Northeast India: कुदरत व अध्यात्म का अनोखा संगम है अरुणाचल प्रदेश का तवांग, घूमने जरूर जाना चाहेंगे आप

प्रकृति ने अपने देश को हर तरह से संवारा है. कहीं मखमली हरियाली है, तो कहीं निर्जन रेगिस्तान, कहीं दूर तक फैली पर्वत श्रृंखलाएं और उस पर बिछी बर्फ की चादर है, तो कहीं महासागर की ऊंची-ऊंची लहरें अपना स्नेह बरसा रहा है. चलिए करते हैं नॉर्थ ईस्ट इंडिया के तवांग की सैर.

By Vivekanand Singh | May 3, 2024 9:08 PM

Northeast India: तवांग भारत के नॉर्थ ईस्ट स्टेट अरुणाचल प्रदेश के पश्चिमोत्तर हिस्से में प्रकृति और अध्यात्म का एक अनोखा उपहार है. यह समुद्र तल से लगभग 3500 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. भूटान और चीन इसके सीमावर्ती देश हैं. यहां ज्यादातर सर्दी का मौसम रहता है और बर्फबारी होती रहती है. तवांग की मुख्य नदी का नाम तवांग चू है.

शानदार हैं यहां के बौद्ध मठ

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‘धरती का छिपा स्वर्ग’ के नाम से प्रसिद्ध तवांग शहर अपने शानदार बौद्ध मठ के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है. तिब्बत की राजधानी ल्हासा के ‘पोटाला महल’ के बाद यह एशिया का दूसर बड़ा मठ है. इसे वर्ष 1680 में मिराक लामा ‘लोड्रे म्यामत्सो’ ने बनवाया था. इस मठ में गौतम बुद्ध की 7 मीटर ऊंची स्वर्ण प्रतिमा है, वहीं इसके परिसर में 65 भवन हैं, जहां 570 से भी ज्यादा बौद्ध भिक्षु रहते हैं. यह मठ पांडुलिपियों, पुस्तकों और कलाकृतियों के अद्भुत संग्रह के लिए भी जाना जाता है. ऊंचाई पर स्थित होने के कारण पूरी तवांग घाटी का नजारा यहां से देखा जा सकता है. साथ ही तवांग शहर से इस मठ की सुंदरता निहारी जा सकती है. रात की रोशनी में तो इस मठ की खूबसूरती में चार चांद लग जाते हैं.

क्या है तवांग का शाब्दिक अर्थ

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तवांग में ‘ता’ का अर्थ होता है घोड़ा और ‘वांग’ का अर्थ होता है चुनना. तवांग शब्द अपने आप एक रोचक कहानी समेटे हुए है. पौराणिक मान्यता है कि मिराक लामा ‘लोड्रे म्यामत्सो’ को मठ बनाने के लिए एक पवित्र स्थान की तलाश थी. इसके लिए एक गुफा में अपनी आंखें बंद करके वे दिव्य शक्ति से प्रार्थना करने लगे. जब उनकी प्रार्थना समाप्त हुई और वे बाहर आये तो देखा कि उनका प्यारा घोडा वहां से गायब है. वह घोड़े को ढूंढ़ते-ढूंढ़ते पहाड़ की एक चोटी पर पहुंच गये, जहां उनका घोड़ा रुककर उनका इंतजार कर रहा था. दिव्य शक्ति का इशारा समझ कर लामा ने उस स्थान पर मठ का निर्माण करवाया. तवांग मठ के अलावा अरगलिंग मठ, रिग्यलिंग मठ, टाइगर्स डेन मठ भी देखने योग्य है.

100 से ज्यादा झील हैं यहां

यहां छोटी-बड़ी लगभग 100 से भी ज्यादा झीलें हैं, जिसमें पंगांग-तेंग-सू और संगत्सर लेक (माधुरी लेक) ज्यादा लोकप्रिय है. रास्ते में खिले ऑर्किड के फूल यात्रा को और मनोहारी बना देते हैं. आसपास नूरानांग फॉल्स, सेला दर्रा, बुमला दर्रा तथा कई पर्वत शिखर हैं, जिन्हें देखा जा सकता है.

मोनपा कबीले का शहर

तवांग में मंगोल प्रजाति के ‘मोनपा’ कबीले निवास करते हैं, जो मुख्यत बौद्ध धर्म को मानते हैं. इनका पहनावा रंगीन और आकर्षक होता है. स्त्रियां तिब्बती स्टाइल के गाउन पहनती हैं, जिसे ‘चुपा’ तथा पुरुष तिब्बती स्टाइल के शर्ट पहनते हैं, जिसे ‘तोहथुंग’ कहा जाता है. ऊपर से पारंपरिक स्टाइल का कोट पहनते हैं, उसे खंजर कहते हैं. सिर पर याक के बालों से बनी एक खास तरह की टोपी होती है, जिसे स्थानीय भाषा में ‘गामा शोम’ कहा जाता है. मोनपा पत्थर और बांस के बने मकान में रहते हैं. इनकी जीविका का प्रमुख साधन कृषि व पशुपालन है. ये याक, गाय, खच्चर, भेड़ आदि पशुओं को पालते हैं.

तवांग के प्रमुख त्योहार

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प्रकृति प्रेमी तवांग निवासी नए साल पर ‘लोसर’ त्योहार मनाते हैं, जिसमें पर्यटक याक नृत्य और अजी लम्हों नृत्य का मज़ा ले सकते हैं. यहां का दूसरा प्रमुख त्योहार ‘तोरग्या’ है, जो दुष्ट आत्माओं और प्राकृतिक आपदाओं को दूर भगाने के लिए मनाया जाता है. अक्तूबर महीने में पर्यटन मंत्रालय और अरुणाचल सरकार द्वारा ‘तवांग महोत्सव’ का आयोजन किया जाता है. संगीत और नृत्य से यहां के लोगों का खासा लगाव होता है. पोनू, योक्सी और बांसुरी इनके प्रमुख वाद्ययंत्र हैं.

क्या है नामग्याल चोरटेन

तवांग के दर्शनीय स्थल में से एक प्रमुख स्थल है ‘तवांग वॉर मेमोरियल’ है. इसे स्थानीय भाषा में ‘नामग्याल चोरटेन’ कहा जाता है. 40 फुट ऊंचे इस मेमोरियल को भारतीय सेना ने 1962 में भारत-चीन युद्ध में शहीद हुए 2420 सैनिकों की याद में वर्ष 1999 में बनवाया है. यहां हर शाम को भारतीय सैनिकों के शौर्य गाथा लाइट-एंड-साउंड कार्यक्रम के तहत दिखाया जाता है.

भूत-झोलकिया मिर्ची और बटर टी

आपने शायद ही कभी बटर टी पी होगी. बटर टी याक के दूध और मक्खन से बनी नमकीन चाय होती है. यहां यह चाय खूब मिलती है. भूत झोलकिया मिर्ची को किंग चिली भी कहते हैं, जो आम मिर्ची से 400 गुना ज्यादा तीखी होती है. इसका शुमार दुनिया की सबसे तीखी मिर्च के रूप में होता है. यह मिर्च यहां के लगभग हर व्यंजन में मौजूद रहती है.

तवांग को लेकर अन्य जरूरी बातें

  • यहां की यात्रा के लिए जून से अक्तूबर तक का समय सबसे उपयुक्त होता है.
  • अरुणाचल प्रदेश जाने के लिए इनरलाइन परमिट लेना आवश्यक होता है. अपनी जरूरी जानकारी देकर इसे दिल्ली, कोलकाता, गुवाहाटी या अरुणाचल हाउस से प्राप्त किया जा सकता है.
  • असम (गुवाहाटी) से सड़क के रास्ते भी तवांग जाया जा सकता है. देश के सभी बड़े शहरों से ट्रेन या हवाई मार्ग गुवाहाटी से जुड़ा हुआ है.

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