Karnataka Tourism: शालमला नदी के तट पर स्थित है एक हजार शिवलिंग आखिर क्या है रहस्य सहस्रलिंगों का
17वी शताब्दी में निर्मित यह शिवलिंग आज भी शिवभक्तों के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है. सदियों पुराने सहस्रलिंग का आज भी 365 दिन अभिषेक होता है..
Sawan 2024: पश्चिमी घाटों में बसे कर्नाटक में एक रहस्यमयी स्थल है जिसने भक्तों और यात्रियों दोनों की कल्पना को चौका दिया है वह है सहस्रलिंग(Sahasralinga) यानि “एक हजार शिवलिंग”(‘One Lakh’ Shiva Linga). इस पवित्र स्थान पर शिवलिंगों की एक बड़ी और प्रभावशाली संख्या देखने को मिलती है, जो शालमला नदी(Shalmala River) के चट्टानी नदी तल पर बेहद ही खूबसूरती से उकेरी गई है.
प्राचीन कथाओं और आध्यात्मिक महत्व से घिरा यह पवित्र स्थान तीर्थयात्रियों और जिज्ञासुयों को इसके रहस्यों का पता लगाने के लिए आमंत्रित करता है.सहस्रलिंग एक पूजा स्थल ही नहीं बल्कि यह कर्नाटक की समृद्ध सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत का प्रतीक भी है. सावन और शिवरात्रि के समय बड़ी संख्या में श्रद्धालू यहां पहुंचते है.
सहस्रलिंग: 17वीं शताब्दी में हुआ था निर्माण
सहस्रलिंग की उत्पत्ति 17वीं शताब्दी में सिरसी क्षेत्र के राजा सदाशिवरायवर्मा के शासनकाल में हुई थी. 17वी शताब्दी में सिरसी क्षेत्र के राजा सदाशिवरायवर्मा ने अपनी गुरु की आज्ञा के अनुसार शिवलिंग को यहां बनवाया था. किवदंती के अनुसार राजा का कोई पुत्र नहीं था. कई अनुष्ठान पूजा-पाठ करने के बाद भी राज्य को उसका उत्तराधिकारी नही मिला. अपने गुरु की आज्ञा के अनुसार राजा को एक ही स्थान पर 1008 शिवलिंगों का निर्माण करना था जिसका साल के सभी दिन यानि 365 दिन अभिषेक होते रहना चाहिए था.अत: राजा ने शालमला नदी में सहस्रलिंग का निर्माण कराया था.
प्रत्येक शिव लिंग को स्थानीय कारीगरों की सहायता से सावधानीपूर्वक तराशा गया था,यहां आपको हर शिवलिंग के पास भगवान शिव के प्रिय नंदी को भी देख सकते है. छोटे छोटे शिवलिंग से लेकर विशाल आकार वाले शिवलिंगों को यहां नदी के तल पर स्थित पत्थरों पर बेहद ही खूबसूरती से उकेरा गया है.
सदाशिवराय वर्मा का इन शिवलिंगों को बनाने का उद्देश्य क्या था यह समय ही जानता है पर उनके द्वारा बनवाए गए ये सहस्रलिंग समय की कसौटी पर खरे उतरे है, भगवान शिव के प्रति राजा की भक्ति लिंगों की विशाल संख्या में परिलक्षित होती है, यहां पर स्थित प्रत्येक लिंग अपने डिजाइन और स्थान में अद्वितीय है.
शालमला नदी के चट्टानी तल पर उकेरे गए है ये सहस्रलिंग
लिंगों को सीधे शालमला नदी के चट्टानी तल और आसपास की चट्टानों पर उकेरा गया है, जो सहस्रलिंग को एक प्राकृतिक और आध्यात्मिक चमत्कार बनाता है. कई लोग ‘एक लाख’ लिंगों की किंवदंती पर विश्वास करते हैं. इसके नाम के बावजूद, सहस्रलिंग में शिव लिंगों की वास्तविक संख्या एक लाख से कम है.
सावन और शिवरात्रि में होती है विशेष पूजा
भगवान शिव को समर्पित सावन का महीना सहस्रलिंग में विशेष महत्व रखता है. सावन या श्रावण हिंदू कैलेंडर का पांचवा महीना है और इसे भगवान शिव की पूजा के लिए बहुत शुभ माना जाता है. इस अवधि के दौरान, भक्त सहस्रलिंग में प्रार्थना करने, अनुष्ठान करने और स्थल के शांत और आध्यात्मिक माहौल में ध्यान लगाने के लिए आते हैं.
सावन के दौरान सहस्रलिंग आस्था और शिव भक्तों का केंद्र बन जाता है. माना जाता है कि शालमला नदी, लिंगों के ऊपर धीरे-धीरे बहती है, आत्मा को शुद्ध करती है और पापों को धो देती है.
तीर्थयात्री नदी में चलते हैं, प्रत्येक लिंग पर रुककर प्रार्थना करते हैं और अनुष्ठान करते हैं. पश्चिमी घाट की प्राकृतिक सुंदरता से घिरे, पूजा में लीन भक्तों का दृश्य प्रकृति और आध्यात्मिकता के बीच स्थायी संबंध का एक शक्तिशाली स्मारक है. सदियों से विकसित स्थानीय रीति-रिवाजों और परंपराओं से सहस्रलिंग में सावन और महाशिवरात्रि का महत्व और भी बढ़ जाता है. स्थानीय समुदाय उत्सव में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं, भगवान शिव के सम्मान में विशेष कार्यक्रम और समारोह आयोजित करते हैं.
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