Pachmari- मध्य प्रदेश के हृदय में बसा, पचमढ़ी “सतपुड़ा की रानी” के रूप में जाना जाता है. यह मनमोहक हिल स्टेशन अपने सुरम्य झरनों, जैव विविधता, विशेष रूप से, अपनी औपनिवेशिक युग की वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है. इसके अलावा जो इस जगह को और भी खास बनाता है वो है यहां स्थित क्राइस्ट चर्च (Christ Church).
पचमढ़ी में स्थित 150 साल पुराना चर्च पूरे देश में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में अपनी खूबसूरती के लिए जाना जाता है, पत्थरों, कांच के आइनों और लकड़ियों पर करीने से की गई कलाकारी (Glass Painting) इस चर्च की खासियत है जो आज तक भी अपने असली रूप में मौजूद है, यहां पर कई फिल्मों की शूटिंग भी हो चुकी है.पचमढ़ी में आप इस चर्च का दीदार करना न भूलें.
यह चर्च एक ऐतिहासिक चर्च है जिसे ब्रिटिश अधिकारी जेम्स फ़ोर्सिथ द्वारा खोजा गया था, यह अंग्रेजों द्वारा छोड़ी गई वास्तुकला की विरासत की एक झलक भी प्रदान करता है. क्राइस्ट चर्च बीते युग के प्रतीक के रूप में खड़ा है, जो अपने कालातीत आकर्षण और ऐतिहासिक महत्व के साथ आगंतुकों को अपनी ओर आकर्षित करता है.
1882 में बना था यह चर्च-
पचमढ़ी का यह चर्च 19वीं शताब्दी के मध्य में, ब्रिटिश स्थापत्य कला का एक नायाब नमूना है. उस समय अंग्रेजों की राजधानी कलकत्ता हुआ करती थी. वहां के वास्तुविद जिन्होंने वायसराय भवन इत्यादि का निर्माण किया उन्होंने इसे डिजाइन किया था.
जेम्स फ़ोर्सिथ शिकार के लिए पचमढ़ी में आए. पचमढ़ी की सुंदरता से मंत्रमुग्ध होकर, उन्होंने अंग्रेजों के लिए गर्मियों के विश्राम स्थल के रूप में इसकी क्षमता को पहचाना. इस खोज ने पचमढ़ी के हिल स्टेशन में परिवर्तन की शुरुआत की, जिसमें अंग्रेज़ अपनी यूरोपीय एव, ब्रिटिश शैली लेकर आए और बंगले, इमारतें और चर्च बनवाए. इनमें से सबसे प्रतिष्ठित क्राइस्ट चर्च है, जो औपनिवेशिक युग के प्रमाण के रूप में खड़ा है.
क्राइस्ट चर्च: औपनिवेशिक वास्तुकला का एक प्रमाण
1882 के आसपास बना क्राइस्ट चर्च, ब्रिटिश औपनिवेशिक वास्तुकला का एक प्रमुख उदाहरण है. गोथिक शैली में डिज़ाइन की गई इसकी लाल बलुआ पत्थर की संरचना,औपनिवेशिक काल का आकर्षण बिखेरती है जो आगंतुकों को आकर्षित करती है.
चर्च के गर्भगृह को एक धारीदार गुंबद द्वारा ताज पहनाया गया है, जो इसकी वास्तुकला की भव्यता को बढ़ाता है. हालांकि, असली जादू दीवारों और वेदी को सजाने वाले बारह रंगीन कांच के शीशों में है. यूरोप से आयातित, ये शीशे मसीह की अंतिम यात्रा को दर्शाते हैं, और जब सूरज की रोशनी होकर गुजरती है, तो इन इंद्रधनुषी रंगों को देखना मन को शांति देने वाला होता है.
1947 से 1967 तक, पचमढ़ी मध्य प्रांत की ग्रीष्मकालीन राजधानी के रूप में कार्य करता था. इस अवधि में यह हिल स्टेशन चिलचिलाती गर्मी से राहत पाने वालों के लिए एक विश्राम स्थल के रूप में विकसित हुआ.अपने ऐतिहासिक आकर्षण के संरक्षण के कारण यह पूरे भारत और विदेशों से आगंतुकों को आकर्षित करता है, जिससे यह इतिहास प्रेमियों और प्रकृति प्रेमियों के लिए एक लोकप्रिय स्थान बन गया है.
पचमढ़ी सिर्फ़ एक हिल स्टेशन नहीं है; यह प्राकृतिक सुंदरता और ऐतिहासिक विरासत का खजाना है. क्राइस्ट चर्च इस क्षेत्र के औपनिवेशिक अतीत का एक शानदार उदाहरण है, जो आगंतुकों को ब्रिटिश युग की वास्तुकला की झलक प्रदान करता है.
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