Odisha Tourism: भगवान जगन्नाथ की नगरी से बस 36 किमी दूर है विश्व प्रसिद्ध कोणार्क मंदिर, अनूठी वास्तुकला का है प्रतीक
Odisha Tourism: कोणार्क सूर्य मंदिर अपनी उत्कृष्ट शिल्प-कला, नक्काशी, और पशुओं तथा मानव आकृतियों का सटीक प्रदर्शन है,जो इसे अन्य मंदिरों से अलग और अनूठा बनाता है. इस मंदिर की शिल्प कलाकृतियों को संग्रहित कर, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के सूर्य मंदिर संग्रहालय में सुरक्षित रखा गया है. तो चलिए आज हम आपको बताते हैं कोणार्क सूर्य मंदिर से जुड़े अन्य रोचक तथ्य.
Odisha Tourism: ओड़िशा राज्य अपने अद्भुत वास्तुकला, प्राचीन मंदिरों, पुरातात्विक साइटों, अनूठे आइलैंड, खूबसूरत झीलों, मनोरम समुद्र तट ऐतिहासिक स्थलों के लिए विश्व प्रसिद्ध है. यहां का समृद्ध इतिहास, अनोखी संरचने और अद्वितीय कला पर्यटकों के बीच मशहूर है. ओड़िशा के कोणार्क में स्थित सूर्य मंदिर 13वीं सदी के उत्कृष्ट स्थापत्य कला का जीवंत उदाहरण है. यह मंदिर पर्यटकों के बीच काफी प्रसिद्ध है.
Odisha Tourism: कैसे आएंगे कोणार्क मंदिर
ओड़िशा के कोणार्क में स्थित, कोणार्क सूर्य मंदिर एक अद्भुत और अद्वितीय संरचना है. भगवान जगन्नाथ की नगरी पुरी से इसकी दूरी केवल 36 किमी है. वहीं राजधानी भुवनेश्वर से इस मंदिर की दूरी लगभग 66 किमी है. कोणार्क सूर्य मंदिर का निकटतम रेलवे स्टेशन, पुरी रेलवे स्टेशन है. कोणार्क सूर्य मंदिर कलिंग वास्तुकला का अद्भुत उदाहरण है.
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Odisha Tourism: जानें क्या है मंदिर का इतिहास
कोणार्क सूर्य मंदिर ओड़िशा के पुरी जिले में स्थित हिंदू धर्म का सांस्कृतिक केंद्र है, जिसके निर्माण का श्रेय गंगवंश के राजा प्रथम नरसिंह देव को जाता है. लाल रंग के बलुआ पत्थरों तथा काले ग्रेनाइट के पत्थरों से बना यह मंदिर अत्यंत सुंदर दिखाई देता है. इस मन्दिर को कलिंग शैली में बनाया गया है, जिसमें पत्थरों को उत्कृष्ट नक्काशी के साथ उकेरा गया है। यह पूरा मन्दिर बारह जोड़ी चक्रों के साथ सात घोड़ों से खींचते हुए निर्मित किया गया है, जिसमें सूर्य देव को विराजमान दर्शाया गया है। प्रसिद्ध भारतीय कवि रवींद्रनाथ टैगोर ने कोणार्क सूर्य मंदिर के संदर्भ में कहा था – “कोणार्क जहां पत्थरों की भाषा मनुष्य की भाषा से श्रेष्ठतर है”. सूर्य देव को समर्पित यह मंदिर पौराणिक महत्व और इतिहास से समृद्ध है.
Odisha Tourism: क्या है पौराणिक महत्व
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान श्री कृष्ण के पुत्र साम्ब को पिता के श्राप से कोढ़ रोग हो गया था. इस रोग के निवारण के लिए साम्ब ने सभी रोगों के नाशक सूर्य देव की कठिन तपस्या की. मित्रवन में चंद्रभागा नदी के सागर संगम पर कोणार्क में साम्ब ने बारह वर्षों तक भगवान सूर्य की तपस्या की, जिससे प्रसन्न होकर सूर्य देव ने साम्ब के रोग का भी नाश कर दिया. रोग-नाश के बाद जब साम्ब चंद्रभागा नदी में स्नान कर रहे थे तब उन्हें देवशिल्पी श्री विश्वकर्मा की बनायी सूर्यदेव की एक मूर्ति मिली. जिसके बाद साम्ब ने इस स्थान पर सूर्य देव को समर्पित एक पवित्र मंदिर बनवाया और वहां उस मूर्ति की स्थापना की. 1984 में विश्व प्रसिद्ध कोणार्क सूर्य मंदिर को यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता दी.
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