Valmiki Jayanti 2021: आज है है वाल्मीकि जयंती, ऐसे की महाकाव्य की रामायण रचना, जानें इसका महत्व और इतिहास

Valmiki Jayanti 2021: हर साल अश्विन मास की पूर्णिमा तिथि के दिन महर्षि वाल्मीकि का जन्मदिन मनाया जाता है.वाल्मीकि का असली नाम अग्नि शर्मा था. वाल्मीकि का शाब्दिक अर्थ वो है जो चींटी-पहाड़ियों से पैदा हुआ हो.

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 20, 2021 10:51 AM

Valmiki Jayanti 2021: इस साल 20 अक्टूबर, बुधवार को वाल्मीकि जयंती मनाई जाएगी. मान्यताओं के अनुसार इसी तिथि को महर्षि वाल्मीकि ने जन्म लिया था. पौराणिक ग्रंथों के अनुसार महर्षि वाल्मीकि ने ही रामायण की रचना की है. हर साल अश्विन मास की पूर्णिमा तिथि के दिन महर्षि वाल्मीकि का जन्मदिन मनाया जाता है.

वाल्मीकि का असली नाम अग्नि शर्मा था. वाल्मीकि का शाब्दिक अर्थ वो है जो चींटी-पहाड़ियों से पैदा हुआ हो. उनकी तपस्या के दौरान उनके चारों ओर बनी विशाल चींटी-पहाड़ियों के रूप में उन्हें इस नाम से जाना जाने लगा. उन्हें महाकाव्य रामायण लिखने के बाद जाना जाता है.

वाल्मीकि जंयती का महत्व (Importance of Valmiki Jayanti)

महर्षि वाल्मीकि ने संस्कृत भाषा में रामायण लिखी थी. इसको प्राचीन ग्रंथ माना जाता है। सामान्य तौर पर महर्षि वाल्मिकि के जन्म को लेकर अलग-अलग राय हैं. लेकिन बताया जाता है कि इनका जन्म महर्षि कश्यप और देवी अदिति के नौवें पुत्र वरुण और उनकी पत्नी चर्षिणी के घर में हुआ था.

महर्षि वाल्मीकि जयंती 2021: तिथि और समय

पूर्णिमा तिथि शुरू- 19 अक्टूबर 19:03

पूर्णिमा तिथि समाप्त- 20 अक्टूबर 20:26

सूर्योदय- 06:11

सूर्यास्त- 17:46

क्यों पड़ा नाम वाल्मीकि-

कहते हैं कि एक बार महर्षि वाल्मीकि ध्यान में मग्न थे. तब उनके शरीर में दीमक चढ़ गई थीं. साधना पूरी होने पर महर्षि वाल्मीकि ने दीमकों को हटाया था. दीमकों के घर को वाल्मीकि कहा जाता है. ऐसे में इन्हें भी वाल्मीकि पुकारा गया. वाल्मीकि को रत्नाकर के नाम से भी जानते हैं.

डाकू से ऐसे बने वाल्मीकि

पौराणिक कथाओं के अनुसार वाल्मीकि का असली नाम रत्नाकर था, जो पहले लुटेरे हुआ करते थे और उन्होंने नारद मुनि को लूटने की कोशिश की. नारद मुनि ने वाल्मीकि से प्रश्न किया कि क्या परिवार भी तुम्हारे साथ पाप का फल भोगने को तैयार होंगे? जब रत्नाकर ने अपने परिवार से यही प्रश्न पूछा तो उसके परिवार के सदस्य पाप के फल में भागीदार बनने को तैयार नहीं हुए. तब रत्नाकर ने नारद मुनि से माफी मांगी और नारद ने उन्हें राम का नाम जपने की सलाह दी. राम का नाम जपते हुए डाकू रत्नाकर वाल्मीकि बन गए.

Next Article

Exit mobile version