Brihadeshwar Temple: आखिर 1000 साल पुराना बृहदेश्वर मंदिर कैसे खड़ा है बिना नीव के?
यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में बृहदेश्वर मंदिर, यह विस्मय और श्रद्धा को प्रेरित करता है, जो दुनिया भर से आगंतुकों को एक बीते युग की भव्यता को देखने के लिए आकर्षित करता है.
Brihadeshwar Temple, Tamil Nadu: भारत में ऐसे कई मंदिर जो भक्तों की आस्था के साथ जुड़े होने के साथ ही अपनी भव्य विशालकाय इमारतों के लिए ख्याति प्राप्त है. एक ऐसा ही आश्चर्य का केंद्र है तमिलनाडु के तंजौर में स्थित बृहदेश्वर मंदिर जो कि लगभग 1000 साल पुराना मंदिर है. मंदिर की वास्तुकला यहां आने वाले दर्शकों को आश्चर्य से भर देती है.
बृहदेश्वर मंदिर (Brihadeshwar Temple), जिसे पेरुवुदैयार कोविल (Peruvudaiyar Kovil) के नाम से भी जाना जाता है, भारत के तमिलनाडु के तंजावुर में स्थित एक भव्य हिंदू मंदिर है. भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर चोल वंश की भव्यता और स्थापत्य कला का प्रमाण है.यह दक्षिण भारत के सबसे बड़े मंदिरों में से एक है और द्रविड़ वास्तुकला का एक खूबसूरत उदाहरण भी है. यह मंदिर, यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थल में शामिल है है, जो तमिल संस्कृति और कला का प्रतीक है.
गर्भगृह में स्थित है विशालकाय शिवलिंग
बृहदेश्वर मंदिर में लगभग एक हजार साल पुराना 12 फीट ऊंचा शिवलिंग स्थापित है जिसका वजन 20 टन है. साथ ही में भगवान कार्तिकेय, मां पार्वती और नंदी की विशालकाय प्रतिमा की पूजा की जाती है. मंदिर में स्थापित नंदी की विशालकाय प्रतिमा एक ही पत्थर को तराशकर 20,000 किलो वजनी नंदी की विशाल प्रतिमा का निर्माण कराया गया था यह कार्य 16 वी शताब्दी के नायक राजाओ ने करवाया था.
चोल वंश के राजा ने कराया था निर्माण
बृहदेश्वर मंदिर का निर्माण चोल वंश के सबसे तेजस्वी शासकों में से एक राजराज चोल प्रथम ने 1003 और 1010 ई. के बीच करवाया था.केवल सात साल के अल्प समय में ग्रेनाइट से बनी इस भव्य इमारत को आकार दे चोल राजाओं की एक बड़ी उपलब्धि है.
मंदिर के निर्माण ने चोल वास्तुकला के चरम को चिह्नित किया, जो साम्राज्य की शक्ति और वैभव को दर्शाता है, राजा चोल प्रथम ने मंदिर को भगवान शिव को समर्पित किया, जो उनकी भक्ति और श्रद्धा का प्रतीक है. मंदिर का मूल नाम राजराजेश्वरम है, जो इसके निर्माण में राजा के योगदान को दर्शाता है.
एक प्रमुख शिव मंदिर के रूप में, यह पूरे भारत और दुनिया भर से भक्तों को आकर्षित करता है. मंदिर का मुख्य देवता, एक विशाल शिवलिंग, भारत में सबसे बड़े शिवलिंगों में से एक है. मंदिर परिसर में विभिन्न देवताओं को समर्पित कई मंदिर भी हैं, जो इसे शैव धर्म के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र बनाते हैं.
मंदिर अपनी स्थापत्य प्रतिभा के लिए विश्व प्रसिद्ध है. मंदिर का शिखर 66 मीटर ऊंचा है जिस पर एक स्वर्णकलश भी स्थापित है. 13 मंजिला मंदिर की संपूर्ण संरचना ग्रेनाइट से बनी है, जो उस युग की सीमित तकनीक को देखते हुए एक असाधारण उपलब्धि है. मंदिर के निर्माण में करीब 1 लाख 30 हजार टन ग्रेनाइट के पत्थरों को इस्तेमाल में किया गया.
जटिल नक्काशी और मूर्तियां विभिन्न पौराणिक कहानियों और देवताओं को दर्शाती हैं, जो कारीगरों के असाधारण कौशल को दर्शाती हैं.
रोचक तथ्य
- मंदिर का शिखर(विमान) न केवल दुनिया के सबसे ऊंचे विमानों में से एक है, बल्कि इसके ऊपर लगभग 80 टन वजनी एक विशाल अखंड गुंबद भी है. ऐसा माना जाता है कि इस गुंबद को इतनी ऊंचाई पर रखने के लिए एक विशेष झुकाव वाला पुल बनाया गया था.
- ग्रेनाइट खदानों से रहित क्षेत्र में स्थित होने के बावजूद, पूरा मंदिर ग्रेनाइट ब्लॉकों से बना है. इस कार्य में लगभग 3 हजार हाथियों और सैकड़ों बैलों की मदद ले गई थी. इतिहासकारों का अनुमान है कि ग्रेनाइट को नदियों और नहरों के माध्यम से दूर की खदानों से लाया जाता था.
- बृहदेश्वर मंदिर की दीवारें उत्तम भित्तिचित्रों और शिलालेखों से सजी हैं. ये भित्तिचित्र चोल काल के दौरान दैनिक जीवन, शाही समारोहों और धार्मिक अनुष्ठानों, भरतनाट्यम के विभिन्न पहलुओं को दर्शाते हैं.
- शिलालेख चोल राजवंश, उनके प्रशासन और उनकी विजयों के बारे में मूल्यवान ऐतिहासिक डेटा प्रदान करते हैं.
- जीवित मंदिर- कई प्राचीन स्मारकों के विपरीत, बृहदेश्वर मंदिर एक ‘जीवित मंदिर'(Living Temple of Chola Dynasty) बना हुआ है, जहां पर पिछले 1000 सालों से दैनिक अनुष्ठान और पूजा की जाती है. मंदिर ने सदियों से अपने धार्मिक महत्व को संरक्षित रखा है, जो पूजा का एक जीवंत स्थान बना हुआ है.
- मंदिर का डिजाइन का एक आश्चर्य है कि इस मंदिर की परछाई वर्ष के किसी भी भाग में दोपहर के समय जमीन पर कभी भी नहीं डालता है. डिजाइन की इस उल्लेखनीय उपलब्धि ने कई पीढ़ियों से वास्तुकारों और इतिहासकारों को आकर्षित किया है.
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