यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल UNESCO World Heritage site in Madhya Pradesh के रूप में नामित यह प्रतिष्ठित स्मारक सांची, भोपाल से लगभग 45 किलोमीटर की दूरी पर रायसेन जिले में स्थित है. विंध्य की पहाड़ियों पर स्थित एक ऐतिहासिक विरासत जिसका संबंध सम्राट अशोक एवं गौतम बुद्ध से है. यह दुनिया की सबसे खूबसूरत और संरक्षित बौद्ध साइट है. इस अनमोल विरासत को देखने यहां न सिर्फ देश भर से बल्कि विदेशों से भी लोग आते हैं.
सांची को भारत के सबसे पुराने स्टोन स्ट्रक्चर में से एक माना गया है. यह प्राचीन भारतीय कला का बेजोड़ नमूना है.इसे सम्राट अशोक ने तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में खुद अपनी देखरेख में बनवाया था.अशोक की पत्नी देवी यही सांची में एक अमीर व्यापारी की पुत्री थी. यही उन दोनों का विवाह भी हुआ था.शायद इसी कारण से भगवान बुद्ध की अस्थियों पर स्तूप बनवाने के लिए सांची को चुना गया.
तृतीय शताब्दी ईसा पूर्व से 12वीं शताब्दी ईस्वी तक लगातार जारी रहा निर्माण कार्य
सांची को प्राचीन काल में काकानाया, काकानाडाबोटा तथा बोटाश्री पर्वत के नाम से भी जाना जाता था.
यहां स्थित स्मारकों का निर्माण तृतीय शताब्दी ईसा पूर्व से 12वीं शताब्दी ईस्वी तक लगातार जारी रहा. सांची के पुराने स्मारकों के निर्माण का श्रेय मौर्य सम्राट अशोक को जाता है जिन्होंने अपनी विदिशा निवासी रानी की इच्छा अनुसार सांची की पहाड़ी पर स्तूप विहार एवं एकाश्म स्तंभ का निर्माण कराया था.
शूंग काल में सांची एवं उसके निकटवर्ती स्थान पर अनेक स्मारकों का निर्माण हुआ था. इसी काल में अशोक के ईट निर्मित स्तूप पर पत्थर लगवाए गए ताकि गौतम बुद्ध की अस्थियों को और अधिक सुरक्षित रखा जा सके. इससे स्तूप के आकार में भी वृद्धि हुई. स्तूप के चारों ओर शगुन वेदिका बनाने के लिए व्यापारियों ने सहयोग किया था.
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यहाँ स्थित है प्रसिद्ध चार-सिंहों वाला अशोक स्तंभ
सांची स्तूप की सबसे खास विशेषताओं में से एक अशोक स्तंभ है, जो सम्राट अशोक के बौद्ध धर्म अपनाने का प्रतीक है. प्रसिद्ध चार-सिंहों वाला यह स्तंभ बौद्ध शिक्षाओं के प्रसार के लिए सम्राट के समर्पण का प्रतीक है. स्तंभ पर शिलालेख मौर्य युग के सामाजिक-राजनीतिक और धार्मिक परिवेश के बारे में बहुमूल्य जानकारी प्रदान करते हैं.
जातक कथाओं का मिलता है उल्लेख
सांची के स्तूप अपनी प्रवेश द्वारा के लिए उल्लेखनीय है इनमें से बुद्ध के जीवन से ली गई घटनाओं और उनके पिछले जन्म की बातों का सजावटी चित्रण है.जातक कथाओं में इन्हें बोधीसत्व के नाम से वर्णित किया गया है. यहां गौतम बुद्ध को संकेतों द्वारा निरूपित किया गया है. जैसे की पहिया जो कि उनकी शिक्षाओं को दर्शाता है. स्तूप दो और तीन तथा मंदिर का निर्माण शुंग काल में हुआ था.बौद्ध विहार अशोक स्तम्भ, महापात्र, गुप्तकालीन मंदिर, तथा संग्रहालय यहां के अन्य दर्शनीय स्थल है.
मौर्य साम्राज्य, बौद्ध दर्शन और सदियों की भक्ति की कहानियाँ
सांची स्तूप केवल एक स्मारक नहीं है; यह पत्थरों पर उकेरी गई एक कहानी है, जो मौर्य साम्राज्य, बौद्ध दर्शन और सदियों की भक्ति की कहानियाँ बताती है.जब आप इसके विशाल प्रवेश द्वारों से गुजरते हैं और भव्य गुंबद की परिक्रमा करते हैं, तो आप उस युग में वापस चले जाते हैं जहाँ कला, धर्म और शिल्प कौशल सामंजस्य के साथ फलते-फूलते थे.
सांची स्तूप न केवल ऐतिहासिक महत्व का स्मारक है, बल्कि एक खूबसूरत जगह भी है जो आधुनिक जीवन की भागदौड़ से दूर एक शांत जगह है. इसका कालातीत आकर्षण और गहरा महत्व इसे सभी क्षेत्रों के यात्रियों के लिए एक सच्चा रत्न बनाता है.
मुख्य आकर्षण सम्राट अशोक द्वारा तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में निर्मित महान स्तूप है, जिसमें जटिल नक्काशी और मूर्तियां प्रदर्शित की गई हैं. अन्य उल्लेखनीय स्थलों में स्तूप संख्या 2 और 3, अशोक स्तंभ और पास के उदयगिरि गुफाएँ और भोजपुर मंदिर शामिल हैं.
आगंतुक यहां बुद्ध जम्बूद्वीप पार्क, बौद्ध विहार, पुरातत्व संग्रहालय का पता लगा सकते हैं और स्तूपों पर Sound & lightening show का आनंद ले सकते हैं। आस-पास के शहर विदिशा, ग्यारसपुर और उदयगिरि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक अनुभव प्रदान करते हैं
सांची में अक्टूबर से मार्च के बीच मौसम सुहाना होता है, नवंबर में चेतियागिरी विहार उत्सव यहाँ का मुख्य आकर्षण होता है. भोपाल के रास्ते हवाई मार्ग से या रेल और सड़क मार्ग से आसानी से पहुँचा जा सकता है, सांची इतिहास, वास्तुकला और प्रकृति का एक आदर्श मिश्रण है. मध्यप्रदेश पर्यटन के विषय में अधिक जानकारी के लिए आप MP Tourism की Official Website को Visit कर सकते हैं.