Maharashtra Tourism: प्रकृति की गोद में बसा महाबलेश्वर धाम, रुद्राक्ष रूप में स्थित है शिवलिंग

महाराष्ट्र के महाबलेश्वर में रुद्राक्ष रूप में स्थित है प्रकृति से उत्पन्न है करोड़ों वर्ष पुराना स्वयंभू शिवलिंग, सावन में दर्शन मात्र से होते है भक्तों के कष्ठ दूर

By Pratishtha Pawar | July 2, 2024 3:25 PM

Maharashtra Tourism: महाराष्ट्र के सतारा जिले के महाबलेश्वर हिल स्टेशन में स्थित महाबलेश्वर धाम मंदिर, भगवान शिव को समर्पित एक प्रतिष्ठित हिंदू मंदिर है.अपने पौराणिक महत्व के साथ ही मंदिर का वृहद इतिहास भी है.यह मंदिर हेमदंत वास्तुकला का एक शानदार उदाहरण है जिसे सह्याद्री पर्वत शृंखला पर कुदरत ने अपनी अनमोल धरोहर से सजाया है, महाबलेश्वर मंदिर के दर्शन मात्र भक्तों के तमाम कष्टों का होता है निवारण.

महाबलेश्वर धाम मंदिर:प्रकृति से उत्पन्न है,स्वयंभू शिवलिंग

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महाबलेश्वर मंदिर के गर्भगृह में 6 फुट लंबा ‘स्वयंभू’ (स्वयं उत्पन्न) शिव लिंग है, जिसे “महालिंगम” के नाम से जाना जाता है, जो दुनिया में एकमात्र रुद्राक्ष के आकार का शिव लिंग होने के कारण यह शिवलिंग अद्वितीय है. हजारों साल पुराना यह शिवलिंग ‘त्रिगुणात्मक लिंग’ का प्रतीक है, जो महाबलेश्वर, अतिबलेश्वर और कोटेश्वर का प्रतीक है. मंदिर परिसर में नंदी और कालभैरव की कई मूर्तियां भी शामिल हैं.

महाबलेश्वर धाम मंदिर:करोड़ों वर्ष पुराना है शिवलिंग

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महाबलेश्वर मंदिर स्वयं लगभग 800 वर्ष पुराना है, जबकि स्वयंभू शिव लिंग करोड़ों वर्ष पुराना माना जाता है जब सह्याद्री पर्वत शृंखला का निर्माण हुआ था. हेमदंत शैली में निर्मित यह मंदिर के हाल में भगवान शिव को समर्पित प्राचीन कलाकृतियां भी हैं, जिनमें त्रिशूल, रुद्राक्ष और डमरू शामिल हैं, जो लगभग 300 साल पुराने हैं.ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव स्वयं सावन के पवित्र महीने में इन पवित्र वस्तुओं का उपयोग करने के लिए मंदिर आते हैं.

महाबलेश्वर धाम मंदिर:स्कन्द पुराण में मिलता है वर्णन

शिव लिंग के प्रकट होने के उल्लेख पौराणिक स्कंद पुराण के सह्याद्रि खंड के पहले और दूसरे अध्याय में विस्तार से वर्णित है.

पौराणिक कथा के अनुसार, सृष्टि की रचना के दौरान भगवान ब्रह्मा मानव की रचना के लिए सह्याद्रि के जंगलों में ध्यान कर रहे थे. तभी दो राक्षस भाई, अतिबल और महाबल, इस क्षेत्र में आतंक मचा रखा था दोनो भी ऋषियों और अन्य प्राणियों को परेशान कर रहे थे.

ब्रह्म देव के कहने पर भगवान विष्णु अतिबल को मारने में कामयाब रहे, वहीं महाबल को अमरता का वरदान प्राप्त था, महाबल को इस संसार से मुक्ति दिलाने के लिए ब्रह्मा और विष्णु ने भगवान शिव और देवी आदिमाया से प्रार्थना की. महाबल के संहार किया.परिणामस्वरूप, भगवान शिव रुद्राक्ष के आकार में शिव लिंग के रूप में प्रकट हुए, और महाबल के नाम से इस क्षेत्र का नाम ‘महाबलेश्वर’ रखा गया.  

मंदिर में एक बिस्तर, त्रिशूल, डमरू और रुद्राक्ष है, माना जाता है कि भगवान शिव हर रात मंदिर में इसका इस्तेमाल करते हैं, क्योंकि हर सुबह बिस्तर बिखर जाता है.कहते है महबलेश्वर ही वह स्थान है जहां भगवान शिव ने अपने कालभैरव रूप को प्रकट किया, यही वह स्थान है जहां ब्रह्म जी के छटे सिर को भिराव ने धड़ से अलग किया.

पंचगंगा मंदिर- स्नान मात्र से दूर हो जाते है सारए कष्ठ

आस-पास के आकर्षण- महाबलेश्वर मंदिर कई पर्यटक आकर्षणों से घिरा हुआ है जिसमे पंचगंगा मंदिर, यह मंदिर पाँच नदियों – कृष्णा, वेन्ना, सावित्री, गायत्री और कोयना के संगम को दर्शाता है, इस कुंड में दो और नदियों का संगम होता है वे है भागीरथी जो 12 साल में एक बार महाकुंभ के समय यहां आकार मिलती तो वही सरस्वती नदी 60 साल में एक बार मिलती है. इसके साथ ही प्रतापगढ़ किला, वेन्ना झील प्रमुख स्थान है.

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महाबलेश्वर कैसे पहुंचें

हवाई मार्ग से पहुचने के लिए निकटतम हवाई अड्डा पुणे अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है, जो लगभग 120 किलोमीटर दूर है. हवाई अड्डे से महाबलेश्वर के लिए टैक्सी और बसें उपलब्ध हैं. निकटतम रेलवे स्टेशन वाथर है, जो लगभग 60 किलोमीटर दूर है. पुणे रेलवे स्टेशन, जो लगभग 120 किलोमीटर दूर है, बेहतर कनेक्ट है. महाबलेश्वर सड़क मार्ग से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है. पुणे, मुंबई और सतारा जैसे शहरों से बसें और टैक्सियां  उपलब्ध हैं.

वैसे तो वर्ष भर यहां भक्तों ओर सैलानियों का आना जाना लगा रहता है. साल में तीन बार आयोजित होने वाले महोत्सव सावन, महाशिवरात्रि और दशहरा पर्व में यहां की आभा दोगुनी हो जाती है

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विश्व का सबसे प्राचीन शिव मन्दिर आज भी क्यों है अधूरा, जानें कारण

महत्वपूर्ण तथ्य-

  • महालिंगम दुनिया का एकमात्र रुद्राक्ष के आकार का शिव लिंग है.
  • शिव लिंग अपने आप प्रकट हुआ और महाबलेश्वर, अतिबलेश्वर और कोटेश्वर ‘त्रिगुणात्मक लिंग’ का प्रतीक है.
  • मंदिर के केंद्रीय हाल में भगवान शिव को समर्पित प्रदर्शनियां हैं, जिनमें एक त्रिशूल, रुद्राक्ष और डमरू शामिल हैं, जो लगभग 300 साल पुराने हैं.
  • 16 वी शताब्दी में शिवाजी ने अपनी मां जीजाबाई का सोने से तुलदान भी कराया था.
  • मंदिर के प्रांगण में स्थित पंचगंगा मंदिर पाँच नदियों का संगम स्थल है.

इस वर्ष सावन के पावन महीने में स्वयंभू शिवलिंग के दर्शन करने जरूर जाए महाबलेश्वर

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