Sawan 2024: भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है ओंकारेश्वर, सावन में भक्तों का लगता है मेला
भगवान शिव को समर्पित द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक ज्योतिर्लिंग मध्यप्रदेश के खंडवा जिला के नर्मदा तट पर स्थित है. ओम की आकृति वाले इस स्थान पर सावन में लाखों श्रद्धालुओं की कतार लगी होती है.
Sawan 2024: मध्य प्रदेश के हृदय में बसा, ओंकारेश्वर(Omkareshwar) का पवित्र द्वीप आध्यात्मिकता और प्रकृति के दिव्य संगम का एक प्रमाण है. पवित्र हिंदू प्रतीक ‘ओम'(Ohm) की तरह अनोखे आकार वाला यह शांत द्वीप न केवल एक भौगोलिक आश्चर्य है, बल्कि हर साल आने वाले अनगिनत तीर्थयात्रियों के लिए एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक गंतव्य भी है.
खंडवा जिला में मध्यप्रदेश और गुजरात राज्य की जीवनरेखा कहलाने वाली नर्मदा नदी के तट पर स्थित ओंकारेश्वर (Omkareshwar Jyotirlinga) प्रसिद्ध 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है. ‘ओम’ की आकृति वाला यह द्वीप प्राचीनकाल से भगवान शिव के तीर्थ के रूप में मान्य है.
ओंकारेश्वर में प्रतिष्ठित ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग(Omkareshwar Jyotirlinga) है, जो पवित्र नर्मदा नदी के तट पर स्थित एकमात्र ज्योतिर्लिंग है. इस स्थान पर नदी का मार्ग संस्कृत के ‘ओम’ शब्द से मिलता-जुलता है, जो प्राचीन भारतीय शास्त्रों में वर्णित द्वीप को अपना नाम देता है. ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग, जिसे ‘ओंकार मंधाता’ के नाम से जाना जाता है, पूरे देश से यह शिव भक्तों को अपनी ओर आकर्षित करता है, जो आशीर्वाद और आध्यात्मिक शांति की तलाश में यहां आते हैं. ओंकारेश्वर में सबसे आकर्षक स्थलों में से एक संगम है, जहां नर्मदा नदी कावेरी से मिलती है.
ममलेश्वर और अमलेश्वर के दर्शन से होता है तीर्थ पूरा
ओंकारेश्वर की एक अनूठी विशेषता नर्मदा नदी के दोनों किनारों पर दो महत्वपूर्ण शिव लिंगों की उपस्थिति है. दक्षिणी तट पर ममलेश्वर मंदिर(Mamleshwar) है, जिसे अमलेश्वर(Amleshwar) के नाम से भी जाना जाता है, जिसे ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग जितना ही पवित्र माना जाता है.
तीर्थयात्रियों का मानना है कि तीर्थयात्रा को पूरा करने और भगवान शिव का पूर्ण आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए दोनों मंदिरों के दर्शन आवश्यक है. नर्मदा के बाएं किनारे पर स्थित प्राचीन ममलेश्वर मंदिर में 1063 ई. के पवित्र शिलालेख हैं. महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने इसका संरक्षण किया था. यह अब भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) का संरक्षित स्मारक है.
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प्रचलित लोक-कथायें
ऐसा माना जाता है कि भयंकर सूखे के दौरान लोगों ने भगवान शिव से बारिश के लिए प्रार्थना की थी. वे ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए और भूमि को प्रचुर जल से आशीर्वाद दिया. पवित्र द्वीप का आकार, ‘ओम’ प्रतीक जैसा है, जो शिव की दिव्य उपस्थिति को दर्शाता है.
भगवान शिव और मां पार्वती यहां खेलते है चौसर
पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव और देवी पार्वती ओंकारेश्वर में विश्राम करते हैं, जिससे ज्योतिर्लिंग के मुख्य मंदिर में शयन आरती (रात 9 बजे से) एक महत्वपूर्ण आकर्षण बन जाती है. रात में होने वाले इस अनुष्ठान में सबसे अधिक संख्या में शिवभक्त यहां आते हैं. भक्तों की आस्था से जुड़ी एक कहानी सामने आती है कि यहां भगवान शिव और मां पार्वती यहां चौसर खेलते है, इसीलिए मंदिर में संध्या कालीन आरती के बाद चौसर का खेल बिछाया जाता है लोगो का यह कहना है सुबह मंदिर के कपात खुलने पर ये चौसर बिखरे नजर आते है.
मंदिर में एक विशाल पंचमुखी गणेश मंदिर भी है, जो अगस्त-सितंबर में गणेश चतुर्थी उत्सव के दौरान विशेष उत्सव का केंद्र बन जाता है.
इस द्वीप के आध्यात्मिक आकर्षण में राजसी गौरी सोमनाथ मंदिर(Gauri Somnath Temple) भी शामिल है. मोरनी के आकार की यह तीन मंजिला संरचना वास्तुकला की सरलता और भक्ति का प्रतीक है. शहर में महाकालेश्वर, आशापुरी, सिद्धनाथ, खेड़ापति हनुमान, ऋणमुक्तेश्वर, काशी विश्वनाथ और केदारेश्वर मंदिर सहित अन्य महत्वपूर्ण मंदिर हैं, जिनमें से प्रत्येक की अपनी अनूठी कहानी और दिव्य उपस्थिति है.
ओंकारेश्वर की प्राकृतिक सुंदरता को बढ़ाने वाला शांत नदी नर्मदा पर बना 270 फीट ऊंचा लटकता हुआ पुल है. यह कैंटिलीवर पुल न केवल मनोरम दृश्य प्रस्तुत करता है, बल्कि तीर्थयात्रियों को द्वीप पर विभिन्न आध्यात्मिक स्थलों से भी जोड़ता है. इस पुल पर से गुजरना जितना आध्यात्मिक है, उतना ही देखने में भी आनंददायक है.
ओंकारेश्वर में गोविंदेश्वर गुफाएं भी हैं, जहां माना जाता है कि महान आदि शंकराचार्य को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी, उन्होंने इस पवित्र शहर में नर्मदा के तट पर अपनी कई रचनाएं रची थीं. एक अन्य उल्लेखनीय स्थल गुरुद्वारा ओंकारेश्वर साहिब है, जो गुरु नानक की इस पवित्र शहर की यात्रा की याद दिलाता है. ये स्थल ओंकारेश्वर की समृद्ध आध्यात्मिक विरासत की झलक दिखाते हैं.
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