West Bengal Tourism:तारकनाथ मंदिर के दर्शन से भक्तों को होती है मोक्ष की प्राप्ति
भगवान शिव को समर्पित भगवान तारकनाथ का यह मंदिर लाखों श्रद्धालू भक्तों की आस्था का केंद्र है यहां देश भर से भक्त अपनी अर्जी लगाने आते है खासकर सावन और शिवरात्रि के समय
West Bengal Tourism: हुगली शहर के तारकेश्वर(Tarakeswar) में स्थित, तारकनाथ मंदिर(Taraknath Temple)भक्ति और आध्यात्मिकता का प्रतीक है, जो हर साल अनगिनत तीर्थयात्रियों और पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है. भगवान शिव को समर्पित यह प्राचीन मंदिर भारत की समृद्ध सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत का प्रमाण है, जो किंवदंतियों और लोककथाओं से भरा हुआ है.
पश्चिम बंगाल(West Bengal) में सबसे प्रतिष्ठित शिव मंदिरों में से एक तारकनाथ मंदिर, कोलकाता से लगभग 58 किलोमीटर दूर स्थित है. मंदिर की वास्तुकला, जो अपनी विशिष्ट बंगाली शैली की विशेषता रखती है, में एक गर्भगृह (गर्भगृह) है जिसमें देवता की मूर्ति है, और एक विशाल प्रांगण है.
राजा भारमल्ला ने करवाया था पुन: निर्माण
तारकनाथ मंदिर की उत्पत्ति 18वीं शताब्दी की शुरुआत में हुई थी. माना जाता है कि इसका निर्माण स्थानीय राजा भारमल्ला ने 1729 के आसपास करवाया था. बंगाल में शैव धर्म के प्रसार के साथ इसके जुड़ाव के कारण मंदिर का ऐतिहासिक महत्व और भी बढ़ जाता है. सदियों से, यह न केवल एक धार्मिक केंद्र के रूप में बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक गतिविधियों के केंद्र के रूप में भी काम करता रहा है, जिससे स्थानीय लोगों में सामुदायिक भावना को बढ़ावा मिला है.
तारकेश्वर में गिरी थी सती की तीसरी आंख
तारकनाथ मंदिर का पौराणिक महत्व हिंदू किंवदंतियों में गहराई से निहित है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, मंदिर ‘शक्ति पीठों’ की किंवदंती से जुड़ा हुआ है.
ऐसा माना जाता है कि मंदिर उस स्थान पर बना है जहां सती की तीसरी आंख गिरी थी. एक अन्य लोकप्रिय किंवदंती विष्णु के चक्र की कहानी बताती है, जो इस स्थान पर गिरा था, जिससे पवित्र शिव लिंगम प्रकट हुआ. मंदिर के मुख्य देवता, भगवान तारकनाथ को शिव के अवतार के रूप में पूजा जाता है, जो भक्तों की रक्षा करते हैं.
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तारकनाथ मंदिर से जुड़े रोचक तथ्य
- मुख्य देवता, भगवान तारकनाथ, को एक शिव लिंगम द्वारा दर्शाया जाता है, जिसे स्वयंभू कहा जाता है.
- तारकनाथ मंदिर में भगवान शिव की पूजा के लिए सोमवार को अत्यधिक शुभ माना जाता है, जहां हजारों भक्त आते हैं, खासकर श्रावण (Sawan) के महीने में.
- यह मंदिर चैत्र संक्रांति के दौरान भव्य समारोहों का केंद्र बिंदु है, जो बंगाली नव वर्ष को उत्साह और भक्ति के साथ मनाता है.
- तीर्थयात्री पारंपरिक रूप से मंदिर में प्रवेश करने से पहले पवित्र दुधपुकुर तालाब में डुबकी लगाते हैं, उनका मानना है कि इससे वे शुद्ध होते हैं और उनके पाप धुल जाते हैं.
- मंदिर का तांत्रिक प्रथाओं से ऐतिहासिक संबंध है, विशेष अवसरों पर तांत्रिक पुजारियों द्वारा कई अनुष्ठान किए जाते हैं.
- चैत्र संक्रांति के अलावा, महा शिवरात्रि, अरण्य षष्ठी और मकर संक्रांति जैसे अन्य त्यौहार भी बड़े उत्साह के साथ मनाए जाते हैं.
- मंदिर परिसर में अन्य देवताओं को समर्पित कई छोटे मंदिर हैं, जो बंगाल की विविध सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत को दर्शाते हैं.
- मंदिर की वास्तुकला पारंपरिक बंगाल शैली का मिश्रण है जिसमें मध्ययुगीन हिंदू मंदिर डिजाइनों का प्रभाव है, जिसमें विस्तृत नक्काशी और विस्तृत मूर्तियां हैं.
कैसे पहुंचे तारकनाथ मंदिर
तारकनाथ मंदिर तक पहुंचना काफी सुविधाजनक है, नियमित ट्रेनें और बसें तारकेश्वर(West Bengal) को कोलकाता और पश्चिम बंगाल(West Bengal) के अन्य प्रमुख शहरों से जोड़ती हैं. निकटतम रेलवे स्टेशन, तारकेश्वर, मंदिर से थोड़ी ही पैदल दूरी पर है. मंदिर रोजाना सुबह से देर शाम तक खुला रहता है, जिसमें सुबह और शाम को मुख्य आरती की जाती है. आगंतुकों को सलाह दी जाती है कि वे शालीन कपड़े पहनें और मंदिर की पवित्रता का सम्मान करें.
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