysore palace)का नाम भारत के राजसी महलों में शुमार है. इंडो-सरसेनिक(Indo-Saracenic) शैली में निर्मित, शानदार मैसूर पैलेस, जिसे अंबा विलास(Amba Vilas) के नाम से भी जाना जाता है, यह शानदार राजसी महल आज भी वाडियार राजवंश (Wadiyar dynasty) का निवास और मैसूर साम्राज्य की स्मृति के रूप में खड़ा है.

मैसूर पैलेस: 97,000 रोशनी से जगमगाता यह महल

Mysuru palace, amba vilas, karnataka, india (image source-social media)

इस महल की नक्काशीदार महोगनी छत, रंगीन कांच, सोने के खंभे और चमकदार टाइलों से सजे इसके बेहतरीन अंदरूनी भाग, राजसीपन और भव्यता का प्रतीक हैं. 97,000 रोशनी से जगमगाता यह महल रविवार और सार्वजनिक छुट्टियों के दिन शाम के समय एक शानदार नजारे में बदल जाता है, जिससे यह यकीनन भारत में सबसे ज्यादा देखे जाने वाले महलों में से एक बन जाता है.

Mysuru palace, amba vilas, karnataka, india (image source-social media)

मैसूर पैलेस की कहानी 14वीं सदी की शुरुआत में शुरू होती है, जिसे वोडेयार के शाही परिवार ने बनवाया था. मूल रूप से लकड़ी से निर्मित इस महल को कई बार नष्ट किया गया: एक बार 1638 ई. में बिजली गिरने से, फिर 1739 ई. में टीपू सुल्तान द्वारा और फिर 1897 ई. में आग लगने से इस समय यह महल चंदन की लकड़ी से बना हुआ था राजकुमारी जयालक्षमणि की शादी के समय अकस्मात आग लगने से ये महल एक बार फिर नष्ट हो गया

वर्तमान मैसूर पैलेस, चौथा पुनर्निर्माण, 1912 में पूरा हुआ और ब्रिटिश वास्तुकार हेनरी इरविन द्वारा डिजाइन किया गया था. वास्तुकला की इस उत्कृष्ट कृति ने सदियों के इतिहास को देखा है और आज भी यह वाडियार राजवंश की स्थायी विरासत का प्रतीक बना हुआ है.

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मैसूर पैलेस के बारे में रोचक तथ्य

Mysuru palace, amba vilas, karnataka, india (image source-social media)
  • मैसूर पैलेस, जिसे अंबा विलास पैलेस के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू, मुस्लिम, राजपूत और गोथिक स्थापत्य शैली का मिश्रण दर्शाता है.
  • यह वाडियार राजवंश का आधिकारिक निवास और मैसूर साम्राज्य की शाही गद्दी भी है.
  • 1897 में आग लगने से मूल लकड़ी की संरचना नष्ट हो जाने के बाद 1912 में महल को उसके वर्तमान स्वरूप में फिर से बनाया गया.
  • महल को रविवार, सार्वजनिक छुट्टियों और वार्षिक दशहरा उत्सव के दौरान लगभग 100,000 बल्बों से रोशन किया जाता है.
  • मैसूर पैलेस प्रसिद्ध दशहरा उत्सव का केंद्र है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न मनाने वाला 10 दिवसीय कार्यक्रम है.
  • इसमें कलाकृतियों के विशाल संग्रह वाला एक संग्रहालय है, जिसमें पेंटिंग, शाही पोशाक और आभूषण शामिल हैं.
  • दरबार हॉल और अन्य कमरों की छतें जटिल और रंगीन चित्रों से सजी हैं.
  • महल में इंग्लैंड और बेल्जियम से आयातित सुंदर रंगीन ग्लास की खिड़कियां भी मौजूद हैं.
  • महल परिसर के अंदर 12 हिंदू मंदिर हैं, जो विभिन्न देवताओं को समर्पित हैं.
  • महल का मुख्य प्रवेश द्वार, जिसे हाथी द्वार के रूप में जाना जाता है, मूर्तियों और चित्रों से सुसज्जित है, जो वाडियार शासकों की भव्यता को दर्शाता है.

क्या है इस राजशी भवन की खासियत

Mysuru palace, amba vilas, karnataka, india (image source-social media)

गुड़िया मंडप(The Dolls’ Pavilion): मूल रूप से दशहरा उत्सव के दौरान गुड़िया प्रदर्शित करने के लिए बनाया गया यह मंडप विजयनगर युग की परंपरा को जारी रखता है.

स्वर्ण सिंहासन: स्वर्ण हौदाह, जिसे अम्बारी भी कहा जाता है, मैसूर पैलेस का मुख्य आकर्षण है. 80 किलोग्राम सोने की चादरों से ढका यह मैसूर साम्राज्य के शासकों की शाही गद्दी है और दशहरा जुलूस के भव्य समापन का केंद्र बिंदु है.

सार्वजनिक दरबार हॉल: एक भव्य रूप से सजाया गया हॉल जहां राजा और उनके सबसे करीबी सलाहकार राज्य के मामलों पर चर्चा करने के लिए मिलते थे.

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पेंटिंग गैलरी: 1934 और 1945 के बीच, वाडियार ने मैसूर दशहरा जुलूस की महिमा और भव्यता को चित्रित करने के लिए कलाकारों को नियुक्त किया.गैलरी में वास्तविक तस्वीरों पर आधारित 26 पैनल प्रदर्शित किए गए हैं, जो उस समय में होने वाले उत्सव के सार को दर्शाते हैं.

विवाह मंडप: एक अष्टकोणीय हॉल जहां शाही शादियाँ, जन्मदिन और औपचारिक समारोह मनाए जाते थे. मोर की आकृति और पुष्प मंडलों वाली रंगीन कांच की छत मैसूर के कलाकारों द्वारा बनाई गई थी.

पोर्ट्रेट गैलरी: शाही परिवार की बहुमूल्य पेंटिंग और तस्वीरें प्रदर्शित की गई हैं, जिनमें प्रसिद्ध शाही कलाकार राजा रवि वर्मा की 1885 की कृतियां शामिल हैं.

कुश्ती प्रांगण: कुश्ती के प्रति राजाओं के संरक्षण को दर्शाते हुए, इस प्रांगण में कई प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती थीं.

मैसूर महल में कई प्राचीन मंदिर भी स्थित है जिसमें श्री लक्ष्मीरामन स्वामी मंदिर जो कि मैसूर के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है. श्री श्वेता वराहस्वामी मंदिर, श्री त्रिनयनेश्वर स्वामी मंदिर, श्री प्रसन्न कृष्णस्वामी मंदिर जो भगवान कृष्ण को समर्पित है इसका निर्माण, कृष्णराज वाडियार तृतीय द्वारा 1825 और 1829 के बीच कराया गया था एवं अन्य मंदिर भी शामिल है.

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