स्वतंत्रता आंदोलन में उर्दू सहाफत का इतिहास है गौरवशाली, जानें कैसे हुई इसकी शुरूआत
स्वतंत्रता आंदोलन में उर्दू पत्रकारिता में का इतिहास गौरवशाली है. 1830 में फारसी के स्थान पर उर्दू को हिंदुस्तान की सरकारी भाषा घोषित की गयी. इसकी शुरूआत 1857 की बगावत से पूर्व शुरू होता है
दुनिया भर में जहां कहीं भी आजादी के लिए विरोध या बगावत हुई है वहां पत्रकारिता की अहम भूमिका रही है. अकबर इलाहाबादी ने खूब कहा था कि खींचो न कमानों को न तलवार निकालो, जब तोप मुक़ाबिल हो तो अख़बार निकालो. ‘उर्दू सहाफत’ अपने आरंभिक काल से ही राष्ट्रीय चेतना के पक्ष में गंभीर और विचारधारात्मक रही है.
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में उर्दू सहाफत ने जो भूमिका निभायी है और उर्दू पत्रकारों ने जो कुर्बानियां दीं, वह अतुल्यनीय है. 1830 में फारसी के स्थान पर उर्दू को हिंदुस्तान की सरकारी भाषा घोषित की गयी, तो इस भाषा में जनमानस ने अधिकांश संवाद किया. सिलसिला 1857 की बगावत से पूर्व शुरू होता है और 1947 तक चलता रहता है. हरिदत्त ने सदासुख लाल के संपादन में 27 मार्च 1822 को पहला उर्दू सप्ताहिक ‘जाम-ए-जहांनुमा’ के नाम से कोलकाता से निकाला.
अप्रैल 1822 में महान समाज सुधारक राजा राममोहन राय ने एक फारसी अखबार ‘मीरात उल अखबार’ के नाम से निकाला. सन 1836 में मौलवी मोहम्मद बाकर ने दिल्ली से देहली अखबार जारी किया. बाद में इसका नाम देहली उर्दू अखबार हो गया और कुछ वर्षों बाद बहादुर शाह जफर अखबार की नीतियों से खुश होकर इसका नाम अखबार उल जफर कर दिया.
इस अखबार के अंतिम 10 संस्करण इसी नाम से प्रकाशित हुए. 10 मई 1857 को मेरठ से शुरुआत कर क्रांतिकारी अगले दिन दिल्ली पहुंचे. इस अखबार के 24 मई 1857 के संस्करण में मौलवी मोहम्मद बाकर के पुत्र मोहम्मद हुसैन आजाद की नज्म तारीख-ए-इंकलाब इबरत अफजा प्रकाशित हुई. दिल्ली से निकलनेवाले दूसरे अखबार जिसे जमीलउद्दीन हिज्र ‘सादिक उल अखबार ‘के नाम से प्रकाशित करते थे और तीसरे अखबार पयाम-ए-आजादी जिस के संपादक मिर्जा बेदार बख्त थे.
उर्दू पत्रकारिता के प्रारंभिक काल में ही हिंदुस्तान के गवर्नर जनरल लॉर्ड कैनिंग ने कहा था कि- देसी अखबारों ने खबरें प्रकाशित करने की आड़ में हिंदुस्तानी नागरिकों के दिलों में विद्रोह की भावना पैदा कर दी है. लार्ड मैकाले ने भी 1836 की अपनी एक रिपोर्ट में लिखा है कि बरतानवी किरदार की फब्तियां उड़ानेवाले अखबारों की संख्या ठीक-ठीक मालूम नहीं, लेकिन जानकार समूहों से अंदाजा होता है कि ये 120 हैं.
स्वयं लाला लाजपत राय उर्दू के विद्वान और उनका कालजयी अखबार वंदे मातरम उर्दू में प्रकाशित होती थी. उर्दू पत्रकारों में हसरत मोहानी ने सबसे पहले इंकलाब जिंदाबाद का नारा जंग-ए-आजादी में दिया. स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लेनेवाले उर्दू पत्रकारों में मौलाना अबुल कलाम आजाद, मौलाना मोहम्मद अली जौहर, मौलाना शौकत अली जौहर, जमींदार के संपादक जफर अली खान, उर्दू ए मुअल्लाह के संपादक हसरत मोहानी और श्री रणवीर को ही हम लोग जानते रहे हैं, मगर इस पंक्ति में हम दूसरे पत्रकारों को भी शामिल कर सकते हैं, जिनकी सूची काफी लंबी है.
1859 में मुंशी नवल किशोर ने अवध अखबार, 1860 में मुंशी अयोध्या प्रसाद ने अजमेर से साप्ताहिक खैर ए खुदा खल्क निकाला. 1861 में मोहम्मद जहीर उद्दीन ने मेरठ से अखबार जलवा ए तूर, 1868 में ख्वाजा युसूफ अली ने आगरा से आगरा अखबार जारी किया. मुंशी मोहम्मद शरीफ, हसरत मोहानी, मौलवी अहमद हसन शौकत, मौलाना मोहम्मद अली जौहर,
मौलाना जफर अली खान, सैयद हबीब, स्वामी प्रकाशानंद, पंडित मीला राम वफा, मौलाना अमीर अहमद आवान, लाला लाजपत राय, पंडित किशन चंद्र मोहन, स्वामी श्रद्धानंद, लाला देशबंधु गुप्ता, मिलाप के संपादक रणवीर सिंह, डॉ सत्यपाल, डॉ शेख मोहम्मद आलम, मौलाना इमदाद साबरी, मुंशी गोपीनाथ अमन, रामलाल, सुबुही अंबा प्रसाद, हिलाल अहमद जुबेरी और पंडित बांके दयाल शर्मा के साथ-साथ सैकड़ों उर्दू अखबारों के पत्रकारों ने स्वतंत्रता आंदोलन के पक्ष में अखबार निकाले और स्वाधीनता आन्दोलन में अपना योगदान दिया. मौलाना अबुल कलाम आजाद ने अपने दो अखबार अल हिलाल व अलबेलाग और पटना से निकलनेवाला सदा ए आम ने भारतीयाें में क्रांति का संचार किया.