Sawan 2024: छत्तीसगढ़ का काशी-खरौद के लक्ष्मणेश्वर शिव मंदिर का क्या है रहस्य
जानें 'छत्तीसगढ़ का काशी' कहलाने वाले खरौद के लक्ष्मणेश्वर शिव मंदिर के रहस्यों को. सावन के पवित्र महीने में इस प्राचीन मंदिर के दर्शन करें
Chhattisgarh Tourism:छत्तीसगढ़ के मध्य में जांजगिर चापा जिला में स्थित खरौद के लक्ष्मणेश्वर मंदिर (Lakshmaneswar Temple), जिसे “छत्तीसगढ़ का काशी”(Chhattisgarh ka Kashi) भी कहा जाता है, इस क्षेत्र की समृद्ध सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत का एक कालातीत प्रमाण है. सावन(Sawan 2024) के पवित्र महीने के शुरू होते ही, भक्त और यात्री इस प्राचीन मंदिर में उमड़ पड़ते हैं.
आइए जानते है कि आखिरकार क्यूं कहते है खरोद के लक्ष्मणेश्वर मंदिर(Lakshmaneswar Temple) को “छत्तीसगढ़ की काशी”. क्या सच में जुड़ा है इस मंदिर में पाताल का रास्ता?
भगवान शिव को समर्पित है- लक्ष्मणेश्वर मंदिर
माना जाता है कि लक्ष्मणेश्वर मंदिर 7वीं शताब्दी का है, जिसे पांडुवंशी राजवंश के युग का माना जाता है. इस मंदिर का नाम भगवान राम के भाई लक्ष्मण के नाम पर रखा गया है, स्थानीय किंवदंतियों के अनुसार, लक्ष्मण ने इस स्थल पर एक शिवलिंग की स्थापना की थी जिस कारण एस मानिर का नाम लक्ष्मणेश्वर शिव मंदिर पड़ा. सावन के पवित्र महीने में दूर दराज से भगवान शिव का आशीर्वाद लेने यहां आते है. राक्षस खरदूषण के निवास स्थान होने के कारण इस स्थान का नाम खरोद पढ़ा,
लक्षलिंग रूप में विद्यमान है शिवलिंग
मंदिर के गर्भ गृह में स्थित शिवलिंग में एक लाख छिद्र है. लोगों का ऐसा विश्वास है कि इसमें से किसी एक छिद्र का रास्ता पाताल में जाता है, और एक और चमत्कारी बात यह है कि इसमें से एक छिद्र में हमेशा जल भरा रहता है जिसे भक्तजन अक्षय कुंड कहते है.
मंदिर की वास्तुकला प्राचीन शिल्प कौशल का एक चमत्कार है, जिसमें जटिल नक्काशी और मूर्तियां बनी हुई हैं जो विभिन्न देवताओं, पौराणिक दृश्यों और पुष्प रूपांकनों को दर्शाती हैं. गर्भगृह में एक प्राचीन प्रतिष्ठित शिव लिंग है, जो दिव्य ऊर्जा और ब्रह्मांडीय सृजन का प्रतीक है.सदियों से, मंदिर में कई जीर्णोद्धार और जीर्णोद्धार हुए हैं.
लक्ष्मणेश्वर मंदिर में स्थित है महाभारत काल का अत्यंत प्राचीन स्वयंभू शिवलिंग
लक्ष्मणेश्वर मंदिर न केवल ऐतिहासिक महत्व का स्थल है, बल्कि रहस्य और आध्यात्मिक कहानियों से भी घिरा हुआ है. मंदिर के सबसे आकर्षक पहलुओं में से एक इसके शिवलिंग से जुड़ी किंवदंती है. ऐसा माना जाता है कि शिवलिंग स्वाभाविक रूप से जमीन से उभरा है, एक ऐसी घटना जिसने भक्तों और इतिहासकारों दोनों को ही हैरान कर दिया है.
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यह “स्वयंभू” (स्वयं प्रकट) शिवलिंग दिव्य ऊर्जा का एक शक्तिशाली स्रोत माना जाता है, जो आध्यात्मिक शांति और आशीर्वाद चाहने वाले तीर्थयात्रियों को आकर्षित करता है. मंदिर का एक और आकर्षक पहलू भगवान शिव की एक अनोखी मूर्ति की उपस्थिति है.
सावन में उमड़ पड़ती है श्रद्धालुओं की भीड़
भगवान शिव को समर्पित सावन का महीना लक्ष्मणेश्वर मंदिर में दर्शन करने के लिए विशेष रूप से शुभ समय है. इस अवधि के दौरान, मंदिर में चहल-पहल रहती है क्योंकि भक्त विभिन्न अनुष्ठानों में शामिल होते हैं, जिसमें अभिषेक, भजनों का जाप और प्रार्थना शामिल है. मंदिर परिसर घंटियों और शंखों की आवाज से गूंजता है, जिससे आध्यात्मिक उत्साह और भक्ति का माहौल बनता है.
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