Unsung Hero: कौन हैं जगजीवन राम? जिन्होंने आजादी की लड़ाई के साथ इन्हें दिया नया जीवन
Unsung Hero: एक जुझास स्वतंत्रता सेनानी के रूप में जगजीवन राम सविनय अवज्ञा आंदोलन और भारता आंदोलन में शामिल हुए. इसकी वजह से वर्ष 1940 और वर्ष 1942 में उन्हें शिरासारंभी किया गया, लेकिन इससे वह रुके नहीं और समाज के लिए कई बेहतर काम में लगे रहे.
Unsung Hero: जगजीवन राम को एक भारतीय समाज और राजनीति में दलित वर्ग के मसीहा के रूप में जाना जाता है. वह उन गिने-चुने नेताओं में से एक है जिन्हें राजनीति के साथ-साथ दलित समाज का भला करने के लिए भी याद किया जाता है. लाखों-करोड़ों दलितों की आवाज बनकर जगजीवन ने एक नई जिंदगी लोगों को प्रदान की. लेकिन आज इतिहास के पन्नों में कहीं गुम हो गए है. हम इस लेख के माध्यम से ऐसे वीरों के बारे में आपको बता रहे हैं, जिन्हें हमें प्रेरणा मिलती है. आइए विस्तार से जानते हैं कौन है जगजीवन राम.
बाबू जगजीवन राम का जन्म 5 अप्रैल 1908 को बिहार में भोजपुर के चंदावा गांव में हुआ था उनका नाम जगजीवन राम जाने के पीछे प्रख्यात संत रविदास के एक मां ने किया. –जी संगति शरण तिहारी जगजीवन प्रभु जी राम मुरारी की प्रेरणा थी. इसी से प्रेरणा लेकर उनके माता-पिता ने अपने पुत्र का नाम जगजीवन राम रखा था. उनके पिता शोभा राम एक किसान थे, जिन्होंने ब्रिटिश सेना में नौकरी भी की थे. जनजीवन राम छात्र के रूप में स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय थे इसके साथ-साथ वंचित तबके के उत्थान के लिए भी ये प्रयासरत रहे. जब यह विद्यालय में थे, भी उनके पिता शोभा राम का स्वर्गवास हो गया, उसके बाद उनका पालन-पोषण उनकी मां ने किया.
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बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से विज्ञान विषय लेकर इंटर
मां के मार्गदर्शन में से जगजीवन राम ने आरा टाउन स्कूल से प्रथम श्रेणी में मैट्रिक की परीक्षा पास की जाति आधारित भेदभाव का सामना करने के बावजूद उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से विज्ञान विषय लेकर इंटर को परीक्षा उत्ती को आगे की पढ़ाई के लिए कलकत्ता विश्वविद्यालय में दखिला लिया और वहाँ से स्नातक की डिग्री ली.
अपनी गिरफ्तारी से कभी घबराये नहीं
एक जुझास स्वतंत्रता सेनानी के रूप में जगजीवन राम सविनय अवज्ञा आंदोलन और भारता आंदोलन में शामिल हुए. इसकी वजह से वर्ष 1940 और वर्ष 1942 में उन्हें शिरासारंभी किया गया, लेकिन इससे वह रुके नहीं और समाज के लिए कई बेहतर काम में लगे रहे. जगजीवन राम सेनानियों के कठिन कार्य में त्याग और बलिदान की भावना को भले भति महसूस करते थे .
वर्ष 1931 में बने कांग्रेस के सदस्य
वर्ष 1931 में वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य बन गये.उन्होंने वर्ष 1934-35 में अखिल भारतीय शोषित वर्ग लीग की नींव रखने में अहम योगदान दिया था. यह संगठन अछूतों को समानता का अधिकार दिलाने हेतु समर्पित था, पढाई के दौरान जगजीवन राम को एहसास हुआ कि देश को अंग्रेजों से आजादी भी जरूरी है. इस क्षेत्र में किये गये उनके प्रयासों की वजह से जगजीवन राम सामाजिक समानता और शोषित वर्गों के लिए समान अधिकारों के प्रेणा बन गये थे.
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आजादी के बाद भी की देश सेवा
आजादी के बाद जो पहली सरकार बनी, जिसमें बाबू जगजीवन राम को श्रम मंत्री बनाया गया. यह उनका प्रिय विषय था. वह बिहार के एक छोटे से गाँव की माटी की उपज थे, जहां उनाने खेतिहर मजदूरों का त्रासदी से भरा जीवन देखा छात्र के रूप में कोलकाता में मिल मजदूरों की दयनीय स्थिति से भी उनका साक्षात्कार हुआ था.जगजीवन राम ने श्रम मंत्री के रूप में मजदूरों की जीवन स्थितियों में आवश्यक सुधार लाने और उनकी सामाजिक, आर्थिक सुरक्षा के लिए विशेष कानूनी नियम अन्वये जो अब भी हमारे देश की अम नीति का आधार है. स्वतंत्रता के बाद उन्होंने 1952 तक श्रम विभाग का संचालन किया.
सबसे लंबे समय तक कैबिनेट में रहे
देश में सबसे लंबे समय तक कैबिनेट मंत्री ( 32 वर्ष तक) रहने का भी रिकॉर्ड उनके नाम दर्ज है, उन्होंने पंडित नेहरू सरकार में संचार (वर्ष -1952-56), परिवन और रेलवे (वर्ष 1956-62) तथा परिवहन और संचार (1962-63 मंत्री भी शो, वर्ष 1971 के भारत और पाकिस्तान युद्ध के दौरान वह भारत के रक्षा मंत्री थे, इसी युद्ध के परिणामस्वरूप बांग्लादेश का निर्माण हुआ था. 6 जुलाई, 1986 को उनका निधन हो गया.